-रिम्स में महीने भर से खराब पड़ी हैं आधा दर्जन मशीनें

-एक महीने से ठप है एचआईवी जांच, पखवारे भर से खराब है एमआरआई मशीन

-बाहर जांच नहीं करा पाने वाले मरीजों की बढ़ रही बीमारी

-एम्स जैसा रिम्स कैसे बनेगा राज्य का मॉडल हॉस्पिटल

RANCHI: रिम्स में डैमेज मशीनों की ढेर लगी हुई है। बीमारी की जांच या इलाज बाहर से कराने में पेंशेंट्स की जेब ज्यादा ढीली हो रही है। ऐसे में वे मशीन ठीक होने का इंतजार करते हुए अपनी बीमारी बढ़ाने के लिए मजबूर हैं। इसके बावजूद रिम्स मैनेजमेंट कान में तेल डाल कर सो रहा है। जी हां, रिम्स में करीब आधा दर्जन मशीनें एक-दो दिन नहीं, बल्कि महीने भर से खराब हैं। लेकिन उन्हें ठीक कराने के लिए प्रबंधन गंभीर नजर नहीं आ रहा है। जबकि रिम्स में खासकर गरीब मरीजों का ध्यान रखते हुए ही कम खर्च पर इलाज व बीमारी की जांच की व्यवस्था है। ऐसे में सवाल उठ रहे हैं कि इन खराब पड़ी मशीनों से एम्स की तर्ज पर रिम्स को राज्य का मॉडल हॉस्पिटल कैसे बनाया जा सकता है?

1.डेंटल ओपीडी: कबाड़ में सड़ रहीं दो मशीनें

रिम्स के डेंटल ओपीडी में चार मशीनें लगी हैं। इनमें से दो मशीनें काफी दिनों से बंद पड़ी कबाड़ में सड़ रही हैं। जबकि यहां अक्सर मरीजों की भीड़ बढ़ रही है और उन्हें लाइन में लग कर इलाज के लिए घंटों इंतजार करना पड़ रहा है। कई बार तो लाइन में लगने के बावजूद पेशेंट्स का इलाज नहीं होता और वे मैनेजमेंट को कोसते हुए निराश लौट रहे हैं। ऐसे में माननीय का यह कहना कि रिम्स को एम्स की तर्ज पर मॉडल हॉस्पिटल बनाया जाएगा, हास्यास्पद लग रहा है।

2. 35 दिनों से एआरटी सेंटर की मशीन खराब

रिम्स में एचआइवी मरीजों के इलाज के लिए बनाए गए एंटाइरेट्रोवायरल थेरेपी (एआरटी) सेंटर की मशीन खराब पड़ी है। इसे सीडी फार्मेसी के नाम से जाना जाता है। इसके कुछ पा‌र्ट्स खराब हो गए हैं, जो विदेश से मंगाए जाने हैं। प्रबंधन की लापरवाही की वजह से पा‌र्ट्स मंगाने में देरी हो रही है। जबकि मरीजों को हॉस्पिटल से बाहर पैथोलॉजिकल लैब में जांच करानी पड़ रही है। इसके लिए उन्हें काफी मोटी रकम चुकानी पड़ रही है। ऐसे में कई मरीज महीनों से मशीन के ठीक होने का ही इंतजार कर रहे हैं और बीमारी बढ़ाने के लिए मजबूर हैं।