अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त नृत्यांगना डॉ। मीनाक्षी ने परिवार और बच्चों के लिए छोड़ा मंच

Meerut। मां दुर्गा का नवां स्वरूप सिद्धिदात्री जीवन में देने और त्याग करने की सीख देता हैं। यह स्वरूप एक ऐसी मां का है जो अपने बच्चों के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देती हैं। उनकी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए खुशियों और ख्वाहिशों का त्याग कर देती है। यूं तो हर मां अपने बच्चों के लिए त्याग करती है, लेकिन गंगानगर की डॉ। मीनाक्षी शर्मा ने बच्चों की परवरिश के लिए अपने ख्याति प्राप्त कॅरियर को ही त्याग दिया। बकौल डॉ। मीनाक्षी हम चाहते बहुत कुछ हैं लेकिन सामाजिक और पारिवारिक स्तर पर ऐसी कई जिम्मेदारियां होती हैं जिन्हें निभाने में जरा भी चूक हुई तो इसका खामियाजा पीढि़यों को चुकाना पड़ता है। अपनी ख्वाहिशें तो कभी भी पूरी की जा सकती है लेकिन बच्चों को समय पर सही लालन-पालन देना बहुत जरूरी हो जाता है।

बिरजू महाराज से सीखा कत्थक

डॉ। मीनाक्षी शास्त्रीय संगीत और नृत्य में पारंगत कलाकार हैं लेकिन शादी के बाद बच्चों के लिए उन्होंने मंच से दूरी बना ली। वह बताती हैं कि प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद से प्रभाकर सीखने के बाद उन्होंने कई देशों में सांस्कृतिक महोत्सव में भारत का प्रतिनिधितत्व भी किया। बिरजू महाराज से कत्थक सीखा और रूस, सिंगापुर, जर्मनी, मलेशिया की धरती पर कत्थक, बृज की लठ्ठमार होली रसिया की प्रस्तुति भी दी। शादी के बाद वह पति के साथ बिजनौर आ गई और घर की जिम्मेदारियों में रम गई। इस दौरान कुछ स्कूलों में कॉरियोग्राफी करने लगी लेकिन जब बच्चे हुए तो सब बंद कर दिया। वह बताती हैं कि दो बेटों की जिम्मेदारियां थी ऐसे में खुद के लिए समय निकाल पाना बहुत मुश्किल हारहा था।

कथावाचक से कर रही शौक पूरा

डॉ। मीनाक्षी कहती हैं कि एक पत्‍‌नी और मां के लिए परिवार की जिम्मेदारी सर्वप्रथम होती हैं, लेकिन अपनी प्रतिभा को खत्म कर लेना सही नहीं होता। बच्चों के बड़े होने के बाद वह मंच से जुड़ी और अब कथावाचक के रूप में काम करती हैं। सोशल प्लेटफार्म पर भी खुद को जोड़ा हुआ है।