किसी भी मेडिसिन को डेवलप करते समय सबसे बड़ा चैलेंज होता है कि उसे टेस्ट करने का. क्योंकि इसमें जान जाने का भी पूरा रिस्क रहता है. लेकिन इंडिया के लोगों की जान शायद काफी सस्ती है, तभी तो वल्र्ड की ज्यादातर मेडिकल कंपनीज ने इंडिया को अपनी लैबोरेटरी बना रखा है. आलम यह है कि इन मेडिसिन के टेस्ट की वजह से देश के हजारों लोगों की जान तक जा चुकी है.

डेढ़ लाख भारतीयों पर टेस्ट

पिछले पांच वर्षों में विदेशी दवा कंपनियों ने भारत को नई दवाओं की ‘लैब’ में तब्दील कर डाला है. दरअसल, इंडिया में प्रयोग इन कंपनियों को वेस्टर्न कंट्रीज के मुकाबले काफी किफायती पड़ता है. देश में करीब डेढ़ लाख लोगों पर करीब 1600 मेडिसिंस के टेस्ट, उनके जाने-अनजाने किए जा रहे हैं. इन मेडिसिन कंपनियों में ज्यादातर ब्रिटिश, अमेरिकी और यूरोपीय हैं. हालांकि इन्हें लेकर कोई निश्चित आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, फिर भी यह अरबों रुपए का बिजनेस है.

1730 ने जान गंवाई

2007 से 2010 के बीच भारत में इन मेडिसिन टेस्ट्स का हिस्सा बनने वाले 1,730 लोगों की जान जा चुकी है. जानकारों के अनुसार इन टेस्ट में शामिल होने वाले ज्यादातर अनपढ़, गरीब और आदिवासी हैं. इन्हें टेस्ट से संबंधित सही  जानकारी नहीं दी जाती. खास तौर पर मध्य प्रदेश और आंध्र प्रदेश में ये टेस्ट हो रहे हैं. दिल्ली में भी ऐसे मामले सामने आए हैं.

इंसान को समझा ‘जानवर’

वेस्टर्न कंट्री की दवा कंपनियों द्वारा टेस्ट के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला भारत अकेला देश नहीं है. दुनिया भर के 178 देशों में इस तरह के करीब एक लाख बीस हजार दवा परीक्षण जारी हैं. जिनमें इंसान को ‘पशु’ समझा जाता है. चीन, इंडोनेशिया और थाईलैंड भी उन देशों में शुमार हैं, जहां ये टेस्ट पिछले कुछ वर्षों में बढ़े हैं. इन देशों में होने वाले प्रयोगों और आंकड़ों के आधार पर ही यूरोपीय ड्रग रेगुलेटर के पास दवा कंपनियां अपनी दवाओं को बाजार में उतारने की अनुमति मांगती हैं.

भारत पर नजर क्यों?

जानकारों के अनुसार मेडिसिन कंपनियों के रिसर्च डिपार्टमेंट के लिए भारत इसलिए आकर्षक बाजार है क्योंकि यहां सवा अरब की पॉपुलेशन में जीन विविधता अत्यधिक है. साथ ही यहां टेस्ट फेल होने पर कानून भी सख्त नहीं हैं.  गवर्नमेंट हॉस्पिटल्स में भी टेस्ट्स को मंजूरी मिल जाती है.

बड़ी सस्ती है जान

इन मेडिसिन टेस्ट के खिलाफ एक्टिव दिल्ली के डॉ. चंद्र गुलाटी के अनुसार भारत में इन टेस्ट को लेकर पारदर्शिता नहीं बरती जाती है. डॉक्टर लापरवाही करते हैं. नैतिक मूल्यों की परवाह नहीं करते हैं. यहां जान की कीमत भी बहुत कम है. हेल्थ मिनिस्टर गुलाम नबी आजाद स्वीकार कर चुके है कि 2010 में मेडिसिन टेस्ट्स में मारे गए 22 लोगों के परिजनों को विदेशी कंपनियों ने मात्र 2 लाख 38 हजार रुपए प्रति व्यक्ति के हिसाब से भुगतान किया. विदेशी कंपनियां महंगी दवाओं का बाजार तैयार करने के लिए भारतीयों का बहुत ही सस्ते दाम पर इस्तेमाल कर रही हैं. ज्यादातर को पता भी नहीं होता कि उनके साथ क्या हो रहा है. वे सिर्फ अपने डॉक्टर के कहने पर वे दवाएं लेने को राजी हो जाते हैं, जो टेस्ट के स्तर पर होती हैं.

किसी को नहीं परवाह

- बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा स्पांसर्ड एक इम्यूनिसेशन स्टडी के लिए सैकड़ों आदिवासी लड़कियों को बिना उनके पैरेंट्स की परमिशन के रिक्रूट कर लिया गया. इनमें से कई लड़कियों की मौत हो गई. यह स्टडी बाद में फेडरल अथॉरिटीज द्वारा रोक दी गई थी.

- भोपाल गैस ट्रैजेडी के सर्वाइवर्स पर ड्रग कंपनीज बिना प्रॉपर परमिशन के 11 ट्रायल्स किए.

- इंदौर के गवर्नमेंट हॉस्पिटल में डॉक्टर्स ने दर्जनों प्राइवेट ट्रायल्स किए. इंवेस्टिगेशन में यह बात सामने आई कि इन ट्रायल्स के दौरान एथिकल गाइडलाइंस का उल्लंघन किया गया था. ट्रायल कंडक्ट करने वाले डॉक्टर्स ने डिसाइड किया कि 81 में से एक केस जिसमें पार्टिसिपेंट खतरनाक इफेक्ट का शिकार हो गया, ट्रीटमेंट से रिलेटेड नहीं था. इसके बाद स्टेट गवर्नमेंट की इंवेस्टिगेशन होने तक नए ट्रायल्स पर रोक लगा दी गई.

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