- 400 से ज्यादा लोगों को एक साल में बंदरों ने काटा
- 120 बच्चे भी हुए बंदरों के शिकार
-100 से ज्यादा केस से फरवरी से अब तक आए सामने
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- जिला अस्पताल में डेली आ रहे बंदर के काटने के मरीज, सबसे ज्यादा मरीज शहरी क्षेत्र के
- नगर निगम तीन बार जारी कर चुका है बंदर पकड़ने के टेंडर, कोई ठेकेदार सामने नहीं आया
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बरेली. बंदरों के हमले में छत से गिरकर नगर निगम के बाबू की मौत के बाद शहर में लोग डरे-सहमे हैं. लोगों का कहना है कि घर के बाहर हों या अंदर, सब जब बंदरों का आतंक है. बंदरों के आतंक के चलते बच्चों में डर का माहौल है. आए दिन बंदर किसी किसी पर हमला कर रहे हैं. जिला अस्पताल में रोज बंदर के काटने के आठ से दस केस पहुंच रहे हैं. शहर में बंदरों की बढ़ी संख्या के कारण भी लोग परेशान हैं. बंदरों को पकड़ने के लिए लोग कई बार नगर निगम से गुहार लगा चुके हैं. लेकिन नगर निगम ने अब तक ने इस ओर कोई कदम नहीं उठाया. निगम तीन सालों से बंदर पकड़ने के लिए टेंडर निकाल रहा है, लेकिन किसी ठेकेदार ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई.
लोग खुद कर रहे अपनी सुरक्षा
जब अफसरों ने बंदरों की समस्या से छुटकारा नहीं दिलाया तो लोगों ने खुद ही बंदरों के आतंक से बचने के तरीके निकाल लिए. लोगों ने घरों की छतों और बालकनी पर जाल लगवा लिए हैं. लोगों में बंदरों का भय इस कदर है कि वे बच्चों को खेलने के लिए अकेले बाहर नहीं जाने दे रहे.
इन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा आतंक
जिला अस्पताल, किला, मलूकपुर, रामपुर गार्डन, सिविल लाइंस, राजेंद्र नगर, छोटी बमनपुरी, करगैना, मढ़ीनाथ, इज्जतनगर व साहूकारा में बंदरों का आतंक सबसे ज्यादा है. इन्हीं क्षेत्रों से ही सबसे ज्यादा लोग वैक्सीनेशन के लिए जिला अस्पताल पहुंच रहे हैं.
असपताल में भी बंदरों का उत्पात
जिला महिला अस्पताल की सीएमएस डॉ. अल्का शर्मा ने भी पिछले माह नगर निगम को पत्र भेजकर बंदर पकड़वाने की मांग की थी. उन्होंने बताया था कि अस्पताल परिसर में बंदर सुबह से लेकर शाम तक जमकर उत्पात मचाते हैं. वहीं खाना बंटने के समय तो बंदर अस्पताल में अंदर घुसकर मरीजों और स्टाफ से छीना झपटी करते हैं. कई बार मरीजों और तीमारदारों पर हमला भी कर चुके हैं.
वन विभाग की अनुमति नहीं
निगम ने पिछले साल अगस्त में वन विभाग से बंदर पकड़वाने की अनुमति मांगी थी, लेकिन विभाग ने यह तर्क दिया अभी वन्य जीव संरक्षक अधिकारी के स्तर से इस बारे में अब तक कोई संस्तुति नहीं दी गई है.
मासूमों को बना रहे निशाना
सैनिक कॉलोनी निवासी बबली शर्मा का 10 वर्षीय बेटा प्रियम थर्सडे को घर में खेल रहा था. तभी बंदर घर में घुस आया. बंदर को देखते ही वह भागा तो बंदर से उस पर हमला कर उसके पैर पर काट लिया.
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वर्जन :
छह माह पहले टेंडर निकाला गया था, लेकिन किसी ठेकेदार ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. अब आचार संहिता के बाद ही टेंडर जारी होगा.
सैमुअल पॉल एन, नगर आयुक्त.
लोगों की बात :::
1. बंदर सुबह से लेकर शाम तक आतंक मचाते हैं. मैं छत पर बैठा तो बंदर से ऐसे लपका कि छत से गिरने से बच गया. अब छत में जाल लगवाने की तैयारी चल रही है.
अभिषेक, मढ़ीनाथ.
2. कोई भी खाने पीने की चीज छत पर रख ही नहीं सकते. पलभर में बंदर चीजों को अस्त व्यस्त कर देते हैं. कई बार तो भारी नुकसान हो चुका है.
अंजू सक्सेना. मढ़ीनाथ
3. मैं करीब दो दिन पहले घर की छत पर बैठा फोन पर बात कर रहा था, कि पीछे कुछ आहट हुई पलट के देखा तो बंदर था, मैंने हल्की सी हुड़की दी तो उसने मेरे ऊपर छलांग मार दी. किसी तरह भागकर जान बचाई.
शिवम यादव, ओल्ड पुलिस लाईन.
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बंदरों से बचना है तो यह करें
. बंदरों से आंख न मिलाएं.
2. बंदरिया और उसके बच्चे के बीच से न निकलें.
3. बंदरों को परेशान न करें. आप उन्हें अकेला छोड़ दें, वो आपको अकेला छोड़ देंगे.
4. बंदरों को देखकर भागे नहीं, मरे हुए या घायल बंदर के पास न जाएं.
5. बंदरों को खाना न दें.
6. अगर बंदर आपकी गाड़ी (खासकर दो पहिया) से टकरा जाए, तो गाड़ी न रोकें.
7. बंदर अगर आपको देखकर खो-खो की आवाज़ करे तो डरें नहीं. वहां से शांति से निकल जाएं.
8. बंदर को कभी न मारें. बल्की डंडे को ज़मीन पर पटकें, जिससे वो आपके घर या बगीचे से बाहर चला जाएगा.
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बंदरों के आक्रामक व्यवहार के कुछ संभावित कारण
- बंदरों की आबादी बढ़ना, उनके ठिकाने सीमित होना
- वातावरण में ध्वनि प्रदूषण और रेडियेशन का लगातार बढ़ना
- उनके खाने पीने के ठिकानों पर इंसानी दखल होना
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