राजधानी के आसपास फसलों के अवशेष जलाने से बढ़ रहा प्रदूषण

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PATNA : पटना में इस बार ठंड का मौसम बीते वर्ष की तुलना में ज्यादा प्रदूषण वाला होगा। कारण है पटना के आसपास के ग्रामीण इलाकों में फसलों का जलाया जाना। खेतों को साफ करने के लिए लोग धान के बचे हुए अवशेष को जला देते है। जहां पहले से ही कम तापमान और कम दबाव का क्षेत्र बनता है वहां पर इसे जलाए जाने के कारण सांस लेने लायक हवा नहीं रह जाती है। अब धान काटने का सीजन शुरू हो गया है। किसान फसलों के अवशेष जलाना शुरू कर देंगे। प्रदूषण विशेषज्ञों का कहना है कि इसे नहीं रोका गया तो यहां भी दिल्ली जैसी स्थिति हो सकती है। पटना के लिए खतरा इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि यह दुनिया का पांचवां सबसे प्रदूषित शहर है।

पटना के आसपास फसलों के अवशेष जलाए जाने से होने वाले प्रदूषण और इसके बढ़ते प्रभाव का अध्ययन भी होना है। एनजीटी के सूत्रों ने बताया कि इसके लिए आईआईटी दिल्ली के एक्सपर्ट की मदद लेकर इसके लिए प्रभावी उपाय करने पर जोर दिया जाएगा। यह अध्ययन होने के बाद रिव्यू किया जाएगा।

स्थिति शुरुआती पर चिंताजनक

पटना के आसपास के ग्रामीण इलाकों में फसलों के बचे अवशेष को जलाने से समस्या देखी गई है। एयर क्वालिटी एक्सपर्ट रमापति कुमार ने बताया कि मैंने अंतिम वर्ष इस बात को नोटिस किया था। यह बात सच है कि पटना के आसपास के इलाकों में भी लोग धान के अवशेष को जलाना शुरु कर दिया है। भले ही यह संगठित रूप में नहीं हो रहा है। लेकिन इसका काफी प्रभाव हो सकता है।

ठंड का समय ज्यादा खतरनाक

फसलों के अवशेष को ठंड में जलाना ज्यादा खतरनाक होता है। एनआईटी पटना के एसोसिएट प्रोफेसर एनएस मौर्या ने बताया कि ठंड में धुंआ ऊपर नहीं उठता है। ठंड के सीजन में शाम के समय फसलों को जलाना काफी खतरनाक होता है। क्योंकि धुंआ ऊपर नहीं जाता है। इससे घुटन का वातावरण तैयार होता है।

मानक से 20 गुना था प्रदूषण

दिल्ली के आसपास फसलों के अवशेष को जलाये जाने से ठंड के दिनों में होने वाले प्रदूषण पर एक अध्ययन किया गया है। इसमें यह बात सामने आयी है कि डब्ल्यूएचओ के मानक से यह 20 गुना अधिक था। जबकि इस बारे में बिहार सरकार ने इस संबंध में कोई असेसमेंट नहीं कराया है।