- जिला उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग में लाखों की मशीनें फांक रही धूल

- बजट की कमी से विभाग नहीं ले पाया बिजली का कनेक्शन, आउटडेटेड हुई मशीनें

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सरकारी महकमों में संसाधनों की किस कदर बर्बादी होती है। इसे जिला खाद्य प्रसंस्करण विभाग में धूल फांक रही लाखों रुपये कीमत की प्रिजर्वेशन मशीनों की हालत देखकर समझा जा सकता है। बजट नहीं होने से विभाग आज तक बिजली का कनेक्शन नहीं ले पाया। जिससे समय बीतने के बाद ये मशीनें आउटडेटेड हो गई। ऐसे में फूड प्रिजर्वेशन का काम अटक गया। फिलहाल ये मशीनें राजकीय खाद्य विज्ञान प्रशिक्षण केन्द्र में रोजगारपरक कोर्सेज की ट्रेनिंग ले रहे स्टूडेंट्स को सिर्फ दिखाने के काम आ रही हैं। प्रशिक्षणार्थी इसका प्रैक्टिकल यूज नहीं कर पा रहे हैं।

'डॉस्प' के तहत लगी थीं मशीनें

दरअसल, खाद्य प्रसंस्करण विभाग की कृषि विविधीकरण योजना (डॉस्प) के तहत 2001 में जिला कार्यालय में आधा दर्जन छोटी-बड़ी मशीनें मंगाई गई थीं। इसका मकसद लाइसेंस धारकों को फूड प्रिजर्वेशन की सुविधा मुहैया कराना था। साथ ही प्रशिक्षण केन्द्र में ट्रेनिंग ले रहे स्टूडेंट्स को प्रैक्टिकल नॉलेज देना भी था, लेकिन दोनों काम आज तक बिजली कनेक्शन नहीं होने से पूरे नहीं हो पाए।

बिना ट्रेनर कैसे मिले प्रशिक्षण?

खाद्य प्रसंस्करण विभाग से सटे हुए राजकीय खाद्य विज्ञान प्रशिक्षण केन्द्र में कुकरी, बेकरी, पाक कला आदि जॉब ओरिएंटेड कोर्सेज का प्रशिक्षण दिया जाता है। केन्द्र में ट्रेनरों का टोटा है। यहां स्वीकृत सभी चार पद खाली पड़े हैं। इसके चलते गोरखपुर स्थित प्रशिक्षण केन्द्र से एक ट्रेनर को यहां अटैच किया गया है। जो सभी स्टूडेंट्स को ट्रेनिंग देने में असहाय महसूस कर रहे हैं। ऐसे में कई बार मुख्यालय प्रभारी और लैब सहायक को ट्रेनिंग देनी पड़ती है। ऐसे में बिना ट्रेनर स्टूडेंट्स क्या सीखते होंगे?

एक नजर

- 14 लाख रुपये कीमत है प्रिजर्वेशन मशीनों की

- 18 साल पहले लगी थीं पांच मशीनें

- 03 कोर्सेज चलते हैं प्रशिक्षण केन्द्र में

- 50 से ज्यादा स्टूडेंट ले रहे हैं ट्रेनिंग

विभाग के पास बिजली के मद में बजट नहीं है। इससे मशीनें नहीं चल सकीं। प्रदेश के कई राजकीय प्रशिक्षण केन्द्रों पर ट्रेनरों की कमी है। शासन से भर्ती होगी, तभी स्थिति सुधरेगी।

बी गौतम, प्रिंसिपल, राजकीय खाद्य विज्ञान प्रशिक्षण केन्द्र