नहीं होती प्रॉपर क्लासेज

यूनिवर्सिटी के बायोटेक डिपार्टमेंट में टाइम टेबल के अकॉर्डिंग एमएससी स्टूडेंट्स की दिन में दो क्लासेज होनी तय है। लेकिन अक्सर ऐसा होता है कि एक ही क्लास होती है और इसकी भी गारंटी नहीं है। इसमें भी ज्यादातर टीचर आधी क्लास का टाइम निकलने के बाद ही आते हैं।

प्रैक्टिकल के नाम पर खानापूर्ति

एमएससी सेकेंड सेमेस्टर का दोपहर में 1 से 5 बजे तक प्रैक्टिकल का टाइम है। लेकिन इनको प्रैक्टिकल कराए ही नहीं जाते। जब एग्जाम करीब होते हैं तो बस खानापूर्ति कर दी जाती है। कंडीशन यह है कि सेकेंड सेमेस्टर के स्टूडेंट्स को मशीनों के नाम और उनका यूज के बारे में कुछ नहींपता। इसी तरह एमएससी फोर्थ सेमेस्टर में भी 4 घंटे के प्रोजेक्ट सिर्फ नाम के रह हैं। प्रैक्टिकल में कहीं माक्र्स न कम हो जाएं इसी डर से स्टूडेंट्स हेड से कुछ कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाते।

खराब हैं लाखों की मशीनें

डिपार्टमेंट में प्रैक्टिकल के लिए लाखों रुपए की कीमत की मशीनें इंस्टाल हैं। लेकिन इनमें बहुत सी मशीनें दम तोड़ चुकी हैं। कुछ?को खराब हुए करीब दो साल हो गए हैं। लापरवाही की हद देखिए कि उसे ठीक कराने की जहमत किसी ने नहीं की। इसकी वजह से एमएससी स्टूडेंट्स प्रैक्टिकल से दूर हैं तो रिसर्च स्टूडेंट्स भी परेशान हैं। रिसर्च स्कॉलर्स ने काफी मुश्किल से आई नेक्स्ट रिपोर्टर को बताया कि वह लोग बस किसी तरह से अपनी रिसर्च कर रहे हैं। कई टॉपिक पर तो वे खराब मशीन की वजह से रिचर्स नहीं कर पा रहे हैं। किसी भी यूनिवर्सिटी में रिसर्च यह ध्यान में रखकर कराया जाता है कि उससे कुछ नई फाइंडिंग्स मिलेंगी, जिससे समाज और देश को फायदा होगा। लेकिन जिस तरह से इस डिपार्टमेंट में अनदेखी की जा रही है ऐसे में कुछ नया हो पाना संभव नहीं।

नहीं मिलते जरूरी केमिकल्स

स्टूडेंट्स से मिली जानकारी के अनुसार कई बार ऐसा होता है कि उनको प्रैक्टिकल या रिसर्च के लिए किसी केमिकल की जरूरत होती है लेकिन वह नहीं मिलता। कभी वह केमिकल खत्म होने से नहीं मिलता तो कभी डिपार्टमेंट में होने के बाद भी इशू नहीं किया जाता। इसको लेकर वह संबंधित टीचर्स से कहते भी हैं लेकिन नतीजा अधिकतर सिफर रहता है।

मोटी फीस, पढ़ाई जीरो

डीडीयू में एमएससी बायोटेक्नोलॉजी का कोर्स सेल्फ फाइनेन्स के अंतर्गत चलता है। यह यूनिवर्सिटी के सबसे महंगे कोर्स में शामिल है। इसकी एक साल की फीस लगभग 35 हजार रुपए हैं। इतनी मोटी फीस देने के बाद भी स्टूडेंट्स को नॉलेज और पढ़ाई के नाम पर सिर्फ ठेंगा ही मिल रहा है। जो स्टूडेंट्स दूसरे शहरों से आकर यहां पढ़ रही हैं उनको तो सिटी में हॉस्टल में रहने खाने पीने का खर्च भी करना पड़ता है। लेकिन यूनिवर्सिटी को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ रहा।

इसीलिए घट रहा साइंस में रुझान

आज अक्सर ही साइंस फील्ड के एक्सपट्र्स यह बात करते दिखते हैं कि अपने देश में साइंस के प्रति स्टूडेंट्स का रुझान कम हो रहा है। हाल ही में हुए साइंस कांग्रेस के दौरान विभिन्न इंटरेक्टिव सेशन्स में भी टीचर्स ने यह मुद्दा उठाया। लेकिन ऐसा क्यों हो रहा है इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा। जो कंडीशन बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट की है उसे देखकर आसानी से समझा जा सकता है कि आखिर क्यों स्टूडेंट्स का मन साइंस की तरफ से कम हो रहा है।

अगर डिपार्टमेंट में ऐसी कंडीशन है तो यह बिलकुल गलत है। मैं डिपार्टमेंट का इन्सपेक्शन करूंगा और एचओडी से इस संबंध में बात करूंगा। किसी भी यूनिवर्सिटी का एम स्टूडेंट्स की पढ़ाई और रिसर्च पर फोकस होता है। इसीलिए स्टूडेंट एडमिशन लेता है। अगर स्टूडेंट को नॉलेज न मिले तो गलत है।

प्रो। एचएस शुक्ला, डीन साइंस, डीडीयू

इस बारे में एचओडी से बात की जाएगी। जो भी कमियां हैं उनको दूर किया जाएगा। यूनिवर्सिटी स्टूडेंट्स का फ्यूचर बनाने के लिए है। उनको नॉलेज देने के लिए है। जरूरत होगी तो इस बारे में वीसी से वार्ता करके स्टूडेंट्स को हर वह फैसिलिटी दी जाएगी तो उनको मिलनी चाहिए।

एएम अंसारी, ऑफिशिएटिंग रजिस्ट्रार, डीडीयू

Report by: shailesh.arora@inext.co.in