आईजी हुए सख्त
लावारिस डेडबॉडी मिलने और उन पर होने वाली पुलिस की कार्रवाई पर आईजी सख्त हुए। उन्होंने जोन के सभी डिस्ट्रिक्ट से इस साल जनवरी से मई तक मिली अज्ञात लाशों का डिटेल मांगा। साथ ही उन मामलों में लिये गये एक्शन का डिटेल भी मांगा। इसमें बनारस डिस्ट्रिक्ट की ओर से इन पांच महीनों के दौरान सिर्फ एक डेडबॉडी को दर्शाया गया है। इसमें रोहनिया में 35 वर्षीय युवक की लाश मिलने का जिक्र है। पोस्टमार्टम में मौत की वजह दम घुटना लिखा गया है। लेकिन कोई मामला दर्ज नहीं है और न ही कोई रिपोर्ट दर्ज है.
डेडबॉडी का डम्पिंग ग्र्राउंड
सिटी और आसपास का एरिया डेडबॉडी का डम्पिंग ग्र्राउंड बन गया है। बनारस जिले के कुल 25 थानों में से लगभग डेली किसी न किसी थाना एरिया में डेडबॉडी मिलती है। किसी दिन तो दो से तीन डेडबॉडी तक मिलती हैं। डेडबॉडी अक्सर ऐसे प्लेस पर मिलती हैं जहां लोगों का आना-जाना कम होता है। वरुणा नदी के किनारे या किसी बड़े नाले में डेडबॉडी पड़ी मिलती है। कॉलोनी के किसी खाली प्लॉट या देहात के खेत-खलिहान में डेडबॉडी मिलती हैं।
कोई नहीं देता ध्यान
लावारिस मिलने वाली डेडबॉडी में ज्यादातर ऐसी होती हैं जिन्हें देखने के बाद एहसास होता है कि मौत की वजह नेचुरल नहीं है। किसी के सिर पर चोट का निशान स्पष्ट होता तो किसी के गर्दन पर वार नजर आता है। अगर पोस्टमार्टम हुआ तो उसकी रिपोर्ट भी कुछ ऐसी ही आती हैं। इसके बावजूद ज्यादातर मामले में पुलिस गंभीर नहीं होती है।
लाश खत्म सबकुछ खत्म
-लावारिस डेडबॉडी मिलने के बाद पुलिस की कोशिश होती है उससे जल्द से जल्द छुटकारा पाने की।
-अक्सर पुलिस लाश को पुलिस दूसरे थाना एरिया में धकेल देती है। इससे वह किसी तरह की कार्रवाई से बच जाती है।
-वह डेडबॉडी को बिना पोस्टमार्टम के डिस्पोजल करने का इंतजाम कर देती है।
-लाश को कब्जे में लेना मजबूरी हुई तो पोस्टमार्टम कराकर उसके डिस्पोजल का जुगाड़ खोजने लगती है।
-पोस्टमार्टम हाउस के पास मौजूद किसी ट्रॉली मैन को डेडबॉडी और 50-100 थमा देते हैं।
नहीं रखते नियमों का ध्यान
-लावारिस डेडबॉडी को लेकर पुलिस हेडक्वार्टर से बेहद सख्त निर्देश हैं।
-डेडबॉडी को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम करना चाहिये।
-लाश को जब तक संभव हो तब तक रखकर शिनाख्त का इंतजार करना चाहिए।
-आसपास के एरिया में मरने वाली की पहचान की कोशिश करनी चाहिए।
-न्यूज पेपर टीवी चैनल के माध्यम से शिनाख्त का प्रयास होना चाहिए।
-डिस्पोजल के पहले लाश की फोटो खींचकर रखनी चाहिए।
-डीएनए टेस्ट के लिए बाल-नाखून आदि बॉडी का पाट्र्स सुरक्षित रखना चाहिए।
-धार्मिक रीति रिवाज से अंतिम संस्कार किया जाना चाहिए।
-इसके लिए पुलिस डिपार्टमेंट पांच सौ रुपये भी देता है।
यह तो इंसानियत नहीं है
लावारिस लाशों के साथ अक्सर सम्मानजनक व्यवहार नहीं होता है। पुलिस वाले ट्रॉलीमैन को लाश थमा देते हैं। ट्रॉलीमैन कहीं से पत्थर आदि का जुगाड़ कर लाश को उससे बांधता है। किसी नदी में ले जाकर लाश को फेंक देता है। पानी में डूबी डेडबॉडी को मछलियां आदि पानी के जीव-जन्तु खाकर खत्म कर देते हैं। यदि कभी लाश पानी में नहीं डूब सकी तो बहते हुए दूर निकल जाती है। इससे भी पुलिस किसी तरह की कार्रवाई से बच जाती है।
यहां मिलती हैं अधिक डेडबॉडी
-सिटी के अस्सी, चौकाघाट, पंचक्रोशी समेत कई बड़े नालों के आसपास।
-वरुणा और गंगा नदी में.
-तेजी से डेवलप हो रहे रामनगर के सुनसान एरिया में.
-सिटी से गुजर रहे हाईवे के ईद-गिर्द खेतों में।
-रूरल एरिया में सुनसान स्थानों पर।
-रेलवे स्टेशन, बस स्टेशन के खाली पड़े स्थानों पर।
एनजीओ दे रहे मोक्ष
सिटी में अज्ञात मिलने वाली डेडबॉडी का अंतिम कुछ एनजीओ करते हैं। इनका नम्बर सभी पुलिस थानों में मौजूद है। जब कोई डेडबॉडी मिलती है पुलिस उसे एनजीओ को सौंप देती है। एनजीओ मरने वाले के धर्म को ध्यान में रखते हुए उसका अंतिम संस्कार करते हैं। इसके लिए उन्होंने कुछ लोगों को अपॉइंट कर रखा है.