Lucknow: तीस फिट गहरी सीवर लाइन और जरुरी सेफ्टी अरेजमेंट के बिना उसकी सफाई। लापरवाही और असावधानी ने आखिरकार दो मजदूरों की जान ले ली। यह मजदूर थे मोहनगंज क्रासिंग के पास रहने वाले दिनेश रावत और बल्लू रावत।
दोनों की मौत आर्मी के रेजीडेंशियल एरिया के नजदीक हो रही सीवर की सफाई के दौरान सीवर में गिरने से हुई। दोनों को निकालने में काफी मशक्कत करनी पड़ी क्योंकि पतले सीवर बाक्स से बॉडी निकालने के लिए ना तो आर्मी का कोई जवान आगे बढ़ रहा था और ना ही सिविल पुलिस का कोई सिपाही। लाश को बाहर निकालने के लिए भी कोई इंतजाम नहीं था।
फायर सर्विस की तो बात ही छोड़ दीजिये। चार घंटे बाद पहुंचे फायर सर्विस के जवान भी काफी देर तक तमाशबीन बने रहे।
आर्मी कैंपस के पास हुआ हादसा
घटना शनिवार सुबह साढ़े नौ बजे की है। आर्मी के रेस कोर्स के पास बनी रिहायशी कालोनी निर्भय विहार से सटा हुआ एक नवनिर्मित सीवर प्लांट है। इसके रखरखाव का जिम्मा हैदराबाद की कंपनी मेतास कंस्ट्रक्शन को है। पिछले तीन दिन से सीवर जाम होने की वजह से प्राब्लम आ रही थी.
सीवर को साफ कराने के लिए मेतास कंपनी के सुपरवाइजर संजय पाठक ने मजदूरों को लगाया था। लेकिन बिना सेफ्टी के तीस फिट गहरे सीवर की सफाई की जिम्मेदारी तीन मजदूरों को दी गयी थी।
सफाई के दौरान गिरे तीनों मजदूर
सफाई का काम शुरु हुआ तो बल्लू रावत सीवर में उतरा। बल्लू का एक हाथ दिनेश रावत ने पकड़ रखा था जबकि दिनेश का हाथ मुन्ना सिंह ने पकड़ रखा था। इसी दौरान सीवर से कचरा हटाते ही पानी का प्रेशर बन गया और बल्लू खुद को संभाल नहीं पाया और तीस फिट गहरे सीवर में गिरने लगा। बल्लू ने दिनेश का हाथ कस के पकड़ रखा था जिसकी वजह से दिनेश भी उसी सीवर में गिर गया। सबसे आखिर में मुन्ना सिंह था.
लेकिन मुन्ना सिंह सीवर में ऊपर ही फंस गया और चिल्लाने लगा। आस पास के लोगों ने मुन्ना को बचा लिया। लेकिन तब तक दिनेश और बल्लू सीवर में समा चुके थे। मुन्ना को सीवर से निकाल कर आर्मी के कमांड हास्पिटल में भर्ती कराया गया।
और तीस फीट से गिर पड़ी बॉडी
घटना की जानकारी पुलिस को दो घंटे बाद मिली। इससे पहले आर्मी के कुछ कमांडर और सूबेदार घटनास्थल पर पहुंचे। लेकिन मामला सिविल पुलिस का होने के कारण ज्यादा तवज्जो नहीं दी गई। घायल की जान बचाने के लिए उसे कमाण्ड हास्पिटल भेजने में जरुर मदद की। घटना के दो घंटे बाद पहुंची पुलिस भी कागजी कार्रवाई में उलझी रही और मरने वाले दोनों युवकों के गांव वाले ही उनकी लाश को निकालने में जी जान से जुटे रहे।
कोई व्यवस्था ना होने के कारण लाश को निकालने में दिक्कतें आईं। दिनेश का पैर दिख रहा था जिसे किसी तरह पहले निकाल लिया गया लेकिन बल्लू की लाश निकालने में काफी परेशानी हुई। फायर डिपार्टमेंट के एक कांस्टेबल पवन पाण्डेय ने थोड़ी हिम्मत जरुर दिखायी लेकिन सीवर होल पतला होने के कारण उसमें आक्सीजन सिलेंडर लेकर जाना मुश्किल हो रहा था.
वह होल में घुसे जरुर लेकिन नीचे जाने की हिम्मत नहीं हुई। इस दौरान बल्लू की लाश को किसी सूरत से रस्सी में कटिया फंसा कर ऊपर तक लाया गया लेकिन बाहर आने से पहले वह छूट गयी और लाश फिर 30 फिट नीचे जा गिरी। इसके एक घंटे बाद लाश को बाहर निकाला जा सका। आसपास जंगल होने के कारण फायर की गाड़ी वहां तक नहीं पहुंच सकी।
परिजनों ने किया हंगामा
किसी सूरत से लाश को चार घंटे की मशक्कत के बाद बाहर निकाला जा सका। तब तक मृतक के परिजनों के सब्र का बांध टूट चुका था। मृतक के परिजनों ने वहीं पर हंगामा शुरु कर दिया। कुछ मीडिया कर्मियों के साथ परिजनों की धक्का मुक्की भी हुई।
एक हफ्ते पहले हुई थी मां की मौत
घटना स्थल पर मौजूद लोगों ने बताया कि बल्लू की मां लाजो की मौत एक सप्ताह पहले हुई थी। बल्लू अपने परिवार का इकलौता नौकरी पेशा युवक था। यहां उसको चार हजार रुपये मिलते थे। जबकि दिनेश दो भाई और चार बहनों में सबसे छोटा था। दिनेश की बहन गुंजा का रो-रो कर बुरा हाल था। यही हाल दिनेश के भाई हंसराज का था। बल्लू के पिता रामप्यारे को गुमसुम बैठा अपने जवान बेटे की लाश सीवर से निकाल रहे लोगों को देख रहा था।
आर्मी ने क्यों नहीं की मदद?
खबर पाकर घटना स्थल पर सैकड़ों लोग पहुंच गये। लेकिन हर कोई यह कह रहा था कि सेना तो रेस्क्यू आपरेशन की माहिर मानी जाती है। ऐसे में सेना के लोगों ने सहयोग क्यों नहीं किया। वहीं सेना के एक अफसर ने बताया कि यह केस सिविल पुलिस का था इसलिये सेना के लोगों ने रेस्क्यू आपरेशन नहीं शुरु किया।