-मणिकर्णिका सहित हरिश्चंद्र घाट गंगा की बाढ़ में डूबे, गलियों में किया जा रहा है दाह संस्कार

-शवदाह को बने प्लेटफॉर्म के पानी में समा जाने से शव यात्रियों को घंटों करना पड़ रहा है वेट

बाढ़ के चलते गंगा का जलस्तर इतना बढ़ गया है कि मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट भी डूब चुके हैं। आपस में कई घाटों का सम्पर्क टूटा हुआ है। हरिश्चंद्र घाट पर तो हालत यह है कि यहां शवदाह के लिए पहुंचने वालों को दो से तीन घंटे तक इंतजार करना पड़ रहा है। घाट के प्लेटफॉर्म डूब जाने से शवदाह का स्थान भी बदल गया है। यहां गलियों में चिता जलाई जा रही है। कमोबेश यही स्थिति मणिकर्णिका शमशान घाट पर भी देखने को मिल रही है। यहां दाह संस्कार के चलते आसपास के मकानों की दीवारें गर्म होकर चटकने भी लगी हैं। राहगीरों को भी आने-जाने में काफी दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है लेकिन मान्यताओं को इग्नोर भी नहीं कर सकते। लिहाजा परिस्थितियों के अनुकूल ढलने को विवश हैं।

गली में जल रही है चिता

मोक्षदायिनी काशी के श्मशान हरिश्चंद्र घाट पर तो चिताओं को गलियों में जलाया जा रहा है। बाढ़ के चलते श्मशान की सभी सीढि़यां जलमग्न हो गई हैं। और तो और शवदाह स्थल भी पूरी तरह से बाढ़ के पानी में समा गए हैं। गलियों में जगह कम होने के चलते शवदाह के लिए घंटों इंतजार भी करना पड़ रहा है। चंदौली से शव लेकर दाह संस्कार को हरिश्चंद्र घाट पहुंचे जयनाथ यादव ने बताया कि सोचा था कि गंगा के तट पर शव का दाह संस्कार करेंगे पर उफनाई गंगा की वजह से गलियों में दाह संस्कार हो रहा है।

संकरी गली, कैसे आगे बढ़े कोई

हरिश्चंद्र घाट पर गलियों में लंबी लाइन की वजह से एक बार में दो से तीन ही शवदाह संभव हो पा रहा है। यही नहीं, शवदाह के लिए आने वालों को बैठने उठने की भी व्यवस्था नहीं रह गई है। मणिकर्णिका घाट तक जाने वाली संकरी गलियों में लकड़ी रखने और शवदाह के लिए आने वालों की भीड़ के चलते बाकी लोगों को आने जाने में भी परेशानी फेस करनी पड़ रही है।

कई दशक से झेल रहे पानी

यहां शवदाह करने वाले चौधरी परिवार के सदस्य पवन चौधरी की मानें तो गंगा में जब भी बाढ़ आती है तो हर वर्ष गलियों में ही शवदाह होता है और यह अनवरत कई दशकों से चला आ रहा है। बाढ़ के चलते शवदाह गलियों में करना पड़ता है। जिस पर शासन-प्रशासन का भी ध्यान नहीं है। जबकि देश दुनिया से दाह संस्कार के लिए शव 24 घंटे पहुंचते रहते है।