-नौबस्ता में दो दिन का बासी खाना खाने से दो बच्चियों की मौत, दो हॉस्पिटल में एडमिट

-जिस खाने का खाकर बीमार हुई दो बहनें, अगले दिन वही खाना खाने से दो की मौत

-फूड प्वाइजनिंग का शिकार हुई चारों बहनें, मृत बेटियों को दफनाकर पिता फिर पहुंचा हॉस्पिटल

- एडमिट दो बच्चियों की देखरेख की खातिर बेटियों की मौत पर रोने तक का वक्त नहीं मिला

KANPUR: गरीबी का दंश झेल रहे एक परिवार पर शुक्रवार को कहर टूट पड़ा। नौबस्ता में दो दिन पुराना बासी खाना खाने दो सगी बहनों की मौत हो गई। जबकि दो बहनों की हालत बिगड़ने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जहां दोनों जिंदगी और मौत के बीच झूल रही हैं। इस हादसे की वजह तो फूड प्वाइजनिंग बताई जा रही है लेकिन इसकी मूल वजह परिवार की गरीबी का आलम है। हालात ऐसे हो गए थे कि हर दो से तीन दिन में खाना बनता था। पिता ठेला लगाकर जितना भी कमा पाता था उसी से पूरा परिवार पाल रहा था। लेकिन महंगाई के इस दौर में उसकी कमाई ऊंट में मुंह में जीरा जैसी ही थी।

नहीं हो रही थी आमदनी

मूल रुप से उन्नाव निवासी बसंतू चौरसिया लवकुश विहार में 1 हजार रुपए देकर किराए के कमरे में रहता है। घर में पत्‍‌नी किरन के अलावा चार बेटियां थीं। जिसमें सबसे बड़ी दीपाली (8), खुशी(5), ईशा(4) और माही (18महीने) थी। बसंतू अंडे का ठेला लगाता है। जिससे उसे रोज दो से ढाई सौ रुपए की इंकम होती थी, लेकिन गर्मियों की वजह से कुछ दिनों से वह आमदनी भी काफी कम हो चुकी थी। सभी बच्चे प्राथमिक स्कूलों में पढ़ते थे। इतना होने के बाद भी उनके पास एपीएल कार्ड था। किरन के मुताबिक इस कार्ड से हर महीने उन्हें सस्ती दरों पर 2 लीटर मिट्टी का तेल, 18 किलो गेंहू और 7 किलो चावल मिल जाता था। लेकिन मंहगाई के दौर में इतने से भी काम नहीं चलता था तो परिवार रोज खाना न बना कर दो से तीन दिन में खाना बनाता था। उसे ही कई दिनों तक खाया जाता था।

भूख, बासी खाना और मौत

किरन ने बुधवार को दाल चावल बनाया था। गुरुवार को वही खाना दीपाली और ईशा ने खाया तो वह बीमार पड़ गई और उन्हें पास के नीशू अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। रात को बसंतू अस्पताल में ही रुक गया और किरन खुशी व माही के साथ घर में रुकी। घर में और कुछ खाने के लिए नहीं होने पर खुशी और माही ने भी वहीं खाना गुरुवार रात को खाया और सो गई। सुबह किरन सो के उठी लेकिन दोनों बच्चियां नींद से नहीं जागीं। उसने बसंतू को बुलाया और दोनों बच्चियों को अस्पताल ले गए। यहां डॉक्टर्स ने खुशी व माही को मृत घोषित कर दिया।

रोने का भी वक्त नहीं मिला

गरीबी, भूख की इस विनाशलीला में बसंतू की दो बेटियों की मौत हुई तो उसे आंसू बहाने का भी समय नहीं मिला। क्योंकि अस्पताल में भर्ती दोनों बच्चियों की तबीयत भी बिगड़ रही थी। सुबह सुबह ही वह खुाशी और माही को पांडु नदी के पास दफना के फिर वापस अस्पताल आ गया।