बिबेक देबरॉय पैनल ने कहा कि रेलवे की हालत सुधारने के लिए बड़े पैमाने पर उदारीकरण करने की आवश्यकता है. इसके चलते उसने सिफारिश की है कि प्राइवेट सेक्टर को यात्री ट्रेन और मालगाड़ी चलाने की अनुमति दी जानी चाहिए. इसके साथ ही उन्हें वैगन, कोच और लोकोमोटिव निर्माण की इजाजत दने की जरूरत पर भी उसने अपनी रिर्पोट में बल दिया है. पैनल ने रेलवे के कामों की कमर्शियल अकाउंटिंग करवाने की भी सलाह दी है.

पैनल की सबसे महत्वपूर्ण सलाह ये है कि सरकारी परिवहन के इस सबसे बड़े माध्यम को वेलफेयर कार्यक्रमों से दूर ही रहना चाहिए. पैनल ने कहा है कि रेलवे को स्कूल और हॉस्पिटल चलाने जैसे कामों से खुद को दूर रखना चाहिए.  कमेटी ने एक सरकारी एसपीवी बनाने का भी सुझाव दिया है, जिसमें भविष्य में विनिवेश किया जा सके. उसने कहा कि इस एसपीवी के पास रेलवे के इन्फ्रास्ट्रक्चर का मालिकाना अधिकार होगा. कमेटी ने सभी मौजूदा प्रॉडक्शन यूनिट्स के को बदल कर इंडियन रेलवे मैन्युफैक्चरिंग कंपनी बनाने का भी सुझाव दिया है. इसके साथ ही रेलवे स्टेशनों के लिए भी अलग कंपनी बनाने की सलाह दी गयी है.

कमेटी ने कहा कि जब निजी क्षेत्र को यात्री और मालवाहक गाड़ियां चलाने की इजाजत मिल जाए उसके बाद रेलवे बोर्ड और रेल मंत्रालय को अलग से एक स्वतंत्र नियामक संस्था बनानी चाहिए. जिसका काम किराए की दर, सर्विस कॉस्ट का निर्धारण, ट्रैक प्रबंधन, अन्य कामों के लिए तकनीकी मापदंड तय करना होगा.  पैनल ने इसके लिए एक नाम भी सजेस्ट किया है रेलवे रेग्युलेटर अथॉरिटी ऑफ इंडिया (आरआरएआई). पैनल ने ममता बनर्जी के कार्यकाल में कोलकाता मेट्रो रेल कॉर्पोशन को रेल मंत्रालय से अलग करने के फैसले को भी सही बताया है.

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