- सरकारी नौकरी के ख्वाब सजाना पड़ रहा महंगा

- नौकरी के बदले मिलती हैं पुलिस की लाठियां

- कॉन्टै्रक्ट रिन्यू न होने पर बेरोजगार हुए कर्मी

- परिवार का पेट पालना हो रहा है मुश्किल

- नौकरी के पर सरकार देती है सिर्फ आश्वासन

DEHRADUN : पढ़ाई पूरी करने के बाद एक सुनहरी नौकरी का ख्वाब हर युवा का होता है। मगर उत्तराखंड में शायद यह सपना देखना एक गुनाह बन गया है। यहां नौकरी मांगने पर या तो सरकार की अनदेखी सहनी पड़ती है, या फिर पुलिस की लाठियां। आलम यह है कि स्टेट में हजारों बेरोजगार धरने और प्रदर्शनों की राह पकड़ चुके हैं, लेकिन इन सब आंदोलनों के बदले उन्हें सरकारी नौकरी नहीं बल्कि सरकारी क्रूरता झेलने को मजबूर होना पड़ता है।

आठ सालों से है नौकरी की आस

साल ख्00म् में फिजिकल एजुकेशन का कोर्स पूरा करने वाले सैंकड़ों नौजवान नहीं जानते थे कि उन्हें नौकरी के लिए सालों इंतजार करना पड़ेगा। साथ ही अपने सपनों को पूरा करने के लिए पुलिस की लाठियों के साथ आत्मदाह तक करने की बात कहनी होगी। अब हालात यह है कि यह बेरोजगार कभी पानी की टंकी पर चढ़कर सरकार का ध्यान अपनी और अपनी मांगों पर की तरफ खींचने को मजबूर होना पड़ता है तो कभी आमरण अनशन पर जाना पड़ता है। हालिया स्थिति में भी यह बेरोजगार स्कूल्स में पीटीए टीचर की नियुक्ति की मांग को लेकर पिछले छह दिनों से आमरण अनशन पर बैठे हैं। जहां इनकी हालात लगातार गिरती जा रही है। इसके बाद भी सरकार इन्हें अनदेखा किए बैठी है।

मुख्य मांग- प्राइमरी स्कूल्स सहित सभी स्कूल्स में पीटीआई टीचर की अनिवार्य नियुक्ति।

'हमारी छह सूत्रीय मांग हैं, लेकिन सरकार हमारी मांगों को लेकर संजीदा रुख नहीं अपनाती। आधे से ज्यादा लोग नौकरियों की आस में ऐज लिमिट भी क्रॉस कर चुके हैं। फिर भी सरकार हम पर मेहरबान नहीं हैं। अब तो घर चलाने के लिए भी कोई साधन नहीं है। पूरा परिवार सरकार की अनदेखी का शिकार हो रहा है.'

-सुदंर धोनी , स्टेट प्रेसीडेंट, बीपीएड-एमपीएड बेरोजगार संगठन

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चार महीने से बिना सैलरी कर रहे काम

राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान (रमसा) के तहत प्राइवेट आउटसोर्सिग एजेंसी के जरिए से स्कूल्स में तैनात किए गए लैब व ऑफिस असिस्टेंट्स सेवा विस्तार की मांग को लेकर भ्फ् दिनों से आंदोलनरत हैं। पहले निदेशालय पर धरना प्रर्दशन करते रहे, बाद में बात न बनने पर सचिवालय ट्यूजडे को सचिवालय कूच किया, लेकिन हालात अभी भी जस के तस बने हुए हैं। प्रदर्शन कर रहे कार्मिकों की शाम चार बजे तक किसी अधिकारी से वार्ता नहीं हो पाई और वे बैरिगेडिंग पर ही धरने पर डटे रहे। देर शाम अपर सचिव शिक्षा राधिका झा ने तीन दिन में समाधान का आश्वासन दिया तो वे वापस लौटे। कर्मियों को स्टेट में निजी एजेंसी के माध्यम से तैनाती की गई थी। उनका कॉन्ट्रैक्ट मार्च ख्0क्ब् में पूरा हो गया था। इसके बाद उन्होंने सेवा विस्तार के लिए शिक्षा मंत्री और सीएम से मुलाकात की तो उन्हें स्कूलों में सेवाएं जारी रखने का मौखिक आदेश मिला। इसके बाद सभी सहायक सेवाएं देते रहे। जब चार माह तक वेतन नहीं मिला तो कार्मिकों ने मजबूरन आंदोलन की राह पकड़ी।

प्रमुख मांग- स्कूल्स में कॉन्ट्रैक्ट रिन्यूवल और पीआरडी के माध्यम से तैनाती जी जाए।

'भ्फ् दिनों से आंदोलनरत हैं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। मजबूर होकर सचिवालय कूच किया। शासन की ओर से तीन दिन में मुख्य सचिव, पीआरडी और शिक्षा विभाग के साथ वार्ता कर समाधान का आश्वासन दिया। अब भी मांगे पूरी नहीं हुई तो एजुकेशन मिनिस्टर के घर के आवास पर डेरा डाला जाएगा।

-सुभाष लखेड़ा, स्टेट प्रेसीडेंट, रमसा आउटसोर्स कर्मचारी संगठन

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8म्क् दिन से लगा रहे गुहार

शिक्षा आचार्य/ अनुदेशक प्रा./ उ.प्रा/ संगठन पिछले 8म्क् दिनों से रायुपर बस स्टैंड पर धरना दे रहे हैं। फ् जून ख्0क्ख् से आंदोलनरत शिक्षा आचार्यो की मांग है कि उन्हें शिक्षा मित्र में समायोलन किया जाए। हालांकि इस मामले में ख्8 फरवरी को कैबिनेट की बैठक में सभी 9क्0 आचार्यो के समायोजन के प्रस्ताव पर सहमति की मुहर लग गई थी, लेकिन आठ महीने बीत जाने के बाद भी अब तक मामले में कोई शासनादेश जारी नहीं हुआ। अब थक कर आंदोलनकारियों ने उग्र आंदोलन का मन बनाया है। जिसके लिए स्टेट भर के सभी आचार्यो का अह्वान किया है। आदंलनकारियों ने सरकार से जल्द कोई कदम न उठाए जाने की स्थिति में आत्मदाह तक करने की चेतावनी दी है। लेकिन इन सब के बाद भी अब तक सरकार ने इनकी कोई सुध नहीं ली।

मुख्य मांग- 9क्0 शिक्षा आचार्यो को शिक्षा मित्र में समायोजन करना।

'हमारे आचार्यो ने क्0-क्0 साल से स्कूल्स में सेवाएं दी, लेकिन उन्हें समायोजित नहीं किया जा रहा। जबकि इस मामले में कैबिनेट में भी फैसला लिया जा चुका है। तीन साल से ज्यादा वक्त हो गया आंदोलन को। सरकार को कोई फर्क नहीं पड़ रहा है। मजबूर होकर आंदोलन को उग्र करने का फैसला किया है।

-परविंद्र कुमार, प्रदेश महामंत्री, शिक्षा आचार्य/ अनुदेशक प्रा./ उ.प्रा/ संगठन

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नौकरी के बदले मिली लाठी

बीएड-टीईटी प्रशिक्षित दो सूत्रीय मांगों को लेकर आंदोलनरत हैं। प्राथमिक स्कूलों में सहायक अध्यापक के पदों पर काउंसिलिंग के बाद रिक्त बचे पदों, बढ़ाए गए फ्89 पदों और आपदाग्रस्त जिलों के लिए सृजित करीब 7भ्0 पदों के लिए एक शासनादेश जारी करने और पांच मार्च की कैबिनेट में बढ़ाए गए क्800 पदों पर नियुक्ति को शासनादेश तत्काल किए जाने की मांग को लेकर प्रशिक्षितों ने मंडे को सचिवालय कूच भी किया। जहां इन पर पुलिस ने जमकर लाठियां बरसाई। इस बीच दर्जनों प्रशिक्षितों को चोटें भी आई। दो प्रशिक्षितों के सर पर पुलिस की लाठी सर पर पड़ने से गंभीर रूप से घायल हो गए, लेकिन इस सब के बाद भी सरकार इनकी परेशानी को लेकर कोई फैसला नहीं कर रही। महासंघ के प्रवक्ता गजेंद्र जोशी ने बताया कि वार्ता में अपर मुख्य सचिव ने दो माह में कार्रवाई का आश्वासन दिया। इससे वे सहमत नहीं है। सीएम को ज्ञापन भेजा गया है, अगर जल्द मांगें पूरी नहीं हुई तो अब सीएम आवास घेरा जाएगा और आंदोलन को और उग्र किया जाएगा।

मुख्य मांग- रिक्त बचे पदों, बढ़ाए गए फ्89 पदों और आपदाग्रस्त जिलों के लिए सृजित करीब 7भ्0 पद और पांच मार्च की कैबिनेट में बढ़ाए गए क्800 पदों पर नियुक्ति।

'सरकार नियुक्ति को लेकर गंभीरता नहीं बरत रही है। लंबे आंदोलन के बाद कुछ प्रशिक्षितों को नियुक्त किया गया, लेकिन अभी भी सैंकड़ों प्रशिक्षित बेराजगार हैं। सरकार पुलिस की लाठियों के दम पर हमारी आवाज दबाना चाहती है। हम आंदोलन से पीछे नहीं हटेंगे।

-मनवीर रावत, प्रेसीडेंट, बीएड- टीईटी प्रशिक्षित महासंघ

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भ्क् दिनों से दे रहे धरना

सरकार के उपक्रम उपनल के कर्मी करीब क्क्0 सरकारी विभागों में कार्यरत हैं। स्टेट के तमाम विभागों में कर्मचारियों की संख्या करीब क्7,7भ्0 है। इन कर्मियों में से हाल ही में ख्00 कर्मचारी विभागों से हटा दिए गए। उपनल के यह ख्00 कर्मी अब विभागों में वापस लिए जाने की मांग को लेकर आंदोलनरत हैं। मामले में पिछले दिनों प्रदर्शन के दौरान पुलिस की लाठियों को सामना भी करना पड़ा था। इसके बाद भी प्रदर्शनकारी अपनी मांग को लेकर धरने पर डटे हुए हैं। इसके अलावा कर्मचारियों की मांग हैं कि उपनल सरकार का उपक्रम है इसलिए उन्हें ख्0क्फ् सेवानियमावली में शामिल करने की भी मांग कर रहे हैं।

मुख्य मांग- सभी ख्00 कर्मियों को विभागों में वापस तैनाती दी जाए, ख्0क्फ् सेवा नियमावली में शामिल किया जाए।

'क्क्0 विभागों में करीब क्7,7भ्0 कर्मी तैनात हैं, जिनमें से ख्00 को विभागों से हटा दिया गया। अब ऐसे में वह अपने परिवार को कैसे चलाएंगे। सरकार ने इसे लेकर घोषणा भी की थी, लेकिन अब तक इसे लेकर कोई शासनादेश जारी नहीं किया गया।

-भावेश जगूड़ी, प्रेसीडेंट, उपनल कर्मचारी संगठन

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आंदोलनों पर होते हैं लाठीचार्ज

स्टेट में इस वक्त आंदोलनों का दौर चल रहा है। विभागों पर गौर करें तो तकरीबन सभी विभागों में आंदोलन और धरना प्रदर्शन चल रहे हैं। इन धरने प्रदर्शनों के बीच कई बार पुलिसिया बरबरता का सामना भी आंदोलनकारियों को करना पड़ता है। हाल के मामलों पर गौर करें तो पिछले दिनों बीएड-टीईटी प्रशिक्षितों पर पुलिस द्वारा लाठीचार्ज किया गया। इस से पूर्व आंदोलन के चलते टंकी पर चढ़े इस बीच बीपीएड-एमपीएड बेरोजगारों पर पुलिस द्वारा बल प्रयोग। इसके अलावा उपनल कर्मियों को भी कई बार पुलिस के कहर का सामना करना पड़ा है।