दरअसल मुकदमे के चक्कर में 650 किलोमीटर जाना और वहां से एक नई तारीख लेकर वापस आ जाना कितना तकलीफदेय होता है, इसका अंदाजा सिर्फ और सिर्फ एक पीडि़त ही लगा सकता है। बेंच बनेगी तो वादकारियों का पैसा और वक्त बचेगा। साथ में वकीलों को भी मुनाफा होगा। इसी बात की लड़ाई चल रही है।

यह था बवाल
वकीलों की हाइकोर्ट बेंच संघर्ष समिति ने बेंच की मांग को लेकर सप्ताह में दो दिन कचहरी की तालाबंदी का निर्णय लेते हुए बुधवार को बार एसोसिएशन अध्यक्ष उदयवीर राणा के नेतृत्व में कचहरी परिसर में तालाबंदी कर दी थी। कचहरी के सभी गेटों पर तालाबंदी करने के बाद गेट पर नारेबाजी की जा रही थी। डीएम नवदीप रिनवा को अंदर जाने से रोक दिया गया था। जिसको लेकर वकीलों से डीएम की काफी हॉट-टॉक हुई थी। वकीलों को थाने तक भी ले जाया गया था। इसके चलते वकीलों ने डीएम के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया था।

अब ये हुआ
गुरुवार को वकील सुबह होते ही कचहरी परिसर के सभी गेटों पर ताले लगाने पहुंच गए थे। कचहरी के सभी गेट पर ताले लगाकर एसएसपी ऑफिस के पास वाले गेट पर आकर बैठ गए। जहां डीएम के विरोध में नारेबाजी हुई। डीएम का पुतला भी फूंकने की तैयारी थी। पुतला लाया गया लेकिन उसको जलाया नहीं गया। दोपहर बाद तक वकील गेट पर बैठे नारेबाजी करते रहे और बेंच की मांग जारी रखी। वहीं शाम होते-होते वकीलों की मीटिंग कमिश्नर के साथ फिक्स हुई। जहां डीएम भी मौजूद रहे। बातचीत हुई और शांति के साथ प्रदर्शन जारी रखने की बात हुई।


वेस्ट में बेंच जरूरी
इलाहाबाद में हाईकोर्ट की स्थिति देखें तो लाहौर भी पास है मेरठ से पास पड़ता है। मेरठ से लाहौर की दूरी 500 किलोमीटर है। जबकि मेरठ से इलाहाबाद की दूरी 607 किलोमीटर है। सहारनपुर से इलाहाबाद 752 किलोमीटर और लाहौर 380 किलोमीटर है। ऐसे में एक व्यक्ति यहां से छह सौ किलोमीटर जाकर अपना केस लड़ता है।

तारीख पर तारीख
इलाहाबाद हाईकोर्ट में सबसे ज्यादा मामले वेस्ट यूपी के जिलों के हैं। इनमें भी मेरठ मंडल के अधिक केसेज वहां चल रहे हैं। जिससे वहां के वकील जमकर कमाई करते हैं। वेस्ट का पैसा मानो ईस्ट में पहुंच रहा है। लोगों को तारीख पर तारीख मिलती रहती हैं और केस चलता रहता है। फाइनल होने की तो स्थिति ही नहीं आती।

एक नजर इतिहास पर
- 1955 में तत्कालीन मुख्यमंत्री संपूर्णानंद ने मेरठ में हाईकोर्ट बेंच बनाने की मांग की थी।
- 1977 के चुनावों में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी यही मांग दोहराई गई थी।
- 1981 में स्टेट गवर्नमेंट ने सेंटर से बेंच की डिमांड की थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजवी गांधी ने मेरठ बार एसोसिएशन के वकीलों को आश्वासन दिया था कि बेंच बनाई जाएगी।
- 1981 में जसवंत सिंह कमीशन बनाया गया। कमीशन ने रिपोर्ट अप्रैल 1985 में फाइल की। रिपोर्ट में वेस्ट यूपी में बेंच बनाने की सिफारिश की गई। लेकिन सेंट्रल गवर्नमेंट ने इन सिफारिशों को इग्नोर कर दिया। जबकि बाकी रिकमेंडेशन पर महाराष्ट्र के औरंगाबाद में बेंच बना दी गई।
- मई 1981 से ही वकीलों ने हर शनिवार को हड़ताल रखने का फैसला किया।
- आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस वीवी राव ने मार्च 2010 में कहा था कि ‘अगर यही हालात रहे तो पूराने 31.28 मीलियन मुकदमों को निपटाने में ही हमें 320 साल लग जाएंगे’।
- यूपी देश के बड़े स्टेट में आता है और वेस्ट यूपी के जिलों से सबसे अधिक केसेज हाईकोर्ट पहुंचते हैं।
- सभी स्टेट की तुलना में सबसे कम बेंच यूपी के पास।
- 2011 में देश के टोटल क्राइम का 33.3 परसेंट यूपी में हुआ।
- सभी स्टेट की हाईकोर्ट की तुलना में सबसे ज्यादा मुकदमे यूपी में पेंडिंग।

 

"वेस्ट में बेंच आती है तो इससे पब्लिक को फायदा होगा। वेस्ट से हजारों लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर जाते हैं। इसके बाद भी उनके केस फाइनल नहीं होते."
- अनिल बख्शी, वरिष्ठ अधिवक्ता  

" हम बेंच को लेकर ही रहेंगे। इसके लिए हमें कुछ भी करना पड़े। जो लोग सैकड़ों मील दूर जाकर अपने केस लड़ते हैं उनको यहीं यह सुविधा मिलने लगेगी."
- कौसर नदीम, उपाध्यक्ष मेरठ बार एसोसिएशन