RANCHI: राजधानी में इस साल डेंगू ने दस्तक दे दी है। रिम्स में एक सस्पेक्टेड मरीज को एडमिट कराया गया था, जो राजधानी के सबसे पॉश इलाका अशोक नगर का रहनेवाला था। हालांकि इलाज के बाद उसे रिम्स से छुट्टी दे दी गई है। वहीं मलेरिया के एक मरीज का भी इलाज रिम्स में चल रहा है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर में किस कदर मच्छरों का प्रकोप बढ़ गया है। इसके बावजूद रांची नगर निगम की ओर से शहर में फॉगिंग बंद कर दी गई है। फागिंग के नाम पर हर महीने छह-सात लाख रुपए नगर निगम खर्च करता है। वहीं, दवा छिड़काव के लिए भी डेढ़ से दो लाख रुपए खर्च किए जाते हैं। जबकि वीआइपी इलाकों में फागिंग कराने में नगर निगम कभी लापरवाही नहीं करता।

फॉगिंग के लिए तैयार किया था रोस्टर

वार्डो के हिसाब से नंबर भी जारी किए गए थे, ताकि जिन इलाकों में फागिंग नहीं होगी तो फोन कर लोग फॉगिंग के लिए बुला सकेंगे। लेकिन अधिकतर मशीनें काम ही नहीं करतीं। जबकि दो गाडि़यां वीआइपी इलाकों में फागिंग कराने के लिए रिजर्व रखी गई हैं। इसके बाद 15 गाडि़यों में से जो गाडि़यां बचीं, वो आम जनता के लिए रखी गई हैं। लेकिन ये गाडि़यां फागिंग के लिए कभी-कभार ही निकलती हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि फागिंग के नाम पर केवल आईवाश किया जा रहा है।

वार्ड बदलने से रोस्टर का निकला दम

सिटी में पहले 55 वार्ड थे। उसी हिसाब से फागिंग कराने का रोस्टर तैयार किया गया था। ऐसे में हर इलाके में हफ्ते में दो बार फॉगिंग करने का नियम बनाया गया था। कुछ दिनों पहले व्यवस्था पटरी पर लौट आई थी। लेकिन परिसीमन के बाद वार्ड का इलाका बदल गया। वहीं वार्ड भी घटकर 53 हो गए। इसके अलावा वार्ड के मोहल्ले भी बदल गए। इससे गाडि़यां फॉगिंग के लिए किस इलाके में जाएगी, इसे लेकर समस्या खड़ी हो गई है।

13 लाख की आबादी पर सिर्फ 9 गाडि़यां

रांची सिटी की आबादी लगभग 13 लाख है। इस हिसाब से फॉगिंग के लिए मशीनें भी होनी चाहिए। लेकिन नगर निगम के पास केवल 15 ऑटो है जिससे कि पूरे शहर को कवर किया जाता है। उसमें भी चार-पांच गाडि़यां गैरेज में ही रहती हैं। दो गाडि़यां वीआइपी के लिए रिजर्व हैं। लाखों लोगों को छोड़कर रांची नगर निगम केवल 44 लोगों की सेवा में जुटा हुआ है।

वर्जन

ऐसी कोई जानकारी तो मुझे नहीं है। अगर सिटी में फॉगिंग नहीं हो रही है, तो गलत है। शहर में तत्काल फॉगिंग कराने का आदेश संबंधित अधिकारियों को दिया जाएगा।

-डॉ। शांतनु कुमार अग्रहरि, नगर आयुक्त, आरएमसी

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मच्छर के काटने से फैलता है डेंगू

डेंगू से पीडि़त मरीज को जब एडीस मच्छर काटता है तो वह उस मरीज का खून चूसता है। खून के साथ डेंगू वायरस भी मच्छर के शरीर में चला जाता है। वही मच्छर जब किसी और इंसान को काटता है तो उससे वह वायरस उस इंसान के शरीर में पहुंच जाता है। ऐसे में 3-4 दिनों के बाद डेंगू बुखार के लक्षण दिखने लगते हैं। वहीं मरीज का प्लेटलेट्स भी घटने लगता है। ऐसे में प्लेटलेट्स दस हजार से नीचे चला जाए तो मरीज की जान भी जा सकती है।

ये हैं लक्षण

-ठंड के साथ तेज बुखार

-सिर और ज्वाइंट्स में पेन

-आंखों के पिछले हिस्से में दर्द

-बहुत ज्यादा कमजोरी

-भूख न लगना

-मुंह का स्वाद खराब होना

-गले में दर्द होना

-बॉडी पर लाल रैशेज

-नाक और मसूढ़ों से खून

-शौच या उलटी में खून आना

इनका रखें ध्यान

-ठंडा पानी न पीएं

-मैदा और बासी खाना न खाएं

-खाने में हल्दी, अजवाइन, अदरक, हींग का इस्तेमाल

-आसानी से पचने वाला हल्का खाना खाएं

-पूरी नींद लें

- पानी को उबालकर पीजिए

-मसाले और तला हुआ खाना न खाएं

-नारियल पानी, नीबू पानी खूब पीजिए