स्कूली बच्चों का किया जाएगा परीक्षण

विभाग करेगा जागरूक, मेरठ समेत कई जिलो में चलेगा अभियान

Meerut। वेस्ट यूपी के जिलों में भी अब फाइलेरिया (हाथी पांव) का खतरा पैदा हो गया है। इसके मद्देनजर स्वास्थ्य विभाग एक-एक मरीज को ढूंढने की कवायद में जुट गया है। शासन के निर्देशों पर विभाग की ओर से जिले भर में अभियान चलाया जा रहा है ताकि फाइलेरिया से संक्रमित या संदिग्ध मरीज की पहचान की सके। इसके साथ ही स्कूलों में भी बच्चों का परीक्षण करवाया जाएगा। हालांकि वेस्ट यूपी में अभी तक फाइलेरिया से संक्रमित मरीज के मिलने की पुष्टि नहीं हुई है।

मिनी टास्क कार्यक्रम आयोजित

लिमफैटिक फाइलेरियासिस के तहत नॉन इनडेमिक जिलों में फाइलेरिया रोग की इनडोमिसिटी के सत्यापन के लिए मिनी टास्क कार्यक्रम चलाया जा रहा है। यह कार्यक्रम 16 नवंबर तक आयोजित होगा। इसके तहत जिले के सभी ब्लाकों में टीम लगाकर लोगों में जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसके अलावा 14 वर्ष की आयु के बच्चों के एंटीजेनिमिया टेस्ट करवाकर जांच भी की जा रही है। शासन के निर्देशों के मुताबिक पूर्वाचल से आने वाले लोगों में इसका संक्रमण फैलने की आशंका है।

मच्छर के काटने से फाइलेरिया

फाइलेरिया बीमारी मच्छर के काटने से फैलता है। यह फ्लूलेक्स व मैनसोनाइडिस प्रजाति के संक्रमित मच्छर के काटने से होता है। मच्छर के काटने से फाइलेरिया का वायरस व्यक्ति के ब्लड में मिल जाता है और नसों को प्रभावित करते हैं। इसके जीव व्यक्ति की नसों में रहते हैं और मादा वायरस खून में ही लार्वा को जन्म देते हैं। मच्छर एक धागे समान परजीवी को खून में छोड़ देता है। यह बीमारी कई सालों बाद सामने आती है।

इन जिलों में चलेगा अभियान

शासन के निर्देशों के तहत यह अभियान वेस्ट यूपी के लगभग सभी जिलों में चलेगा। इसमें मेरठ, मुजफ्फरनगर, शामली, सहारनपुर, हापुड़, बिजनौर, अमरोहा, संभल, मुरादाबाद, बरेली, बदायूं, रामपुर आदि शामिल हैं।

फाइलेरिया के लक्षण

फाइलेरिया से शुरुआत में कोई लक्षण महसूस नहीं होते। लेकिन जब इसके वायरस मर जाते हैं तो किडनी प्रभावित हो जाती है। पैरों व शरीर के अन्य हिस्सों में गंभीर सूजन, त्वचा पर लाल चकत्ते व रंग में बदलाव, ब्लाइंडनेस, पेट में दर्द आदि परेशानियां होने लगती हैं। लंबे समय तक सूजन से शरीर में विकलांगता आ जाती है।

इस बीमारी के संक्रमण का खतरा पूर्वी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों से बढ़ जाता है। 2020 तक सरकार इस रोग को पूरी तरह से खत्म करना चाहती है। इसलिए ही यह अभियान चलाया जा रहा है।

योगेश सारस्वत, एडीएमओ, मेरठ