शहर में कूड़ा हटाने के नाम पर बड़े पैमाने पर हो रही धांधली

 

Meerut: नगर निगम में कूड़ा निस्तारण के नाम पर हर माह लाखों का खेल हो रहा है। निगम की जो गाडि़यां डिपो के भीतर आराम कर रही होती हैं, उनके नाम पर निगम अफसर रोजाना हजारों लीटर डीजल डकार जाते हैं। निगम में हो रही डीजल की इस हेराफेरी में डिपो प्रभारियों के साथ-साथ विभाग के आला अफसर भी शामिल हैं। यही कारण है कि विभाग में कई बार डीजल घोटाले के खुलासे के बाद भी उच्च अधिकारी चुप्पी साधे हुए हैं।

 

रोजाना तीन हजार लीटर

नगर निगम में रोजाना तीन हजार लीटर डीजल खरीदा जा रहा है। दरअसल, नगर क्षेत्र में कंकरखेड़ा, दिल्ली रोड और सूरजकुंड तीन वाहन डिपो हैं। इनमें से प्रत्येक में रोजाना एक-एक हजार लीटर डीजल खरीदा जाता है। हालांकि डिपो प्रभारी खरीदे गए पूरे डीजल की खपत होने का दावा करते हैं, लेकिन डिपो के भीतर इस तेल का बड़ा खेल होता है।

 

गाड़ी नहीं घर चलता है

नाम न छापने की शर्त पर कंकरखेड़ा डिपो के कर्मचारी ने बताया कि साहब डीजल से निगम की गाड़ी नहीं बल्कि अधिकारियों का घर चलता है। कर्मचारी के मुताबिक डिपो में मौजूद वाहनों के अनुसार शहर में केवल 1200 लीटर डीजल की खपत है, जबकि बाकी के डीजल की रकम बनकर अपने-अपने ठिकानों पर पहुंच जाती है। कर्मचारी ने बताया कि डीजल की इस खरीद फरोख्त में ऊपर से लेकर नीचे तक इस कदर मिलीभगत है कि एक बार मामले की शिकायत करने पर उसको सस्पेंड कर दिया गया था।

 

यहां होता है खेल

नगर निगम में डीजल का फूल प्रूफ खेल खेला जाता है। इस गेम के अंतर्गत डिपो में रखे रजिस्टर में क्रमांक और गाड़ी संख्या के बाद चालक के हस्ताक्षर वाले कॉलम में ड्राइवर के साइन करा लिए जाते हैं, जबकि डीजल की मात्रा वाला कॉलम खाली छोड़ दिया जाता है। इसके बाद पेट्रोल पंप से डीजल लाने को लेकर ड्राइवर को निर्देश दे दिए जाते हैं। अब असल खेल यहीं से शुरू होता है। जितना डीजल ड्राइवर पेट्रोल पंप से उठाता है। उससे दुगने डीजल की मात्रा रजिस्टर के खाली पड़े कॉलम में अंकित कर देते हैं।

 

शहर बना डंपिंग ग्राउंड

नगर निगम में डीजल को लेकर हो रही धांधली केवल यहीं नहीं निगम से बाहर भी जारी रहती है। निगम की जिन गाडि़यों में कूड़ा लोड कर उनको लैंड फिल ग्राउंड में डंप करने का निर्देश मिलता है। वो ही गाड़ी चालक लैंड फिल ग्राउंड दूर होने और तेल बचाने के चक्कर में शहर में कोई खाली जगह देख कर वहां कूड़ा डाल आते हैं। इस तरह से वाहन चालक भी अच्छी खासी मात्रा में गाडि़यों का डीजल बचाकर बेच डालते हैं। उधर, तेल के इस खेल में कूड़ा अपने गंतव्य स्थान पहुंचने के बजाए शहर में ही इधर-उधर खाली जगह या सड़कों के किनारे पड़ा रहता है।

 

शहर में 850 मीट्रिक टन कूड़ा

नगर निगम की मानें तो शहर से इस समय 850 मीट्रिक टन कूड़ा बाहर निकल रहा है। वो बात अलग है कि यह कूड़ा शहर में ही जहां तहां फेंक दिया जाता है।

 

 

मिस यूज यहां भी

नगर निगम अफसरों की मानें तो जेएनएनयूआरएम योजना के अंतर्गत कूड़ा निस्तारण और सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट में दस करोड़ रुपया खर्च किया गया था, लेकिन शहर का कूड़ा आज भी शहर में दिखाई देता है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि निगम में धन का मिस यूज केवल डीजल ही नहीं बल्कि अन्य साधनों में भी किया जाता है।

 

जेएनएनयूआरएम

योजना के शहर में कूड़े के डिस्पोजल के लिए कई प्रोजेक्ट लगाए जाने थे, लेकिन अधिकारियों की लापरवाही और इच्छाशक्ति के अभाव में कोई भी कार्य योजना परवान नहीं चढ़ सकी। योजना के अंतर्गत मेरठ शहर के हिस्से में 341.302 करोड़ रुपए बजट आया था। इस बजट के माध्यम से शहर में 57 वाटर ट्रीटमेंट प्लांट, 21 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और 31 टैंक बनाए जाने थे, लेकिन आज तक ये सारे काम अधर में लटके पड़े हैं।

 

 

डिपो में डिमांड के हिसाब से रोजाना लगभग एक हजार लीटर डीजल खरीदा जाता है। यह डीजल कूड़ा निस्तारण के दौरान इस्तेमाल होने वाली गाडि़यों में खर्च किया जाता है।

-धर्मेश, प्रभारी सूरजकुंड डिपो

 

 

डिपो में खड़े वाहनों के हिसाब से डीजल खरीद की व्यवस्था है। यदि कहीं कोई धांधली है तो जांच कराई जाएगी।

-डॉ। प्रेम सिंह, नगर स्वास्थ अधिकारी

 

नगर निगम यदि डीजल के नाम पर धांधली हो रही है तो इसकी जांच कराई जाएगी। जनता के पैसे का किसी भी कीमत पर दुरुपयोग नहीं होने दिया जाएगा।

-हरिकांत अहलूवालिया, मेयर