Lucknow:  नबाबों की नगरी में पीने के पानी की समस्या बढ़ती जा रही है। पानी में मिल रहे हानिकारक रसायनों की बात करें तो वह दिन दूर नहीं जब यहां पीने के पानी का अकाल पडऩे वाला है। लखनऊ में पिछले कुछ दशकों में जिस अनुपात में पापुलेशन बढ़ी है उस अनुपात में दूसरे सोर्स नहीं बढ़े। पानी भी इनमें से एक है.
जनगणना 2011 के आंकड़ों के अनुसार इस समय यहां की जनसंख्या 45 लाख से ऊपर है जबकि 1981 में यह आंकड़ा मात्र 10 लाख से कुछ ज्यादा था। इन सालों में वाटर टेबल लगातार डाउन हुआ है और पानी में इम्प्योरिटीज कई गुना बढ़ी है.
लखनऊ के लिए 2006 में बने मास्टर प्लान में 2021 तक सिटी की पापुलेशन 44 से 45 लाख होने का अनुमान था जबकि यह आंकड़ा वर्ष 2011 में ही पार कर गया है। आज लखनऊ को करीब 7.5 एमएलडी पानी की आवश्यकता है, जबकि कुछ समय पहले अवलेबिलिटी सिर्फ  475 एमएलडी की थी। थर्ड वाटर प्लांट से कुछ राहत तो मिलेगी पर यह नाकाफी है.
वाटर या केमिकल
लखनऊ में नगर निगम की ओर से सप्लाई होने वाले 20 अलग-अलग जगह लिए गए नमूने के परीक्षण में सामने आया है कि पानी की हार्डनेस बढ़ी है। साथ ही क्लोराइड, फ्लोराइड और सल्फोनेट जैसे तमाम रसायनों की मात्रा भी 2010 से तेजी से बढ़ी है। डिजीज काज करने वाले माइक्रोबैक्टीरिया भी बड़ी मात्रा में पाए गए हैं। एलयू के रिसर्च स्कॉलर शशांक मिश्रा के अनुसार लखनऊ का दिल कहे जाने वाले हजरतगंज और सीएसएमएमयू के आस-पास के वाटर में केमिकल की क्वांटिटी मैक्सिमम है.
स्वास्थ्य पर खतरा
पानी में केमिकल और माइक्रोबैक्टीरिया कई डिजीज पैदा करती है। इन बीमारियों में टाइफाइड, बुखार, पेचिश, डायरिया, हेपेटाइटिस, पोलियो मेन हैं। पिछले दो तीन सालों में सिटी के कई एरियाज में डायरिया और टाइफाइड के चलते कई मौतें भी हुई हैं।
गिरता जलस्तर
वाटर अवलेबिलिटी के लिहाज से लखनऊ काफी रिच था। वाटर के इतने रिसोर्स होने से कभी सोचा नहीं गया था कि यहां भी वाटर प्राब्लम हो सकती है पर आज कई प्लेसेज पर वाटर टेबल 3 से 5 मीटर तक गिरा है.
खत्म हुए पोखर और बाबली
लैंड रिकार्ड से पता चलता है कि कभी यहां कुल 846 पोखर और तालाब हुआ करते थे। पोखरों का निर्माण नवाबों ने करवाया था। बाद में धीरे धीरे ये गायब होते गए। आज अगर इनकी खोज की जाये तो कुल मिलाकर इनकी संख्या 100 भी नहीं पहुंच पाती। इनमे से कई सही रखरखाव के अभाव में सूख गए तो कई अतिक्रमण का शिकार हो गए। पुराने जानकारों की मानें तो आज कई तालाबों के स्थान पर बहुमंजिला इमारतें खड़ी हैं। कई का सरकार ने भी अन्य तरीकों से इस्तेमाल कर लिया.
शहर के जूलॉजिस्ट ध्रुवसेन सिंह के अनुसार पानी का हमने बहुत अधिक दोहन किया है जबकि वाटर रिचार्ज करने के उपाय नहीं किए है। इस तरफ  ध्यान देने की आवश्यकता है। सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होंगी ताकि घर बनने से पहले वाटर रिचार्ज का ख्याल रखा जाए। शहर के इतिहासपर काफी काम कर चुके डा। योगेश प्रवीन तालाबों पर एलडीए व अन्य प्राइवेट तरीके से बनाई गई इमारतों को अमानवीय करार देते हैं.
नहीं हो रहा वाटर रिचार्ज
इस शहर को कभी बागों के शहर के नाम से जाना जाता था आज इसकी पहचान पत्थरों के पार्क के रूप में ज्यादा की जा रही है। सड़कों के किनारे पेड़ गायब हैं और फुटपाथ पर टाइल्स लग गई हैं। पार्कों में भी खुली जगह पत्थर लगे हैं ऐसे में बारिश में पानी बहकर बेकार हो जाता है और वाटर टेबल नीचे बना रहता है। तालाबों की संख्या घटने से जो स्थिति बिगड़ी थी वह इसके बाद से और भी गंभीर हो गई है.
सिटी के ट्रेडिशनल वाटर रिसोर्स
सिटी के ट्रेडिशनल वाटर रिसोर्स में अब वही कुछ बचे हैं जिन्हें किसी धार्मिक मान्यता से स्वीकार लिया गया। पर ये भी अब बदहाल हो चुके हैं। इसमें से सूरजकुंड पर एक पम्पिंग स्टेशन भी है जहां अभी बहुत सुधार कि जरूरत है। लखनऊ के प्रसिद्ध बड़ा इमामबाड़ा में एक बावली है जिसका जल स्तर लगातार गिरता जा रहा है। राजा टिकैत राय का तालाब भी अब सिर्फ नाम के लिए तालाब रह गया है। हुसैनाबाद तालाब के गोमती नदी से जुड़ा होने के कारण पानी उसके जल स्तर के हिसाब से ही रहता है। कभी यहां पर गर्म पानी का एक प्राकृतिक सोता भी हुआ करता था पर अब वह ख़त्म हो चुका है.
चांदगंज का तालाब भी अब सूख चुका है। मोती झील में अभी पानी है पर गन्दगी इसे बेकार बना देती है। इसी के बगल में बूचडख़ाना भी है। इसके लिए कई योजनायें भी बनीं पर कोई फायदा नहीं हुआ। बख्शी का तालाब में भी पानी नाममात्र ही बचा है। इस तरह सिटी में वाटर रिसोर्स की कोई कमी आज भी नहीं है पर सही रखरखाव के अभाव में ही पानी की कमी है.
गोमती नदी भी लखनऊ के लिए वरदान थी पर अब इसका जलस्तर काफी गिर चुका है। साथ ही पॉल्यूशन इतना बढ़ गया है कि वाटर ट्रीटमेंट की लागत कई गुना बढ़ रही है। पॉल्यूशन का बड़ा रीजन इसमें गिरने वाले 27 नाले थे। इनसे पूरा शहर का कचरा आकर गोमती में ही गिरता था.
बरबादी और चोरी है असली वजह
पानी की कमी का एक रीजन बर्बादी भी है। 2006 में सिटी के लिए बने प्लान में जल संस्थान के एक अनुमान के मुताबिक कुल टोटल वाटर का करीब 53 फीसदी रिसाव और चोरी में बर्बाद हो जाता है। जल संस्थान ने यह भी माना था कि ऐसी परिस्थितियों में शहर में पानी की इस बर्बादी को रोकना भी संभव नहीं है। इसके लिए जल प्रबंधन की सही नीतियों की और बुनियादी बदलाव की दरकार है.
तब से अब तक इस दिशा में कोई भी बड़ा कदम नहीं उठाया जा सका है। पानी की बर्बादी में कोई कमी नहीं आई है। 2010 में जल निगम ने कहा कि लोग वाटर स्टोर करके रखते हैं इससे काफी बर्बादी होती है। अगर चौबीस घंटे पानी की सुविधा दे दी जाए तो बर्बादी पर लगाम लग सकती है। इस दिशा में कार्ययोजना की बात कही गई थी पर समय बीतने के साथ ही बात आई गई हो गई। इसी तरह से पानी की चोरी पर भी लगाम नहीं लग पा रहा है.
कठौता में बने थर्ड वाटर प्लांट से जरूर कुछ उम्मीदें हैं। ऐशबाग और गऊघाट के पहले और दूसरे वाटर वर्क के साथ इससे उत्पादित जल से शहर में प्रति व्यक्ति करीब 150 लीटर जल प्रतिदिन उपलब्ध हो सकेगा पर बड़ी चुनौती होगी बेकार जाने वाले पानी को बचाना। गोमती में पॉल्यूशन पर कंट्रोल बड़ी चुनौती है। भरवारा में बन रहे सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट और शीवर की सीवर प्रणाली के बाद भी काफी मदद मिलेगी.

वाटर प्राब्लम पर ध्यान देने की आवश्यकता है। मैंने जिन 20 नमूनों की जांच की उसमें वाटर में जो इमप्योरिटीज मिली हैं वह चिंताजनक है। अगर यह ऐसे ही बढ़ती रही तो लखनऊ वालों की हेल्थ पर बुरा प्रभाव होगा.
डा। शशांक मिश्रा, रिसर्च स्कालर

नबाबों की नगरी में जल को जीवन और जलाशय को तीर्थ माना गया है। यह हमारी समृद्घि के प्रतीक थे। तालुकेदारों और नबाबों ने जहां भी मंदिर बनवाए उसके बगल में पहले तालाब खुदवाया। 20वीं सदी के मध्य तक बड़ा चांदगंज और छोटा चांद गंज पूरी तरह से तालाब थे। यही आस पास के लोगों के लिए वाटर का मेन सोर्स थे। एलडीए ने तालाबों पर जो कालोनियां बनवाईं वह अमानवीय है। इससे शहर की सुंदरता के साथ जलापूर्ति भी प्रभावित हुई है.
डा। योगेश प्रवीन, इतिहासविद

लखनऊ में वाटर टेबल काफी नीचे गया है। जबकि वाटर रिचार्जिंग के लिए कोई कदम नहीं उठाए गए। अगर यूं ही चलता रहा तो फिर पानी की एक एक बूंद के लिए तरसना पड़ेगा.
डा। अजय मिश्रा, पर्यावरणविद

पिछले सालों में सिटी में डायरिया के मामले बढ़े। इसका मेन रीजन इम्प्योर वाटर है। आज सिटी का पानी बिना ट्रीटमेंट के पीने योग्य नहीं रह गया है। आने वाले समय में ऐसी और भी कई बीमारियां सामने आ सकती हैं.
डा। एमएल वर्मा
प्रोफेसर, इंटीग्रल मेडिकल यूनिवर्सिटी