हर साल आते हैं और ले जाते हैं सैकड़ों जानें

एक पवित्र शहर में सुरक्षा की चाक-चौबंद व्यवस्था थी. वहां परिंदा के पर मारने की बात तो दूर मौत भी बिना इजाजत नहीं आ सकती थी. इसके बावजूद हर साल उस शहर में हैजे से सैकड़ों जानें जाती थीं. फिर आप कहेंगे कि शहर की कैसी चाक-चौबंद सुरक्षा? जीवन और मृत्यु विधाता का नियम है जो पैदा होता है उसे मरना तो पड़ेगा ही. आपदा तो इसी व्यवस्था का एक जरिया भर है उसे कौन रोक सकता है. ऐसे में बीमारी और मौत शहर में घुसने से पहले शहर के दरबान को बीमारों की संख्या और मौतों के बारे में डिटेल में सौदा कर लेते थे. सौदा इतना पक्का कि एक भी मौत ज्यादा नहीं होती थी.

लापरवाही की चेतावनी है बीमारी और मौत दंड

दरअसल बीमारी और मौत यहां एक व्यवस्था के तहत आते-जाते थे. काफी सिखाने-बताने के बावजूद लोग उचित साफ-सफाई या खान-पान का ध्यान नहीं रखते थे तो लापरवाह लोगों को चेतावनी स्वरूप बीमारी होती थी. नहीं सुधरे तो अगले साल दंड स्वरूप मौत ही हो जाती थी. इसी व्यवस्था के तहत एक साल हैजा और मौत शहर का दौरा करने निकले. दरबान ने दोनों को गेट पर रोक लिया. हैजा से पूछा, 'इस बार कितने लोगों को बीमार करोगे?' हैजा बोला, 'ज्यादा से ज्यादा 500.' दरबान ने फिर मौत से पूछा, 'तुम कितनी जानें ले जाओगी.' मौत ने जवाब दिया, 'जितना मेरा दोस्त हैजा मुझे देगा.'

हैजा 500 को और मौतें 1,000 की कैसे?

दरबान गेट खोलते हुए बोला, 'पिछले सालों के आंकड़ों पर गौर करें तो सौ-पचास मौतें.' दोनों ने कहा, 'जी, वाजिब हिसाब लगाया आपने. वैसे भी हमारे सौदे में सिर्फ बीमारी की लिमिट तय होती है और मौत की संख्या बीमारी से कम होनी चाहिए.' दरबान ने गेट खोला और कहा, 'ठीक है, ठीक है, जाओ अब यहां से...' महीने भर बाद दोनों शहर से वापस जाने लगे तो दरबान गुस्से में उनका इंतजार कर रहा था. गुस्सा काबू करते हुए उसने हैजा से पूछा, 'इस बार तुमने कितनों को अपनी चपेट में लिया?' हैजा घबराते हुए बोला, '499 लोगों को. सौदे की संख्या से एक कम.' गुस्से से लगभग चीखते हुए उसने मौत से पूछा, 'तुमने कितनों की जानें लीं?' मौत ने दरबान का यह रूप कभी नहीं देखा था. उसने शांत भाव से जवाब दिया, '1,000 जानें.' दरबान ने धर्मदंड मौत की ओर तान कर पूछा, 'हैजा से 499 लोगों बीमार हुए तो 1,000 लोगों की मौत कैसे हो गई?'

बीमारी और मौत की परछाई ने मारा

धर्मदंड और उसके प्रहार से मौत अच्छी तरह वाकिफ थी. अपनी ओर तने हुए धर्मदंड से घबरा कर बोली, 'ये तुम क्या कर रहे हो? मैंने कुछ भी गलत नहीं किया है. तुम जानते हो हम सब अपने-अपने धर्म से बंधे हुए हैं. और मुझसे गलती की उम्मीद भी...' एक हाथ से धर्मदंड मौत की ओर ताने हुए दूसरे हाथ से मसौदा दिखाते हुए गुस्से से चिल्लाया, 'ये देख! हैजा 499 लोगों को था. सब मर जाते तो भी 499 से ज्यादा मौत नहीं होनी चाहिए थी. 1,000 कैसे? ये गलती नहीं नाफरमानी है. अब दंड भुगतने को तैयार...' दरबान ने उस पर धर्मदंड से प्रहार कर दिया.

डर के बारे में करना होगा जागरूक

प्रहार के बावजूद अपनी जगह खड़ी मौत घबराते हुए बोली, 'देखो अपनी गलती मुझ पर मत मढ़ो.' दरबान आश्चर्यचकित होकर बोला, 'अरे! तुझ पर धर्मदंड के प्रहार का असर नहीं हुआ. यानी तू सही है! इसमें हमारी क्या गलती हो सकती है? ये सब गड़बड़झाला समझ नहीं आ रहा?' अपने चिरपरिचित अंदाज में शांत भाव से मौत बोली, 'हम दोनों की परछाई देखो यह डर है. इस बार ज्यादा मौतें इसी कारण हुईं हैं.' दरबान शांत होते हुए बोला, 'मैं समझ गया. यह तो किसी के साथ आकर बहुत तबाही मचा सकता है. इसके बारे में लोगों को जागरूक करने का प्रबंध करना होगा. ठीक है तुम लोग जाओ.'