हर साल जाता था केदारनाथ

परिवार की आजीविका के लिए राकेश हर साल की तर्ज पर इस बार भी अपने चाचा के साथ पांच घोड़ों को लेकर केदारनाथ गया था। साथ में चाचा बिछनलाल भी था। 16 जून की काली सुबह ने रामबाड़ा में यात्रा सीजन के दौरान रह रहे राकेश लाल का चंद पलों में सब कुछ छीन लिया। पांच घोड़े कहां गए, पता नहीं चल पाया। साथ में हर पल सहारे के तौर पर रहने वाले चाचा बिछनलाल का आज तक नामोनिशान नहीं मिल पाया। इस सुबह आई भयंकर तबाही ने इतना सब कुछ छीन लेने के बाद भी राकेश लाल को कहीं का नहीं छोड़ा। तबाही के दौरान जान बचाने के लिए निकला राकेश जैसे ही तबाही को पार करने लगा, इतने में ऊपर से आए एक पत्थर के बीच उसका पैर फंस गया। लाख कोशिशों के बाद भी वह पैर नहीं निकाल पाया। आंखें बंद कर वह केवल जिंदगी की सलामती की दुआ करते रहा। तबाही शांत हुई, लेकिन बमुश्किल राकेश अपना पैर निकाल पाया।

आखिर पैर गंवाना ही पड़ा

जैसे-तैसे आर्मी के जवानों की नजर उस पर पड़ी। हेलीकॉप्टर से उसको रूद्रप्रयाग हॉस्पिटल पहुंचाया गया। डॉक्टरों ने उसकी नाजुक हालत को देखते हुए श्रीनगर बेस हॉस्पिटल रेफर कर दिया। यहां भी डाक्टरों ने कुछ जांच-परख के बाद हाथ खड़े कर दिए। फिर राकेश को 22 जून को दून हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। लेकिन तीन दिन सफर करने के बाद दून हॉस्पिटल में आखिरकार आज राकेश को अपना पैर गंवाना ही पड़ा। डॉक्टरों ने बायां पैर काटने में राकेश की भलाई बताई। हर पल अपने पैरों पर नजर फेर कर फूट-फूट कर रोने के सिवाए राकेश के पास अब कुछ नहीं। परिजन बताते हैं कि राकेश के घर में उनकी पत्नी की डिलीवरी होने वाली है। घर में मां के साथ एक छोटा बेटा है। पत्नी को इस बावत कुछ भी नहीं बताया गया। ये तो बानगी भर है, इस त्रासदी ने ऐसे कई बेकसूर लोगों को बची हुई जिंदगी में जूझने को मजबूर कर दिया।