वर्किंग पेरेंट्स हैं रीजन
पिछले कुछ सालों से सोसायटी के रहन सहन में काफी चेंजेज देखने को मिला है। फैमिली न्यूक्लीयर होने के साथ, पेरेंट्स वर्किंग भी हो गए हंै। ऐसे में बच्चों के लिए पेरेंट्स के पास उतना टाइम नहीं हो पाता जहां वो अपने बच्चों को इत्मीनान से बैठकर सिखा सकें। ऐसे में पेरेंट्स मार्केट में अवेलेबल टेक्नोलॉजी पर डिपेंड होकर बच्चों को सिखा रहे हैं। सिटी की फेमस साइकोलॉजिस्ट निधि श्रीवास्तव के अनुसार पेरेंट्स और बच्चों के बीच बढ़ रही दूरियों के लिए काफी हद तक टेक्नोलॉजी भी जिम्मेदार है। टेक्नोलॉजी के कारण पेरेंट्स अब बच्चों के बीच पर्सनल कनेक्शन धीरे धीरे खत्म हो रही है। किसी भी बच्चों के लिए पेरेंट्स का अंटेशन, कंर्सन काफी महत्वपूर्ण होता लेकिन टेक्नोलॉजी के कारण अब पेरेंट्स इन सब चीजों से दूर हो चुके हैैं।

मार्केट में अवेलेबल हैं कई software
सिटी के मार्केट्स भी बच्चों के लिए लर्न विथ फन के तर्ज पर ढेर सारे सॉफ्टवेयर और गेम्स लेकर आई है, जिससे देख या सुन कर बच्चे सीखते हैं। मार्केट में अवेलेबल पोयम सीडी, गेम्स अवेलेबल हंै.  200 रुपए से लेकर 50,000 रुपए तक के सॉफ्टवेयर बच्चों को पोयम और कई चीजों की ट्रेनिंग देती है।

हो रहा negative effect
इन टेक्नोलॉजी के आ जाने पर बच्चों पर इसका काफी नेगेटिव असर पड़ रहा है। अब बच्चों में रीडिंग हैबिट धीरे-धीरे खत्म होती जा रहा है। पहले जब बच्चे पेरेंट्स के साथ इंटरैक्ट
कर इमोशन बॉडिंग में बंध जाया करते थे लेकिन टेक्नोलॉजी की डिपेंडेसी ने बच्चों को पेरेंटस के दूर कर दिया है। बच्चों में क्रियेटीविटी भी कम हो गई है अब वो कंप्यूटर और टीवी पर ही डिपेंड होकर रह गए है।

मेरे ख्याल से टेक्नोलॉजी ने छोटे बच्चों के इमोशन पर काफी बुरा असर डाला है। इसकी वजह से पेरेंट्स और बच्चों के बीच की दूरियां काफी बढ़ गई है।
निधि श्रीवास्तव, साइकोलॉजिस्ट