कानपुर। गोवर्धन की पूजा के माध्यम से श्रीकृष्ण भक्तों को प्रेरणा देते हैं कि जिस प्रकार उन्होंने अपने प्रयत्‌न से असंभव लगने वाले कार्य को भी संभव बना दिया, उसी प्रकार उन्हें भी प्रयत्‌न से कभी पीछे नहीं हटना चाहिए।

भगवान ने ही धरा गोवर्धन का विराट रूप
गोवर्धन पूजा मुख्य रूप से प्रकृति के साथ मानव-संबंध को दिखाता है। मथुरा के पश्चिम में लगभग चौदह मील दूर स्थित है गिरिराज गोवर्धन। गोवर्धन को श्रीकृष्ण का ही एक रूप माना जाता है। श्रीमद्भागवत में कहा गया है कि स्वजनों के कल्याण के लिए ही श्रीकृष्ण ने गोवर्धन का विराट रूप धरा। इसलिए उन्हें गिरिराज कहा गया है। ब्रज की गलियों में राधा-कृष्ण की प्रेमलीलाओं के भी साक्षी हैं गोवर्धन। इस पर्वत पर कृष्ण-राधा के साथ बलराम के भी चरण-स्पर्श मौजूद हैं।

गिरिराज गोवर्धन कहते हैं,प्रयत्‍न करते रहिए 'कुछ भी असंभव नहीं'

अन्नकूट का उत्सव
श्रीमद्भागवत के अनुसार, देवराज इंद्र के अहंकार को चूर करने तथा ब्रजवासियों को इंद्र के कोप से रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को श्रीकृष्ण ने अपनी कनिष्ठा उंगली पर उठा लिया था। इसलिए कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा के दिन भक्तगण धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य, वस्त्र आदि से गिरिराज-गोवर्धन की पूजा करते हैं और छप्पन भोग भी लगाते हैं। मंत्रोच्चार के साथ-साथ उनके ऊपर लावा की वर्षा की जाती है और अन्नकूट (अन्न का पहाड़) बनाया जाता है। इसलिए इस पर्व को अन्नकूट भी कहा जाता है।

ऐसी रसोई से पेट भर जाए संसार का
जो भक्तगण मथुरा नहीं जा पाते हैं, वे अपने गृहद्वार पर ही गाय के गोबर से गिरिश्रृंग बनाकर गौदुग्ध और पंचामृत से पूजन करते हैं। अन्नकूट एक प्रकार से सामूहिक भोज का आयोजन है, जिसमें पूरा परिवार एक जगह बनाई गई रसोई से भोजन करता है। इस दिन चावल, बाजरा, कढ़ी, साबुत मूंग, तथा सभी सब्जियां एक जगह मिलाकर बनाई जाती हैं। मंदिरों में भी अन्नकूट बनाकर प्रसाद के रूप में बांटा जाता है।

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