-डीएलडब्ल्यू में 12 एमएलडी के प्लांट से तैयार हो रही गैस

-ट्रीटेड पानी से कैंपस को किया जा रहा हरा-भरा

VARANASI

डीएलडब्ल्यू में एलपीजी की लाइन पहुंचने से पहले एसटीपी के गैस से भोजन पकने लगा है। इसके बेहतर परिणाम से न केवल डीएलडब्ल्यू एडमिनिस्ट्रेशन उत्साहित है बल्कि यह दूसरे के लिए नजीर भी है। डीएलडब्ल्यू ने साल 1989 में एसटीपी बनाकर एक कीर्तिमान बनाया था। डीएलडब्ल्यू के एसटीपी की क्षमता आवश्यकता से तीन गुना अधिक है। वर्तमान में डीएलडब्ल्यू कैंपस से अधिकतम पांच एमएलडी गंदा पानी निकलता है जबकि एसटीपी की क्षमता 12 एमएलडी की है। बताया जाता है कि दूरगामी सोच को आधार बनाते हुए डीरेका ने एसटीपी का निर्माण किया था। इससे आगामी 20 साल तक दोबारा नए एसटीपी का निर्माण नहीं करना होगा।

पहले ट्रीटेड पानी अब गैस

सन् 1989 से पहले डीएलडब्ल्यू से निकलने वाला मल-जल सीधे अस्सी व वरुणा नदी के जरिये गंगा में जाता था लेकिन एसटीपी निर्माण के बाद शोधित पानी से कैंपस के पार्क व अन्य स्थानों पर लगे पेड़-पौधों की सिंचाई की जाती है। डीएलडब्ल्यू ने अपने शोध का दायरा बढ़ाते हुए एसटीपी के गैस का यूज ईधन के रूप में भी करना शुरू कर दिया। डीएलडब्ल्यू रिसर्च करने के बाद उसी जल को अपने कैंपस को हरियाली युक्त करने में भी इस्तेमाल करता है। यही नहीं शोधन करने के बाद वाला अपशिष्ट खाद के रूप में पार्को और बंगलों आदि में लगे पेड़ पौधों की उर्वरा शक्ति बढ़ाने में यूज करता है।

बायो गैस से कैंटीन में बन रहा भोजन

एसटीपी से शोधन करने के दौरान निकलने वाली मीथेन (बायो गैस), डीएलडब्ल्यू कर्मचारियों के लिए बनाए गए कैंटीन में ईधन के रूप में यूज किया जाता है। 15 फीट और करीब 30 वर्ग मीटर के कुएं की तरह बनाए गए टैंक में एसटीपी से निकले बायो गैस को इकट्ठा किया जाता है और उसका प्रयोग ईधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।

डीएलडब्ल्यू ग्रीन एनर्जी का अधिक से अधिक यूज करने की दिशा में कार्य कर रहा है। इसी कड़ी में एसटीपी से बायो गैस बनाना शामिल है।

श्रीभगवान पांडेय, पीआरओ

डीएलडब्ल्यू