-डीजल इंजन बनाने के लिए मशहूर डीएलडब्ल्यू दे रहा इलेक्ट्रिक इंजन बनाने पर जोर

-करेंट फाइनेंसियल ईयर में 75 इलेक्ट्रिक इंजन का मिला टारगेट

-अब डिमांड पर ही बनेंगे डीजल इंजन, बने हुए को दी जाएगी सर्विस

-हाइड्रोजन, सीएनजी, सोलर से चलने वाले इंजन को बनाने पर चल रहा रिसर्च

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डीजल इंजन निर्माण के लिए डीएलडब्ल्यू (डीजल लोकोमोटिव व‌र्क्स) पूरी दुनिया में अलग पहचान रखता है। यहां के बने रेल इंजन इंडिया सहित दुनिया के अन्य देशों के ट्रैक पर फर्राटे भर रहे हैं। लेकिन इस पहचान में अब तब्दीली होने वाली है। आने वाले वक्त में यहां सिर्फ इलेक्ट्रिक इंजन बनेंगे। यह जरूर है कि जो डीजल इंजन यहां बने हैं उनको सर्विस दी जाएगी साथ ही अगर अन्य देश की ओर से डिमांड की जाएगी तो उनके लिए डीजल इंजन बनाये जाएंगे। बदलते जमाने के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में डीएलडब्ल्यू भी पीछे नहीं है। इसी क्रम में डीजल लोकोमोटिव वर्कशाप इलेक्ट्रिक इंजन बनाने में जुट गया है। सिचुएशन यह है कि साल दर साल उसका टारगेट बढ़ता जा रहा है। अब तो डीजल से इलेक्ट्रिक इंजन कन्वर्ट करने में भी सफलता मिल गयी है।

दो इंजन से शुरू हुआ सफर

डीएलडब्ल्यू को फाइनेंसियल ईयर 2016-17 में दो इलेक्ट्रिक इंजन बनाने की जिम्मेदारी सौंपी गयी। जिन्हें समय रहते तैयार कर लिया। 2017-18 में टारगेट बढ़ाकर 25 रेल इंजन कर दिया गया। डीएलडब्ल्यू ने इस टारगेट को भी अचीव कर लिया। अब फाइनेंसियल ईयर 2018-19 में 75 इलेक्ट्रिक इंजन के निर्माण की जिम्मेदारी इसे मिली है। जीएम रश्मि गोयल पूरी तरह आश्वस्त हैं कि इसे भी समय रहते पूरा कर लेंगे। बताया कि वर्कशॉप के लगभग सारे कर्मचारी इलेक्ट्रिक इंजन को बनाने में ट्रेंड हो चुके हैं। उन्हें इंजन की बारीकियों से अपडेट कराया जा चुका है।

अब बाहर नहीं होगी टेस्टिंग

डीएलडब्ल्यू में पहली बार इलेक्ट्रिक इंजन की टेस्टिंग को पूरा कर लिया गया है। इससे पहले यह सुविधा कैंपस से बाहर यानी मुगलसराय में थी। डीएलडब्ल्यू से इंजन बनकर टेस्टिंग के लिए मुगलसराय भेजा जाता था इसमें टाइम व पैसे दोनों खर्च होता था। इसके अलावा यहां डीजल व इलेक्ट्रिक दोनों से चलने वाले डुएल इंजन बनाने पर भी तेजी से काम हो रहा है। इस इंजन के बन जाने के बाद रेल इंजन की स्पीड में वृद्धि होना तय है।

जीरो कार्बन उत्सर्जन पर ध्यान

डीएलडब्ल्यू जीरो कार्बन उत्सर्जन पर भी विशेष ध्यान दे रहा है। इसके तहत हाइड्रो लोको पर काम चल रहा है। यानी कि वह दिन दूर नहीं जब सीएनजी व सोलर से चलने वाले इंजन भी यहां बनने लगेंगे। डीएलडब्ल्यू की यह योजना सफल हो जाती है तो रेलवे ट्रैक पर जीरो कार्बन उत्सर्जन करने वाले इंजन दौड़ेंगे। इन इंजनों को चलाने के लिए डीजल की जगह हाइड्रोजन, सीएनजी व सोलर एनर्जी की आवश्यकता होगी, जिसे पॉल्यूशन को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी।

कन्वर्ट करने की खुली राह

डीएलडब्ल्यू ने दुनिया में पहली बार डीजल रेल इंजन को इलेक्ट्रिक रेल इंजन में कन्वर्ट करके अपने स्वर्णिम इतिहास में नया अध्याय जोड़ा है। मेक इन इंडिया के अंतर्गत स्वदेशी तकनीक अपनाते हुए डीरेका डब्लूएजीसी 3 के रेल इंजन की शुरुआत कर नया कीर्तिमान बना रहा है। ऐसा पहला रेल इंजन है, जिसमें डब्ल्यूडीजी 3ए के दो डीजल इंजनों को एक स्थायी रूप से युग्मित 12-एक्सल, 10,000 हार्स पॉवर के इलेक्ट्रिक रेल इंजन में कन्वर्ट किया गया है। 22 दिसम्बर, 2017 से स्टार्ट हुए कार्यक्रम के अनुसार इस रेल इंजन को 28 फरवरी, 2018 तक पूरा कर लिया गया।

रेलवे को होगा फायदा

डीजल इंजन से जहां रेलवे का करोड़ रुपये खर्च हो रहा है वहीं इलेक्ट्रिक इंजन से 11000 करोड़ रुपये की बचत होगी। इस तरह इलेक्ट्रिक मोड के इंजन से ऑपरेशन में प्रॉब्लम नहीं आएगी। जंक्शन पर ट्रेंस को चेंज करने के लिए एक्स्ट्रा इंजन की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। साथ ही जिस ट्रेन में इलेक्ट्रिक मोड के इंजन होंगे, उनको किसी भी रूट पर दौड़ाया जा सकेगा। इससे ऑपरेशन की अड़चनें दूर होंगी। कारण कि देश के लगभग सभी जोन में इलेक्ट्रिफिकेशन का वर्क लगभग पूरा हो गया है।

प्वाइंट टू बी नोटेड

-23 अप्रैल 1956 में देश के पहले राष्ट्रपति डॉ। राजेंद्र प्रसाद ने डीएलडब्ल्यू की आधारशिला रखी थी।

-जनवरी 1964 में पहले ब्रॉडगेज लोकोमोटिव (डब्ल्यूडीएम-2) को पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने हरी झंडी दिखाया था।

-22 नवंबर 1968 को पहले मीटरगेज लोकोमोटिव (वाईडीएम-4) को हरी झंडी दिखाया गया।

-जनवरी 1976 में पहले लोकोमोटिव को विदेश यानि तंजानिया भेजा गया।

-मई 1984 में वियतनाम को भेजा गया।

-फरवरी 1997 में आईएसओ-9002 सर्टिफिकेट प्राप्त हुआ।

-मार्च 2001 में आईएसओ-14001 सर्टिफिकेट।

-दिसंबर 2002 में आईएसओ-9001-14001 सर्टिफिकेट।

-नवंबर 2012 में डुएल कैब का निर्माण।

-सन् 2015 तक 7551 लोकोमोटिव का निर्माण।