रहते हैं कैपिटल सिटी में लेकिन पटनाइट्स को बेसिक फैसिलिटी भी मयस्सर नहीं

- मेयर और निगम कमिश्नर के बीच झूल रही पब्लिक फैसिलिटीज की फाइल

- यूरिनल से लेकर पीने का शुद्ध पानी तक की नहीं की जा रही व्यवस्था

- सड़क पर फैला रहता है अंधेरा, नजर हटी तो गड्ढे में नजर आएंगे आप

- सिटी सर्विस की खटारा बसें और ऑटो के भरोसे सफर करना हो रहा मुश्किल

- सड़क पर फैला रहता है कचरा, नहीं शुरू हो सका वेस्ट मैनेजमेंट ट्रीटमेंट प्लांट

<रहते हैं कैपिटल सिटी में लेकिन पटनाइट्स को बेसिक फैसिलिटी भी मयस्सर नहीं

- मेयर और निगम कमिश्नर के बीच झूल रही पब्लिक फैसिलिटीज की फाइल

- यूरिनल से लेकर पीने का शुद्ध पानी तक की नहीं की जा रही व्यवस्था

- सड़क पर फैला रहता है अंधेरा, नजर हटी तो गड्ढे में नजर आएंगे आप

- सिटी सर्विस की खटारा बसें और ऑटो के भरोसे सफर करना हो रहा मुश्किल

- सड़क पर फैला रहता है कचरा, नहीं शुरू हो सका वेस्ट मैनेजमेंट ट्रीटमेंट प्लांट

PATNA : patna@inext.co.in

PATNA : पटना के डीएनए की कंडीशन अच्छी नहीं है। हालत यह है कि कोई भी पार्ट ठीक से काम नहीं कर रहा है। इंटरनल और एक्सटर्नल दोनों की हालत इतनी बुरी है कि लोगों का जीना दुश्वार हो गया है। पब्लिक हर चीज का टैक्स पेड करती है बावजूद उसे बेसिक फैसिलिटी भी नहीं मिल पाती है। डॉक्टर हैं, लेकिन मेडिसिन नहीं, सड़क है पर नाले नहीं हैं जो हैं वो भी चॉक्ड रहते हैं, घर का कचरा सड़क पर फैला रहता है, पब्लिक ट्रांसपोर्ट को तो देखकर ही डर जाएंगे, पार्क में मेले की भीड़ लगी रहती है, रात को सड़क पर अंधेरा फैला रहता है। अगर नजर हटी तो आप गड्ढे में नजर आएंगे, वहीं सड़कों पर इंक्रोचमेंट ऐसा कि पैदल चलना भी दुश्वार है। प्रॉब्लम इतनी है कि हम गिनती खत्म हो जाएगी, पर इनकी संख्या कम नहीं पड़ेगी। सीएम से लेकर मिनिस्टर और डीएम से लेकर निगम कमिश्नर सबकी नाक के नीचे यह सब है, लेकिन इन लोगों को ना तो दिखाई देता है और ना ही सुनाई। इस वजह से पटनाइट्स की प्रॉब्लम दिन ब दिन बढ़ती ही जा रही है। उनके दर्द को सुनने की कोशिश कोई नहीं कर रहा है। ओवर ब्रिज बनने से रफ्तार बढ़ी, लेकिन जाम की प्रॉब्लम दूर नहीं हो सकी, सड़कों पर कैट आई लगी लेकिन वो कहीं दिखाई नहीं देती है।

अंधेरे में तीर चलाता है निगम

निगम को टैक्स देने के बाद भी पटनाइट्स को अंधेरे में रहना पड़ रहा है। शाम के बाद शॉप्स और गाडि़यों की हेड लाइट ही सड़कों पर रोशनी फैलाती है। स्ट्रीट लाइट खराब है। शहर की सफाई का हाल तो बुरा है ही कचरा प्रबंधन की अरेंजमेंट अब तक नहीं हो सकी है। चार साल से सिर्फ बयानबाजी से ही सड़कों की सफाई हो रही है। कचरा जहां-तहां फेंका रहता है। यूरिनल और पीने के पानी तक की व्यवस्था नहीं है। ट्रांसपोर्टेशन के नाम पर मजाक किया गया है। एसी बस कहां गई किसी को पता नहीं, महिलाओं को भेड़-बकरियों की तरह जेनरल बस में सफर करना पड़ रहा है। खैर, हम इसलिए खबर छाप रहे हैं कि सरकार देखे और सुने कि पटनाइट्स किस परेशानी से कराह रहे हैं और खराब हो चुके पटना के डीएनए का कोई ट्रीटमेंट प्लान बने, ताकि कैपिटल सिटी में रहने वालों को प्राउड फील हो।

हेल्थ

पीएमसीएच में जेनरल से लेकर सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टर अलग-अलग टाइम में बैठते हैं, बावजूद इसके आज भी टेस्ट और दवा बाहर से खरीदना पड़ता है। गवर्नमेंट हॉस्पीटल, पीएमसीएच, एनएमसीएच में ना तो मेडिसीन मिलती है और ना ही टेस्ट की फैसिलिटी है। अस्पतालों की हालत और भी बुरी है। एक तरफ डॉक्टर नर्स के भरोसे रहती है और नर्स भगवान के भरोसे, ऐसे में गंदगी और बदइंतजामी में आप बच जाते हैं, तो बच गए वरना। आईसीयू की हालत और भी खराब है।

एक्सपर्ट : ख्ब् आवर मेडिसिन की उपलब्धता जरूरी है। मार्केट की दवा पर भी नकेल कसने की जरूरत है। पीएमसीएच और एनएमसीएच का लोड कम करने और बेहतर ट्रीटमेंट और फैसिलिटी देने के लिए अलग-अलग मेडिकल हॉस्पीटल प्वाइंट बनाने और बढ़ाने होंगे, साथ ही सफाई पर भी खासा ध्यान देने की जरूरत है।

गुड्डु बाबा, सोशल एक्टिविस्ट

ट्रांसपोर्टेशन

पिंक बस, एसी बस की फैसिलिटी जरूरी है। सिटी सर्विस की खटारा बसें और ऑटो के भरोसे पटना में सफर करना मुश्किल है। तीस हजार से अधिक ऑटो के लिए अब तक कोई रूल-रेग्यूलेशन तक नहीं बन पाया है। सालों गुजर गई, लेकिन नई बसें नहीं आई। पुरानी बसों में जैसे-तैसे सफर करना पड़ रहा है। भेड़-बकरियों की तरह ठूंसकर लोग चलने को मजबूर हैं।

एक्सपर्ट : पुरानी सिटी राइड की बसें और ऑटो की जगह छोटी बसें अधिक से अधिक चलाई जाए, लेडीज और एजेड के बैठने की सीट हो और रेस्ट को खड़े होकर सफर करवाया जाए। इसके अलावा बस स्टॉपेज पर ही रुके। इस नियम का सख्ती से पालन करवाया जाए। भीड़भाड़ वाले एरिया में बसों का एक लेन ही बनाया जाए, जिसमें चलने वाले बस को देखते ही रास्ते से हट जाएंगे।

विजय शर्मा

डेली ट्रांसपोर्ट सर्विस यूजर

ट्रैफिक

आए दिन ट्रैफिक को लेकर मीटिंग होते रहती है, पर अब तक शहर की ट्रैफिक व्यवस्था स्मूथ नहीं हो पाई है। एक ही लेन में बड़ी, छोटी और मंझली गाड़ी, ठेला, रिक्शा हर कुछ चलते हैं। बेली रोड भी अब तक स्मूथ नहीं हो पाया है। चौराहों पर रेड लाइट सिग्नल तक का अरेंजमेंट नहीं है। बेली रोड, अशोक राजपथ और एनएच पर ही पूरा प्रेशर रहता है। हर दिन जाम आम बात लगने लगी है।

एक्सपर्ट : ट्रैफिक को कंट्रोल करने के लिए हर सड़क पर बराबर प्रेशर होनी चाहिए। लिंक रोड का अधिक से अधिक यूज हो। आने और जाने का रास्ता अलग-अलग हो। हर प्वाइंट पर सिग्नल लगाया जाए और उसकी मॉनिटरिंग के लिए कर्मियों की तैनाती हो। लेन की सूचना आधा किलोमीटर पहले ही दे दिया जाए, ताकि पहले से ही लोग लेन डिसाइड कर लें।

श्रीधर मंडल

रिटायर्ड ट्रैफिक एसपी

सफाई

निगम जब विवादों में नहीं था, तब भी कचरा समय से नहीं उठता था। विवाद कचरा उठाने और शहर की सफाई के लिए नहीं है, बल्कि उस नाम पर जो लूट मचायी गयी है उसको उजागर करने और उसे रोकने के लिए है। सफाई के नाम पर सड़कों से कचरा आज भी डेली नहीं उठाया जाता है। इस मसले पर 7ख् वार्ड की हालत एक जैसी है। पब्लिक चिल्लाती है, पर सुनता कोई नहीं है।

एक्सपर्ट : हर जगह कचरा रखने का प्वाइंट बने। उसके आसपास सफाई की उचित व्यवस्था हो। कचरा उसी जगह डाला जाए। साथ ही कॉलोनी वाइज उसी मॉनिटरिंग हो, मुंबई की तरह एक घंटा गाड़ी प्रोपर टाइम पर चले, जिसकी आवाज सुनते ही लोग अपने घर का कचरा उस गाड़ी में लाकर डाल दें।

दीपक चौरसिया

वार्ड काउंसलर

पार्किंग

कागजों पर अब तक भ्क् पार्किंग प्लेस बने हैं। जिसमें यह दिखाया गया है कि अगर ऐसा होता है तो इतना अच्छा होगा। फाइल मेयर और कमिश्नर के बीच झूल रही है। शहर में किसी भी कॉमर्शियल कांप्लेक्स वालों ने अपना पार्किंग स्पेस नहीं बनाया है। जिसे जहां मन करता है, गाड़ी पार्क कर चले जाते हैं। इस वजह से घंटों जाम की प्रॉब्लम बनी रहती है।

एक्सपर्ट : नए कंस्ट्रक्शन में पार्किंग का ख्याल हो, पार्किंग के पास गाड़ी पार्क कर चलने के लिए फुटपाथ की भी व्यवस्था की जाए, ताकि लोगों को लगे कि अगर पार्किंग करते हैं, तो आसानी से काम हो जाएगा। शहर के विभिन्न चौक-चौराहे के अलावा नालों पर पार्किंग प्लेस डेवलप किया जाए। मल्टी स्टोरे पार्किंग पर ध्यान देने की जरूरत है।

संजीव कुमार

एनआईटी प्रोफेसर

पार्क एवं मनोरंजन

जू या ईको पार्क को छोड़कर शहर में कोई भी ढंग की जगह नहीं है, जहां आप दो पल इंज्वॉय कर सकते हैं। जितने भी पार्क या इंटरटेनमेंट प्लेन हैं, उसमें वो बात नहीं है। मैक्सिमम पार्क बंद रहता है, तो किसी की टाइमिंग ही खराब रहती है। रेस्ट की हालत इतनी बदतर है कि पार्क का पड़ोसी तक नजर नहीं आता है, वहीं मनोरंजन के नाम पर एक मल्टीप्लेक्स है, जिसमें टिकट का रेट भी मनमाना है।

एक्सपर्ट : पार्क ख्ब् आवर खुला रहे, जिसमें बैठने से लेकर घूमने तक के लिए पैसे न लगे। वहां पर खाने-पीने की भी अरेंजमेंट हो, बच्चों के लिए अप्पू घर टाइप का मनोरंजन प्लेस बनने की जरूरत है। सीजन के हिसाब से उठने-बैठने की व्यवस्था हो, सिर्फ फिटनेस के लिए ही न खोला जाए, बल्कि बाकी टाइम भी उसका प्रोपर यूज हो।

डॉ। अजय

अध्यक्ष, बिहार राज्य अनुसूचित जाति सहकारिता विकास निगम।

स्ट्रीट लाइट

पेसू निगम से स्ट्रीट लाइट का पैसा मांगता है, तो निगम की दलील रहती है कि उसकी स्ट्रीट लाइट कहीं जलती ही नहीं है तो बिल कहां से पे करें। आप इसी से अंदाजा लगा लीजिए कि स्ट्रीट लाइट को लेकर निगम कितनी लापरवाह है। सड़कों पर अंधेरे की वजह से चोरी और लूट जैसी घटनाएं बढ़ती जा रही हैं।

एक्सपर्ट : कुछ भी नहीं जितने होर्डिग लगे रहते हैं, एजेंसी के हिसाब से सबों की जवाबदेही दे दी जाए या फिर तीन से चार सरकारी डिपार्टमेंट को अलग-अलग एरिया की स्ट्रीट लाइट के लिए रिस्पांसिबल बनाया जाए। इसके अलावा स्ट्रीट लाइट के बल्व की जांच भी हमेशा होते रहने की जरूरत है। पोल की काउंटिंग भी जरूरी है।

राजीव चौहान, बिजनेसमैन

वेस्ट मैनेजमेंट

चार सालों से मीटिंग, टेंडर फिर मीटिंग होती रही, पर नतीजा कुछ नहीं निकल पाया है। अब तक रामजीचक बैरिया में कचरा जैसे-तैसे फेंका जा रहा है। बाउंड्री तक नहीं बनाई गई है। वेस्ट मैनेजमेंट का कोई नॉ‌र्म्स भी फॉलो नहीं हो पाता है। मेडिकल वेस्ट जहां तहां फेंका रहता है, जिससे कई लोगों की जान जा सकती है।

एक्सपर्ट : वेस्ट मैनेजमेंट ट्रीटमेंट प्लांट की काफी जरूरत है, ताकि शहर के वेस्ट को आसानी से खत्म किया जा सके। इसके अलावा गार्बेज को अधिक दिनों तक खुले में नहीं छोड़ना चाहिए, साथ ही शहर में भी वेस्ट मैनेजमेंट को अवेयरनेस फैलाने की जरूरत है, ताकि अधिक से अधिक लोग समझे और इस फील्ड में बेहतर काम कर सकें।

इनक्रोचमेंट

मेन रोड से लेकर लिंक रोड तक की आधी सड़क इनक्रोच्ड रहती है, जिस पर आधा से अधिक पटना का बाजार सजा रहता है। इसकी जानकारी एडमिनिस्ट्रेशन से लेकर आम पब्लिक सबों को है, बावजूद इसके हटाने के लिए अब तक कोई काम नहीं किया गया। जबकि निगम या एडमिनिस्ट्रेशन आसानी से इसको क्लीयर करवा सकता है।

एक्सपर्ट : इनक्रोचमेंट को क्लीन करना मुश्किल है, लेकिन उसे थोड़ा पीछा करने में कोई परेशानी नहीं है। बड़े शहरों की तरह वेंडिंग जोन बना देनी चाहिए। इसके अंदर रहकर ही कारोबार करें, ऐसे में सड़क भी खाली हो जाएगी और इनक्रोच्ड की प्रॉब्लम भी खत्म हो जाएगी।

आवारा पशु पर रोक नहीं

शहर की जिन सड़कों से होकर गुजरने में पब्लिक को घंटों मशक्कत करनी पड़ती है। उन सड़कों पर गाय, भैंस और स्ट्रीट डॉग आराम फरमाते रहते हैं। पिछले कई सालों से स्ट्रीट डॉग की तादाद बढ़ी है। आवारा पशुओं से बचकर नहीं रहे, तो फिर आपकी जान की खैर नहीं है। इस वजह से रोड एक्सीडेंट भी काफी होती है।

एक्सपर्ट : मेरे हिसाब से सड़कों पर रहने वाली गायों को हटाकर निगम अपने खटाल में रखें। उसका दूध बेचे और स्ट्रीट डॉग के खिलाफ अभियान चलाकर उसे रोकने की कोशिश करनी चाहिए। अगर कोई इसका विरोध करता है, तो फिर उसके खिलाफ कार्रवायी की जानी चाहिए, साथ ही स्ट्रीट डॉग की नसबंदी पर भी अभियान चलाया जाना चाहिए।