- अब तक जनसुविधाओं के नाम पर जनता को दिखाया गया ठेंगा

- योजनाएं फाइलों में कैद हैं, क्रियान्वयन नहीं हो पाया है

FATEHPUR:

शहर में जन सुविधाओं की बात करना बेमानी साबित होता है। प्रदेश और केंद्र की तमाम योजनाओं के क्रियान्वयन हो रहे हैं, लेकिन शहर में मिशाल के नाम पर प्रशासन के पास गिनाने को कुछ भी नहीं है। थका-हारा आदमी शहर में रात को आराम करने के लिए फंस जाता है तो रेलवे और बस स्टेशन में बिस्तर लगाने के सिवा कोई छत नसीब नहीं होती है। कमोवेश यही हाल शौचालयों के हैं। शहर में सार्वजनिक शौचालय की व्यवस्था तक नहीं है। इसे शहरियों का दुर्भाग्य कहें या प्रशासन की विफलता। जो कुछ भी हो जनता के साथ अन्याय कब तक चलेगा, यह भी नहीं बताया जा सकता है। मार्निंग वॉक और जा¨गग करने के लिए लोगों को सरकारी दफ्तरों के प्रांगणों का सहारा लेना पड़ता है। भागमभाग ¨जदगी में न तो शाम के दो पल और न ही स्वस्थ शरीर के लिए पार्क की सुविधा मिल पा रही है। अन्य शहरों की तरह यहां पार्कों में च्च्चों का कलरव बानगी लेने के लिए नहीं मिलेगा।

सुलभ शौचालयों का अभाव :

शहर की 3 लाख आबादी में जन सुविधाओं का टोटा है। पालिका प्रशासन ने व्यापारियों और जनता की मांग पर मूत्रालयों का निर्माण कराया है, शौचालयों की तो सुधि लेना मुनासिब नहीं समझा है। सार्वजनिक सुलभ शौचालय की बात करें तो रेल प्रशासन का खुद का शौचालय है। यह टिकटधारी यात्रियों को ही नसीब हो पाता है। बस स्टैंड में जरूर शौचालय संचालित हो रहा है। इसके सिवा शहर में शौचालय खोजे नहीं मिलेंगे। शौचालय की जरूरत पड़ने पर लोगों को सड़क के किनारे अथवा शहर के छोर जाना पड़ता है।

शहर में पार्कों का अभाव :

शहर की आबादी दिनों दिन बढ़ती जा रही है। पार्क की बात करें तो जो छोटे छोटे पार्क हैं, वो भी जर्जर हो चुके हैं। इनमें पैर रखना मुसीबत मोल लेना है। रखरखाव के अभाव में बरसात के दिनों में यहां बड़ी-बड़ी घास उग आती है, यहां टहलने का मतलब मौत को दावत देना है। मार्निंग वॉक और व्यायाम के लिए लोग पार्कों के अभाव में नहर कॉलोनी, कलेक्ट्रेट, आईटीआई मैदान, राजकीय इंटर कॉलेज, एएस इंटर कॉलेज आदि का सहारा लेते हैं। आवास विकास परिषद ने कॉलोनी बसाने के साथ जो पार्क बनाए थे। वह अतिक्रमण की जद में हैं और गंदगी का साम्राज्य फैला हुआ है। उम्र दराज लोगों के लिए सुकून के दो पल पार्क में बैठकर व्यतीत करने के नहीं मिल पा रहे हैं।

विश्रामालय धर्मशाले नहीं:

शहर में एक भी विश्रामालय प्रशासन की ओर से नहीं मिल पाया है। शहर में एक भी विश्रामालय प्रशासन की ओर से नहीं बन पाए हैं। धर्मार्थ चलाए जाने वाले धर्मशाले भी शहर में नहीं हैं। बाहर से आया हुआ व्यक्ति जब शहरियों से कभी इन दोनों सुविधाओं की जानकारी लेता है तो शहरी का सिर शर्म से झुक जाता है। उसे बताना पड़ता है कि दोनों सुविधाएं नहीं हैं। रात काटने के लिए रेलवे स्टेशन अथवा बस स्टाप चले जाइए। बरसात अथवा अन्य विषम स्थितियों में प्रशासन सरकारी स्कूलों को विश्रामालय बनाकर काम चलाता है।

पेयजल की व्यवस्था धड़ाम :

पेजजल की व्यवस्था शहर में औंधे मुंह गिरी पड़ी है। शहर के तमाम भीड़भाड़ वाले इलाकों में पेयजल के मुकम्मल इंतजाम सिफर हैं। पूर्व में जो स्टैंड पोस्ट नल लगाए गए थे, वह ध्वस्त हो गए हैं। दोबारा इन्हें लगाए जाने की हिम्मत प्रशासन ने नहीं की है। 30 लाख की आबादी और 150 मुहल्लों में 700 हैंडपंप लगाए गए हैं। प्रशासन भी मान रहा है कि दस फीसदी खराब हैं। जबकि सत्यता कुछ और ही है। गर्मी में प्याऊ लगाकर प्यास बुझाने का काम महीने भर के लिए किया जाता है। इसके बाद पानी पीने के लिए लोगों को खानपान की दुकानों पर आश्रित रहना पड़ता है। गर्मी में पाउच और बोतल का पानी ही लोगों के जीवन का सहारा बनता है।

यह हैं गतिरोध

- पार्कों की दशा सुधारने के नहीं हो रहे प्रयास

- मार्निंग वॉक-जॉ¨गग के लिए दफ्तर के कैंपस बने सहारा

- सड़कों पर टहलने का जोखिम भरा काम हो रहा

- पेयजल व्यवस्था के मुकम्मल इंतजाम नहीं

- शौचालय न होने से जनता को उठानी पड़ती दिक्कत

- मार्ग प्रकाश व्यवस्था पूरी तरह से पंगु पड़ी है

यह हैं सुझाव

- पेयजल के लिए स्टैंड पोस्ट नल लगाए जाएं

-भीड़भाड़ वाले इलाकों में सुलभ शौचालय का निर्माण हो

- जिला योजना में जन सुविधाओं के नाम पर धन आवंटन हो

- जन प्रतिनिधियों की निधि का हिस्सा जन सुविधा में भी खर्च हो

-शौचालयों बनाने के साथ सफाई की व्यवस्था हो

- शहर में रात काटने के लिए विश्रामालय बनाए जाएं

जनता की जुबानी

- शहर में न तो पार्क हैं और न ही विश्रामालय हैं। ऐसे में शहर के विकास का दावा करना धोखा करने के बराबर है। गैर जनपदों में जब यह बातें उठती हैं तो सिर लज्जा से झुक जाता है।

- विजय लक्ष्मी साहू

- जन सुविधा जनहित से जुड़ा मामला है। योजनाओं में जनहित की दुहाई दी जाती है। शहर में जन सुविधा के नाम पर सरासर मजाक किया जा रहा है। इसे बंद करके संजीदगी से विचार किया जाना चाहिए।

- सुधाकर अवस्थी, अध्यक्ष फतेहपुर कर अधिवक्ता संघ