- नियमों की अनदेखी कर बनाए जाते हैं स्पीड ब्रेकर्स

- रीढ़ और कमर की दर्द से जूझ रहे कई youngsters

- डॉक्टर्स भी मानते हैं इसे बड़ी प्रॉब्लम, बताए सावधानी बरतने के गुर

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LUCKNOW: यह ऐसी समस्या है जिसका सामना शहर के लाखों लोगों को करना पड़ता है। लेकिन, वह इसे गंभीरता से नहीं लेते। रोज इस समस्या से रूबरू होते हैं। हिचकोले खाते हैं। स्लिप डिस्क का शिकार भी होते हैं। केवल यही नहीं कभी-कभी तो यह जानलेवा भी साबित होते हैं। इसके बावजूद इनका इलाज करने के लिए कोई आगे नहीं आता। शहर के लोगों को परेशान करने का जिम्मा उठा रहे हैं यहां के स्पीड ब्रेकर्स। इन्हें बनाने में न तो मानकों का कोई पालन किया जाता है और न ही नियमों का।

जॉपलिंग रोड पर बनाए जा रहे ब्रेकर

इस समय जॉपलिंग रोड के आस-पास रबर के स्ट्रिप के स्पीड ब्रेकर बनाए जा रहे हैं, लेकिन यह टिकाऊ नहीं हैं। ये बहुत जल्द घिसने लगते हैं और फिर रोड पर रह जाती हैं तो इनकी कीलें। जो वाहनों के टायरों को चुभते हैं। जो स्पीड ब्रेकर स्पीड रोकने के लिए बने हैं। वही स्पीड ब्रेकर से अब टायर पंक्चर हो रहे हैं।

मोहल्ले में बना देते हैं स्पीड ब्रेकर

बहुत से स्पीड ब्रेकर रिहायशी इलाकों में पाए जाते हैं। गली-मोहल्ले के लोग आपस में तय कर लेते हैं और चार मजदूरों को काम पर लगवा कर खड़ी ढाल सा स्पीड ब्रेकर बनवा देते हैं, जो गैर कानूनी है।

जिम्मेदार कौन

दिक्कत यह है कि विभिन्न डिपार्टमेंट नागरिक प्राधिकरणों के बीच आपसी तालमेल नहीं है। इस वजह से सड़क पर बनने वाले तरह-तरह के स्पीड ब्रेकर्स पर कोई नजर नहीं डाल रहा है। इसके अलावा लोग निर्धारित गति का पालन नहीं करते। इसके चलते कभी-कभी लाल बत्ती से पहले तो कभी फ्लाईओवरों केऊपर भी स्पीड ब्रेकर लगाने पड़ते हैं, जो बेतुकी बात है।

जिंदगी पर भारी

शहर की गलियों पर अपनी नजरें घुमाने की जरूरत है। कारण अब तो आपके शहर में अवैध स्पीड ब्रेकर भी बनने लगे हैं जो परेशानी का सबब ही नहीं मौत के दरवाजे भी खोल रहे हैं। शहर में आपको एक नहीं ऐसे अनेक स्पीड ब्रेकर मिल जाएंगे, जो बगैर किसी इंडिकेटर के बने हैं। दूर से चली आ रहीं तेज रफ्तार वाहनों को पता ही नहीं कि यहां भी गाड़ी को ब्रेक लगाकर रफ्तार स्लो करनी है। नतीजा उल्टा ही निकलता है। मोटरसाइकिल सवार अस्पताल ही पहुंच जाता है।

स्लिप डिस्क है समस्या

हड्डी रोग विशेषज्ञ एमएस बारी ने बताया कि सड़क पर गड्ढे और ब्रेकर पर बिना स्पीड कम किए फर्राटे भरते हुए निकलना युवाओं को अब भारी पड़ रहा है। अनजाने में वे शरीर में हल्के दर्द से शुरू होने वाली गंभीर बीमारियों की चपेट में फंसते जा रहे हैं। इन बीमारियों का समय पर उपचार नहीं होने पर लकवा होने या किसी अंग के काम बंद कर देने की समस्या भी हो सकती है। सबसे ज्यादा स्लिप डिस्क की समस्या हो रही है जो रीढ़ की हड्डी में अचानक झटके लगने के कारण होती है। स्पीड में बाइक चलाते समय बार बार ब्रेकर, गड्ढे पार करने पर जकड़न, जोड़ों में दर्द, पीठ व गर्दन में दर्द व रीढ़ की हड्डी में दर्द जैसी समस्याएं हो रही हैं। पहले जो बीमारी भ्0 साल की उम्र वाले लोगों को होती थी वही अब ख्भ् से फ्भ् वर्ष उम्र वाले युवाओं को हो रही है।

कहीं झेलना न पड़े

डॉ। संदीप गुप्ता ने बताया कि ओपीडी में आने वाले 70 प्रतिशत से ज्यादा युवा कमर दर्द से परेशान हैं। अगर युवाओं ने बीमारी को नजरंदाज किया तो उन्हें सर्वाइकल स्पांडिलाइटिस, स्लिप डिस्क जैसी गंभीर समस्याएं होने की आशंका बढ़ जाती है। सही इलाज और नियमित व्यायाम से इसे ठीक किया जा सकता है।

इंडियन रोड कांग्रेस के नियम

- स्पीड ब्रेकर की ऊंचाई क्0 सेंटीमीटर, लंबाई फ्.भ् मीटर और वृत्ताकार क्षेत्र यानि कर्वेचर रेडियस क्7 मीटर होना चाहिए।

- ड्राइवर को सचेत करने के लिए स्पीड ब्रेकर आने से ब्0 मीटर पहले एक चेतावनी बोर्ड लगा होना चाहिए।

- स्पीड ब्रेकर पर थर्मोप्लास्टिक पेंट से पट्टियां बनाई जानी चाहिए ताकि रात के समय वे ड्राइवरों की नजरों से न चूकें।

- स्पीड ब्रेकर लगवाने के लिए ट्रैफिक पुलिस या रेजिडेंन्ट वेलफेयर असोसिएशन को पीडब्लूडी को आवेदन पत्र देना होता है।

- आमतौर पर पीडब्लूडी के इंजीनियर स्पीड ब्रेकर के आवेदन पत्रों को परखते हैं और सर्वेक्षण के बाद आवेदन को पास या फेल करते हैं।

- स्पीड ब्रेकर के लिए ख्0, 000 रुपए लगते हैं

- स्पीड ब्रेकर का मकसद है गाडि़यों की रफ्तार को ख्0 से फ्0 किलोमीटर प्रति घंटा तक पहुंचाना ताकि सड़क हादसों के खतरे कम किये जा सकें।

(विशेषज्ञों के मुताबिक यूरोपीय देशों के रिहायशी इलाकों में हर 80 मीटर की दूरी पर स्पीड ब्रेकर मौजूद होते हैं। लेकिन यहां जिसका जहां जैसे मन आयाए गुजरती सड़क पर एक स्पीड ब्रेकर तान देता है.)