हाल ही में हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने एक सर्वे पेश किया जिसके नतीजों में चौंकाने वाले रिजल्ट सामने आए। इससे पता चला कि मेडिकल और मीडिया हाउसेज के लोगों को स्मार्ट फोन बीमारियां दे रहा है। ये स्मार्ट फोन उन्हें स्मार्ट नहीं बना रहा बल्कि फोबिया और स्ट्रेस से लेकर बहुत सारी प्रॉब्लम्स क्रिएट कर रहा है।

ये क्या हो रहा है

स्मार्ट फोन एडिक्शन अब एक नई बीमारी के रूप में उभर रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि मोबाइल फोन के अधिक इस्तेमाल से लोग गर्दन दर्द, आंखें सूखना, कंप्यूटर विजन सिंड्रोम, एंजाइटी, फोबिया और स्ट्रेस के शिकार हो सकते हैं। हार्टकेयर फाउंडेशन द्वारा हाल ही में कराए गए एक सर्वे में यह तथ्य सामने आए हैं कि मोबाइल फोन के एक्टिव व पैसिव रेडिएशन और इसके साथ ही कंप्यूटर, माइक्रोवेव ओवन व अस्पतालों व लैब के एक्सरे रेडिएशन से स्थिति और भयावह हो रही है। सर्वे के मुताबिक 10 परसेंट ऑफिस स्टाफ, 20 परसेंट नर्स, 60 परसेंट मीडियाकर्मी और 31 परसेंट डॉक्टर स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करते हैं। डॉक्टर 30 से 240 मिनट तक हर रोज फोन का इस्तेमाल करते हैं।

सर्वे में आया सामने

औसतन नर्स दिन में दो बार अपने फोन की बैटरी रीचार्ज करती हैं जबकि मीडियाकर्मी व डॉक्टर तीन बार ऐसा करते हैं।

-70 परसेंट डॉक्टर फोन को लगातार अपने पास रखते हैं। घर में भी फोन को अपनी जेब में या करीब रखते हैं।

-28 परसेंट अपना फोन दूर रहने पर या इस्तेमाल न करने पर बहुत असहज महसूस करते हैं।

-33 परसेंट लोग मीटिंग, प्लेन, क्लास व चर्च में अपना फोन इस्तेमाल करते वक्त घबराहट महसूस करते हैं।

-61 परसेंट डॉक्टर रात में अपने सिराहने या बिस्तर के करीब ही मोबाइल रखकर सोते हैं जबकि 20 से 50 परसेंट के बीच नर्स, ऑफिस स्टाफ व मीडियाकर्मी ऐसा करते हैं।

रात की नींद खराब कर रहे स्मार्ट फोन

ऑफिस स्टाफ औसतन हर रात बिस्तर पर 20 मिनट, नर्स 30 मिनट, मीडियाकर्मी 60 मिनट स्मार्ट फोन पर सर्फिंग करने में गुजारते हैं। 26 परसेंट डॉक्टरों की नींद स्मार्ट फोन अलर्ट के चलते खराब होती है, 7 परसेंट के साथ रात में कम से कम तीन बार ऐसा होता है। केवल 40 परसेंट डॉक्टर, 30 परसेंट नर्स व मीडियाकर्मी सोने के 30 मिनट पहले फोन का इस्तेमाल बंद कर देते हैं। स्मार्ट फोन इस्तेमाल के चलते 40 परसेंट लोगों के सोने-जागने का पैटर्न बिगड़ गया है।

सर्जरी के दौरान भी फोन पर बातें

अस्पतालों में सर्जरी के दौरान 90 परसेंट नर्स व 50 परसेंट ओटी टेक्निशियन फोन पर बातें करते हैं। 10 परसेंट डॉक्टर, 20 परसेंट नर्स व 50 परसेंट टेक्निशियन सर्जरी के दौरान ही अपने एसएमएस भी चेक करते रहते हैं। डॉक्टर व नर्स तो नहीं करते लेकिन 50 परसेंट टेक्निशियन सर्जरी के दौरान ही ट्विट भी करते रहते हैं। डॉक्टर भी सर्जरी के दौरान कॉल अटेंड करते हैं लेकिन वे नर्स व जूनियर के जरिए कॉलर को संदेश देते हैं।

ऐसे बचें

-बीच-बीच में एक हफ्ते का फेसबुक होलीडे लेते रहें।

-सोने के 30 मिनट पहले फोन का इस्तेमाल बंद कर दें।

-मोबाइल तभी यूज करें जब आप कहीं आ-जा रहे हैं। दफ्तर या घर में लैंडलाइन यूज करें।

-सीमा तय करें कि एक दिन में 2 घंटे से ज्यादा फोन का इस्तेमाल नहीं करेंगे।

-कंप्यूटर विजन सिंड्रोम से बचने के लिए कंप्यूटर पर तीन घंटे कम बिताएं।

-हर 20 मिनट में 20 फीट की दूरी पर किसी ऑब्जेक्ट पर 20 सेकेंड के लिए अपनी आंख फोकस करें।

फेसबुक पर

80 परसेंट ऑफिस स्टाफ, 80 परसेंट नर्स, 80 परसेंट मीडियाकर्मी और 41 परसेंट डॉक्टर।

ट्विटर पर

20 परसेंट ऑफिस स्टाफ, 30 परसेंट नर्स, 70 परसेंट मीडियाकर्मी और 25 परसेंट डॉक्टर।

"मोबाइल, कंप्यूटर और मेडिकल इक्यूपमेंट्स से रेडिएशन तो निकलती ही है। इन्हें यूज करते समय प्रॉपर प्रिकॉशन लेनी चाहिए जो अक्सर डॉक्टर नहीं लेते। हमें पता है कि सुबह जल्दी उठकर वॉक और एक्सरसाइज करने से हेल्दी रहते हैं मगर खुद इन बातों पर ध्यान नहीं देते। इसलिए डॉक्टर्स की ज्यादातर बीमारियां उनकी लापरवाही से ही आती हैं."

-डॉ। एसएम शर्मा, प्रेसीडेंट आईएमए

"ये बात फैक्ट है कि डॉक्टर्स बीमार हो रहे हैं। अब डॉक्टर्स सुबह जल्दी उठते हैं मगर एक्सरसाइज और योग करने के लिए नहीं बल्कि अपने पेशेंट्स के पास विजिट करने के लिए। ओपीडी और इमरजेंसी पेशेंट देखने के बाद उनके लंच तक का टाइम बिगड़ जाता है। लेट नाइट पेशेंट्स के पास विजिट करते हैं और देर से ही घर पहुंचते हैं। डॉक्टर्स का रुटीन ऐसा हो गया है कि वो एक मशीन की तरह काम करते हैं और खुद को बचाने के लिए उनके पास टाइम ही नहीं है."

-डॉ। रोहित कुमार सिंह काम्बोज, न्यूरो स्पेशलिस्ट