RANCHI : रिम्स में शनिवार को एक मां अपनी गोद में अपने दो माह के नवजात को लेकर नियोनेटल यूनिट के दरवाजे पर तीन घंटे से ज्यादा समय तक खड़ी रही, लेकिन जांडिस पीडि़त नवजात का इलाज करना तो दूर, उसे डॉक्टर से मिलने तक नहीं दिया गया। इस दौरान पेडियाट्रिक्स के कई चिकित्सक भी उसी कॉरिडोर से आते-जाते रहे, लेकिन उन्होंने बच्चे को देखना तक मुनासिब नहीं समझा। यह कोई पहला मामला नहीं है, जहां बच्चों के इलाज में कोताही बरती गई है। तमाम सरकारी अस्पतालों में बच्चों के इलाज का कोई प्रॉपर इंतजाम नहीं है। अगर आप यहां अपने बच्चे को बेहतर इलाज के लिए लेकर आते हैं तो अव्यवस्था, लापरवाही व सुविधाओं के अभाव के अलावा कुछ भी नहीं मिलेगा।

कम पड़ रहे इंक्यूबेटर

चाहे रिम्स की बात करें या सदर हॉस्पिटल की। यहां हर दिन दर्जनों की संख्या में बच्चे इलाज के लिए लाए जाते है, लेकिन उनके प्रॉपर ट्रीटमेंट का यहां कोई मुकम्मल इंतजाम नहीं है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रिम्स के पेडियाट्रिक आईसीयू में मात्र चार इंक्यूबेटर है। एक इंक्यूबेटर पर दो-दो बच्चे को रखा जाता है। वहीं एक-एक बेड पर तीन-तीन बच्चों का इलाज होता है। दूसरी तरफ, सदर के सुपरस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में 50 बेड का पेडियाट्रिक वार्ड तो चालू कर दिया गया है, लेकिन यहां भी मात्र दो इंक्यूबेटर हैं। ऐसे में गंभीर बच्चों को इलाज के लिए रिम्स रेफर कर दिया जाता है।

इंफेक्शन का खतरा

रिम्स और सदर में एक इंक्यूबेटर पर दो-दो व बेड पर तीन-तीन बच्चों का इलाज किए जाने से उनमें इंफेक्शन का भी खतरा बना रहता है। लेकिन, डॉक्टर व नर्सो का ध्यान इस ओर नहीं जा रहा है। रिम्स प्रबंधन भी इंक्यूबेटर व बेड की संख्या बढ़ाने के लिए कोई पहल नहीं कर रहे हैं। चूंकि, यहां ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर परिजन ही अपने बच्चों को इलाज कराने के लिए लाते हैं। ऐसे में आर्थिक तंगी उनकी मजबूरी है कि वे यहां से प्राइवेट हॉस्पिटल नहीं जा सकते हैं।

रात में नहीं रहते सीनियर डॉक्टर

रिम्स में पेडियाट्रिक्स के 14 सीनियर डॉक्टर है लेकिन रात को एक की भी ड्यूटी नहीं लगाई जाती है। ऐसे में पेडियाट्रिक वार्ड में एडमिट किसी बच्चे की अगर तबीयत ज्यादा बिगड़ जाए तो उसके इलाज के लिए सीनियर डॉक्टर नहीं मिलेंगे। जूनियर डॉक्टर्स के भरोसे नियोटेनल आईसीयू और पेडियाट्रिक वार्ड रहता है। यही वजह है कि रात में बेहतर इलाज के सीनियर डॉक्टर की सेवा नहीं मिलने की वजह से कई बच्चों की मौत भी हो चुकी है।

ओपीडी के बाद नहीं मिलेंगे डॉक्टर

सदर के सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में 50 बेड का पेडियाट्रिक वार्ड तो चालू कर दिया गया है, पर मात्र चार डॉक्टर के भरोसे यह चल रहा है। इसमें भी एक डॉक्टर अवकाश पर रहते हैं। यहां ओपीडी के बाद डॉक्टर ड्यूटी में नहीं रहते है। अगर बच्चों को इमरजेंसी हो जाए तो अगले दिन सुबह तक इंतजार करना होगा या फिर दूसरे हॉस्पिटल का रूख करना होगा।