स्वास्थ्य विभाग व जिला अस्पताल में दवाइयों का सीमित स्टॉक

20 प्रतिशत से ज्यादा मरीज बढ़ गए हैं दो महीने में

50 प्रतिशत मरीजों को भी नहीं मिल पाती एआरवी

200-250 मरीज डॉग बाइट के पहुंचते हैं सरकारी अस्पतालों में हर दिन

100 से 150 नए मरीज हर दिन वैक्सीन लेने आते हैं जिला अस्पताल में

24 घंटे के अंदर रेबीज का ट्रीटमेंट लेना जरूरी होता है।

Meerut। जिला अस्पताल, सीएचसी व अर्बन हेल्थ सेंटर्स पर एंटी रेबीज इंजेक्शन लगवाने के लिए मारामारी मची है। लगातार कुत्ता काटे के मरीज बढ़ रहे हैं लेकिन अस्पतालों में एंटी रेबीज वैक्सीन की किल्लत चल रही है। स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार दो महीने में 20 प्रतिशत से ज्यादा मरीज बढ़ गए हैं। गौरतलब है कि 50 प्रतिशत मरीजों को सरकारी सेवाओं के तहत एआरवी का लाभ नहीं मिल पाता है।

ये है स्थिति

स्वास्थ्य विभाग की रिपोर्ट के अनुसार सरकारी सेवाओं के तहत हर दिन करीब 200-250 मरीज डॉग बाइट के पहुंचते हैं। जिला अस्पताल में हर दिन रोज लगभग 100 से 150 नए मरीज वैक्सीन लेने आते हैं जबकि सीएचसी व अर्बन हेल्थ सेंटर्स पर भी लगभग यही स्थिति रहती है। जबकि दवाइयों की तंगी की वजह से मरीजों को मारामारी झेलनी पड़ती है। हर दिन बामुश्किल 100 से 150 मरीजों को ही वैक्सीनेशन मिल पाता है।

एआरवी का स्टॉक पर्याप्त नहीं

एआरवी का स्टॉक विभाग में कभी भी पर्याप्त मात्रा में नहीं रहता है। चीफ फार्मासिस्ट डॉ। वी.के। सिंह के मुताबिक एआरवी का स्टॉक खत्म होने की कगार पर है। बामुश्किल हफ्ते-15 दिन का स्टॉक ही विभाग के पास बचा हुआ है। कई बार कंपनियों को रिमाइंडर भेजा जा चुका है। स्वास्थ्य विभाग की ओर से 12 सीएचसी - पीएचसी, अर्बन हेल्थ सेंटर्स को एआरवी सप्लाई होती है। देहात में डॉग बाइट के केस अधिक आते हैं। जिला अस्पताल में भी करीब 1300 वॉयल ही बची हैं। एक वॉयल से 5 लोगों को वैक्सीन दी जाती है।

देहात के मरीजों की दुर्गति

डॉग बाइट के मामलों में सबसे ज्यादा देहात के मरीजों को जूझना पड़ता है। ये मरीज सीएचसी और जिला अस्पताल के बीच झूलते रहते हैं। स्टॉक खत्म होने की वजह से इन्हें सीएचसी से जिला अस्पताल रेफर कर दिया जाता है जबकि जिला अस्पताल प्रशासन ये कहकर इन्हें टरका देता है कि उनके यहां सिर्फ अपने क्षेत्र के मरीजों को ही एआरवी दी जा सकती है।

ये है रेबीज

रेबीज जानवरों से फैलने वाला वायरल जूनोटिक इंफेक्शन होता है। इसे हाइड्रोफीबिया भी कहते हैं। 24 घंटे के अंदर रेबीज का ट्रीटमेंट लेना जरूरी होता है। वरना ये वायरस स्पाइनल कोर्ड और दिमाग पर हमला कर एंसेफ लाइटिस पैदा करता है। इंफेक्टिड मरीज के स्लाइवा के सपंर्क में आने से रेबीज होती है। 19 साल तक इसका खतरा बना रहता है।

हमारे पास प्रचुर मात्रा में एआरवी हैं। हर मरीज को एआरवी की जरूरत नहीं होती है इसलिए काउंसलिंग भी करवाई जाती है।

डॉ। पीके बंसल, एसआईसी, जिला अस्पताल

3 दिन बाद से 3 महीने तक मरीज में रेबीज के लक्षण दिखते हैं। 24 घंटे में एआरवी लगवा लेना चाहिए।

डॉ। राजेश शर्मा, वेटनरी एक्सपर्ट