सिटी में है हर ब्रीड के डॉग्स

लास्ट टेन ईयर्स में सिटी में डॉग्स की संख्या और लाइफस्टाइल में काफी इजाफा हुआ है। यहां तकरीबन हर ब्रीड का डॉग है। सेंट बर्नाड से लेकर पूडल तक और चाउ-चाउ से लेकर बीगल तक। वैसे तो हर डॉग का रजिस्ट्रेशन नगर निगम में होना चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है। सिटी के वेटरनरी डॉक्टर्स के पास से मिले आंकड़ों के अनुसार, सिटी में डॉग्स की संख्या 40,000 से ज्यादा है लेकिन इनमें से 10,000 ही डॉग फूड खाते हैं।

दस सालों में बढ़ी खपत

आज से दस साल पहले तक एक महीने में डॉग फूड सिटी में 100 किलोग्राम भी नहीं बिकता था। लेकिन अब यह लगभग 20 टन बिकता है। डॉग फूड की भूख 100 किलोग्राम से 20,000 किलोग्राम की हो गई है। वह भी बीते दस सालों में। लोग अब अपने डॉग्स को डॉग फूड खिलाना ही पसंद कर रहे हैं।

ये डॉग फूड हैं डिमांड में

वैसे तो मार्केट में कई तरह के डॉग फूड बिक रहे हैैं। लेकिन पहले नंबर पर पेडीग्री है। दूसरे नंबर पर रॉयल कैनिन आता है और तीसरे नंबर पर आर्डन ग्रेन्स आता है। इसके बाद न्यूट्रीपेट, युकोनोबा आदि भी बिकते हैैं। लेकिन 20 टन डॉग फूड में से पेडीग्री अकेला ही आधे से ज्यादा बिक जाता है।

बड़े फायदे हैं डॉग फूड के

डॉग लवर्स अपने डॉग्स को इसलिए डॉग फूड देना पसंद करते हैैं क्योंकि इस एक डॉग फूड से डॉग्स की बॉडी की सारी जरूरतें पूरी हो जाती हैैं। डॉग की हेल्थ अच्छी हो जाती है। उसके बालों में शाइनिंग आ जाती है। इस डॉग फूड में ओमेगा 6 होता है। मसल डेवलपमेंट के लिए भी प्रोटीन होता है, विटामिन और मिनरल्स भी होते हैैं। प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेड। विटामिन्स के कमी को पूरा करने का काम यह करता है।

रोटी देना भूल गए

डॉग लवर्स को डॉग पालना तो अच्छा लगता है लेकिन उनके लिए रोटी का इंतजाम करना थोड़ा मेहनत का काम हो जाता है। इस मेहनत से बचाने का काम डॉग फूड करता है। लोगों को रोटियां नहीं सेंकनी पड़ती।

बहुत सारे  फ्लेवर्स में भी आता है

डॉग फूड सिर्फ नॉन वेज ही नहीं होता, यह वेज भी आता है। पपीज के डॉग फूड में तो बोर्नवीटा की तरह डीएचए भी होता है, जो ब्रेन को डेवलप करने के काम करता है। एडल्ट का अलग होता है। इसमें ग्लूकोसामिन जोड़ों के लिए डाला जाता है। सात साल के बाद लेब्राडोर, जर्मन शैफर्ड, ग्रेट डैन में अर्थराइटिस हो जाता है। उनके लिए यह काफी फायदेमंद है।

बीमारियों डॉग्स के लिए स्पेशल फूड

कई कंपनियों ने डॉग फूड डॉग्स की बीमारियों के हिसाब से भी मार्केट में उतारे हैैं। जैसे यूरीनरी स्टोन्स हैैं या किडनी में साइड इफेक्ट हो गया तो उसके लिए भी डॉग फूड है। पेट में अगर कोई प्रॉब्लम हो तो उसके लिए भी आता है, डॉग को पतला करने के लिए भी फूड आता है।

जीवन दत्त शर्मा, कैनाइन डिस्ट्रीब्यूटर

पिछले दस सालों में तेजी से डॉग फूड का मार्केट डेवलप हुआ है। लोग अब वेटनरी डॉक्टर्स के अलावा मॉल्स में भी डॉग फूड तलाशते हैैं। अब तो कई डिपार्टमेंटल स्टोर्स पर भी डॉग फूड बिकने लगा है।

डॉ। संजीव नेहरू, वेटरनरी डॉक्टर

डॉग फूड का असर डॉग्स की हेल्थ पर साफ तौर पर दिखता है। इसके अलावा अब लोगों के पास ज्यादा समय भी नहीं है। वे डॉग्स पालते हैैं लेकिन उनके लिए रोटियां सेंकने का टाइम नहीं है। इसीलिए वे डॉग फूड प्रिफर करते हैैं।

खूब खा रहे फूड

हर महीने एक जर्मन शैफर्ड लगभग 1500 रुपये का डॉग फूड खा जाता है। ग्रेट डेन लगभग 3000 रुपये का डॉग फूड खाता है, लेब्रोडोर 1500 रुपये का फूड खाता है। रॉटवीलर लगभग 1800 रुपये का डॉग फूड खा जाता है।

बड़ा महंगा है ये शौक

 ब्रीड- खर्चा(खाना और वेक्सीनेशन)

स्मॉल(स्पिट्ज, पग, लासा एप्सो, कॉकर स्पेनियल)- 1200 रुपये हर महीने

मीडियम(डॉबर मैन, रॉट वीलर, जर्मन शैफर्ड)- 1500-1800 रुपये

जाइंट ब्रीड(ग्रेट डैन, सेंट बर्नाड)- 2500 -3000 रुपये हर महीने