चौथी बार भी कैसे सह लेते?

कामिनी (बदला हुआ नाम) का अबॉर्सन तीन बार हो चुका है। चौथी बार प्रेग्नेंट होने पर ससुराल वालों के प्रेशर में फिर से जांच करवाया गया। जांच में पाया गया कि कामिनी को बेटी ही होने वाली है। फैमिली वालों के डर से वह वीमेन हेल्पलाइन की शरण में आई है।

 

लड़की हुई, तो घर से निकाल दिया

रंजीता (बदला हुआ नाम) को एक बेटा है। दूसरा बच्चा होने वाला था, तो जांच में लड़की निकलने के बाद ससुराल वालों ने अबॉर्सन करवा दिया, जिससे वह सदमे में चली गई। कुछ दिनों बाद फिर से मां बनी और जुड़वां बेटी को जन्म दिया, नतीजतन रंजीता को ससुराल वालों ने घर से निकाल दिया। ससुराल वालों के खिलाफ वह महिला हेल्पलाइन के पास आई।

 

कुछ सालों में बढ़े हैं केसेज

वीमेन हेल्पलाइन के अनुसार बेटी को जन्म नहीं देने की दकियानूसी बातें आज भी लोगों के अंदर मौजूद है। इसे इगो कहें या प्रतिष्ठा, लोग बेटा ही चाहते हैं। एबॉर्सन पहले भी होता था, पर महिलाएं चाहते हुए भी अपना मुंह नहीं खोलती थी। पर, अब समय बदल गया है। अब वे अपने बच्चे की खातिर वीमेन हेल्प लाइन का दरवाजा तक खटखटाती हैं। पटना वीमेंस कॉलेज की साइकोलॉजिस्ट डॉ। पुष्पा सिंह ने बताया कि एबॉर्सन के बाद महिला मानसिक रूप से कमजोर हो जाती है। यह दर्द उसे जिंदगी भर कचोटते रहता है और अपना बच्चा बचाने के लिए कुछ भी कर गुजरती है। नहीं सुलझ पाता कई केस वीमेन हेल्पलाइन फैमिली वाले अन्य मैटर्स भले ही सॉल्व कर लेता हो, पर ऐसे मामलों में वह भी कुछ नहीं कर पाता। वीमेन हेल्पलाइन की काउंसलर साधना ने बताया कि कुछ केस इतने इमोशनल होते हैं कि उसे सॉल्व करने में हमें भी प्रॉब्लम होती है। पति अगर चाह ले तो मामला जल्दी सुलझ जाता है, वरना पति पर भी प्रेशर डालना होता है।

2013 में अप्रैल से सितंबर तक आए ऐसे केसेज

अक्टूबर : अब तक 3

सितंबर : 8

अगस्त : 6

जुलाई : 5

जून : 3

मई : 4

अप्रैल : 5

नोट- एक्सपट्र्स की मानें तो 90% मामले बाहर ही नहीं आ पाते हैं।

'कुछ महीनों से यहां अबॉर्सन संबंधी केसेज दर्ज होने लगे हैं। पहले डोमेस्टिक वायलेंस रिलेटेड मारपीट जैसे केस दर्ज होते थे, पर अब महिलाएं अबॉर्सन नहीं करवाना चाहते। अब वैसी महिलाएं हमारे पास हेल्प के लिए आती हैं.'

-प्रमिला, प्रोजेक्ट हेड, वीमेन हेल्प लाइन

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