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-गुप्तचर के रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान संदेश पहुंचाने का करते थे काम

-विवेकानंद (विक्रम सिंह) हैं आज गुमनामी के अंधेरे में

-देश के साथ उत्तराखंड राज्य को भी बदलते हुए देखा

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DEHRADUN : दून के प्रेमनगर श्यामपुर में रहने वाले विवेकानंद (विक्रम सिंह) ने देश को आजादी दिलाने में अपने करीब 8 साल समर्पित किए। आज 8म्वें साल के इस उम्र पड़ाव में विवेकानंद बताते हैं कि क्9फ्9 से उन्होंने देश की आजादी में अपनी युवावस्था में ही सक्रियता के साथ भागीदारी की। उस समय वह गुप्तचर विभाग में कैप्टन हरबंस नाम के शख्स के नेतृत्व में काम करते थे। उस समय टेलिफोन और मोबाइल की सुविधाएं नहीं मिल पाती थी। इसलिए वह एक स्थान से दूसरे स्थान क्रांतिकारियों को मैसेज देने का काम करते थे। ब्रिटिश अधिकारियों की गतिविधि और संगठन की बात एक स्थान से दूसरे स्थान पहुंचाने का काम उनका था। उस दौरान वह मैसेंजर के रूप में लाहौर, क्वैटा, कराची, देहरादून, कोटद्वार आदि विभिन्न स्थानों पर गए। इस दौरान गांधी जी के साथ उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन और विनोबा भावे के साथ भूदान यात्रा में भी भाग लिया। भूदान के तहत बड़े साहूकारों से भूमि को दान में मांगकर गरीबों में बांटा जाता था। नमक आंदोलन के रूप में भी वह सक्रिय रहे।

एनडीए की स्थापना की

क्9ब्7 में देश आजाद होने के बाद डा राजेन्द्र प्रसाद ने फोर्स की ट्रेनिंग के लिए एक एकेडमी का गठन करने की सोची। इसलिए मोरारजी देसाई से कहकर खड़क वासला में एनडीए की स्थापना की गई। इसके बाद सैनिक के रूप में उन्होंने एनडीए ज्वॉइन किया। एनडीए में वह इंस्ट्रक्टर के तौर पर नए सैनिकों को ड्राइविंग आदि सिखाते थे।

अपना लिया संन्यासी जीवन

क्987 के करीब एनडीए से रिटायरमेंट के बाद विवेकानंद ने संन्यास ले लिया और संन्यासी के तौर पर जीवन यापन करने लगे। आज वह वेदों के प्रचार-प्रसार व सामाजिक क्रिया कलापों में अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं। इस दौरान वह कभी चकराता तो कभी पौंधा स्थित अपने आश्रमों में रहते हैं। एनडीए से रिटायरमेंट होने के बाद भले ही इन्हें पेंशन मिल रही है, लेकिन देश को आजादी दिलवाने वाले स्वतंत्रता सैनानी के रूप में इन्हें न तो कभी उत्तराखंड सरकार ने याद किया और न ही भारत सरकार ने याद किया।

देश को बदलते हुए देखा

विवेकानंद बताते हैं कि देश के पहले गणतंत्र के समय में और वर्तमान में काफी तुलना है। आज देश और राज्य काफी आगे बढ़ गया है। उस समय कुछ लोगों के पास ही गाडि़यां होती थी। साइकिल की कीमत उस समय करीब क्ख्0 रुपए थी। जो अपने आप में बड़ी रकम मानी जाती थी। सेठ साहूकारों के पास यह सब चीजें होती थी। उत्तराखंड में कोटद्वार व दुगड्डा उस समय बाजार हुआ करता था। जहां गढ़वाल क्षेत्र के लोग खरीददारी के लिए जाया करते थे। दो-दिन के बीच पैदल चल कर वहां पहुंचते थे। देहरादून में उस समय डालनवाला एरिया में ब्रिटिश काल के बड़े साहूकार लोग रहते थे। जो पहले ब्रिटिश हुकूमत के खास लोग हुआ करते थे। सर्वे चौक के पास कोई स्कूल हुआ करता था जहां आजादी से पहले ब्रिटिश अधिकारियों के बच्चे व देश में बड़े ओहदे वाले लोगों के बच्चे पढ़ते थे।

क् आना और ब् पाई का जमाना था

विवेकानंद बताते हैं कि उस समय क् आना और ब् पाई का जमाना था। क् रुपए में क्म् किलो नमक और क्0 किलो गुड़ मिल जाता था। गेंहू भी क् रुपए में 8 किलो मिल जाता था। उस समय लोगों का आम पहनावा कुरता पैजामा होता था। जो ख् से फ् रुपए तक बन जाता था। लेकिन आज इसकी जगह जींस और विभिन्न प्रकार के कपड़ों ने ले ली है।