- गर्भवती महिलाओं के पर्चे पर लगाई जा रही विशेष मुहर

- इलाज के दौरान संक्रमण की जि6मेदारी मरीज के सिर

- दून महिला अस्पताल 40 बेड का ही मिल रहा बजट

- 100 से ज्यादा मरीज रोज पहुंचते हैं इलाज के लिए

DEHRADUN : ''हमें बता दिया गया है कि अस्पताल में बिस्तर भरे हुए हैं। ऐसे में हमारे मरीज को प्रसव से पहले या बाद में दूसरे मरीज के साथ लेटना पड़ सकता है। ऐसे में मरीज व बच्चे को गंभीर संक्रमण का खतरा पैदा हो सकता है। ऐसी स्थिति में भी हम अपने मरीज को इसी अस्पताल में भर्ती करवाना चाहते हैं। जिम्मेदारी हमारी है.'' यह इबारत है एक मुहर की, जो इन दिनों दून महिला अस्पताल में प्रसव के लिए भर्ती की जाने वाली महिलाओं के पर्चे पर लगाई जा रही है। इस मुहर के नीचे महिला के परिजनों के साइन भी लिए जा रहे हैं, ताकि अस्तपताल की जिम्मेदारी खत्म हो जाए। दरअसल मजबूरी की यह मुहर अस्पताल की बदहाली को बयां करती है।

सिर्फ 40 बेड का बजट

दून महिला अस्पताल को इन दिनों केवल 40 बेड का ही बजट मिल रहा है। अस्पताल के सूत्रों का कहना है कि मरीजों की संख्या को देखते हुए अस्पताल में 30 एक्स्ट्रा बेड की व्यवस्था की गई है, लेकिन इससे भी पूरा नहीं हो पाता। लेबर रूम में ले जाने से पहले महिलाओं को अस्तपाल के बरामदे या लॉन में ही समय काटना पड़ता है। प्रसव के बाद एक बेड में दो-दो मरीजों को लिटाना पड़ता है।

अस्पताल में 40 डिलीवरी रोज

राजकीय दून मेडिकल कॉलेज के अंतर्गत चल रहे दून महिला अस्पताल में हर रोज औसतन 40 डिलीवरी होती हैं। नॉर्मल डिलीवरी के बाद जच्चा-बच्चा को कम से 48 घंटे अस्पताल में रखना जरूरी है, जबकि सिजेरियन में 5 दिन रखना होता है। ऐसे में हर रोज अस्पताल में भर्ती मरीजों की संख्या 100 से ज्यादा होती है, जबकि बेड सिर्फ 70 ही हैं।

मरीज हैं लाचार

ये राजेन्द्र सिंह चौहान हैं। विकासनगर में रहते हैं। पत्‍‌नी को लेबर पेन की शिकायत हुई तो अस्पताल ले आये। राजेंद्र कहते हैं कि हमें पहले ही बता दिया था कि अस्पताल में बिस्तर नहीं हैं। हमारे पास इतने पैसे नहीं हैं कि प्राइवेट अस्पताल में जा सकें। अब जो होगा यहीं होगा। यह लाचारी अकेले राजेंद्र की नहीं, बल्कि पर्चे की मुहर के नीचे दस्तखत करने वाले हर मरीज और तीमारदार की है।

लॉन और बरामदे में शरण

दून महिला अस्पताल में आने वाली हर महिला को लेबर रूम में जाने से पहले लेबर पेन के बावजूद भी अस्पताल के बरामदे या लॉन में समय काटना होता है। दिन में धूप के दौरान लॉन में महिलाएं शरण लेती हैं, जबकि कड़ाके की ठंड में रात बरामदे में काटनी होती है।

मुहर की बात पर प्रिसिंपल शॉक्ड

मरीजों के पर्चे पर लगाई जा रही इस मुहर के बारे में प्रिंसिपल डॉ। पी भारती गुप्ता से उनका पक्ष पूछा गया तो उन्होंने इस तरह की मुहर पर हैरानी जताई। डॉ। गुप्ता ने कहा कि अस्पताल में बेड की कमी तो है, लेकिन इस तरह से लिखित रूप से देना गलत है। डॉ। गुप्ता के अनुसार वे इस बारे में अस्पताल के अधिकारियों से पूछेंगे कि इस तरह की मुहर किसके आदेश पर बनाई गई है।