- बिना किसी पावर के काम कर रहे मेडिकल सुपरिटेंडेंट

- आदेश के बावजूद नियमित रूप से हॉस्पिटल में नहीं बैठते प्रिंसिपल

देहरादून, हेल्थ डिपार्टमेंट से मेडिकल एजुकेशन के अधिकार क्षेत्र में आने के बाद दून हॉस्पिटल की व्यवस्थाएं लगातार बिगड़ती गई हैं। मरीजों को मिलने वाली सुविधाओं का ग्राफ लगातार गिरता जा रहा है। हाल ही में भाई का शव कंधे पर ढोने के मामले ने एक बार फिर हॉस्पिटल की व्यवस्थाओं पर सवाल खड़े किए हैं। जानकारों का मानना है कि अव्यवस्थाओं का सबसे बड़ा कारण हॉस्पिटल के एमएस को कोई अधिकार न दिया जाना और आदेश के बावजूद मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल का हॉस्पिटल में न बैठना है।

बिना अधिकार के एमएस

हॉस्पिटल में एडमिनिस्ट्रेटिव और फाइनेंशियल मामलों में मेडिकल सुपरिटेंडेंट को निर्णय लेने का अधिकार ही नहीं है। किसी भी व्यवस्था में सुधार और छोटी-मोटी जरूरतों के लिए भी एमएस को मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल को पत्र लिखना पड़ता है। कागजी कार्यवाही में काफी समय बीत जाता है और समस्या के निराकरण की प्रक्रिया लंबी खिंच जाती है। ऐसे में मरीजों को तत्काल सुविधाएं नहीं मिल पाती।

प्रिंसिपल नहीं बैठते हॉस्पिटल में

इस तरह के मसलों पर तुरंत फैसला हो सके, इसके लिए प्रिंसिपल को हर दिन 2 बजे तक हॉस्पिटल में अनिवार्य रूप से बैठने के आदेश स्वास्थ्य निदेशालय से दिए गए हैं। लेकिन, प्रिंसिपल हॉस्पिटल में नहीं बैठ पाते। हालांकि, कॉलेज की व्यस्तताओं को वे इसका कारण बताते हैं। दूसरी अहम बात यह है कि प्रिंसिपल के बैठने के लिए हॉस्पिटल में अब तक ऑफिस तैयार नहीं किया गया है। हॉस्पिटल में उन्हें कान्फ्रेंस रूम में बैठना पड़ता है।

कई प्रस्ताव हैं पेंडिंग

एमएस की ओर से रोजमर्रा की समस्याओं के समाधान के लिए भेजे जाने वाले प्रस्ताव अक्सर कई महीनों तक पेंडिंग रहते हैं। दो महीने पहले भेजे गये शव वाहन के प्रस्ताव पर अभी कोई फैसला नहीं हुआ। मशीनों के मेंटिनेस के मामले में भी यही स्थिति है। स्ट्रेचर और व्हील चेयर के प्रस्ताव पर अब फैसला हुआ है।

एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप

हॉस्पिटल की अव्यवस्थाओं को लेकर जब एमएस से सवाल किए जाते हैं तो वे खुद को अधिकारविहीन बताकर हर व्यवस्था के लिए मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल पर जिम्मदारी डाल देते हैं। प्रिंसिपल से जब जानकारी ली जाती है तो वे हॉस्पिटल की व्यवस्थाओं के लिए एमएस को ही जिम्मेदार बताते हैं।

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अस्पताल की पूरी जिम्मेदारी एमएस की है। उन्हें जो भी जरूरत अस्पताल के लिए होती है उसका प्रस्ताव आने पर तुरन्त उपलब्ध करवाया जाता है।

-डॉ। पी। भारती गुप्ता, प्रिंसिपल, दून मेडिकल कॉलेज।

पावर देना या न देना उच्च अधिकारियों के स्तर का मामला है। मुझे जो जिम्मेदारी दी गई है, उसे पूरा करने का हरसंभव प्रयास करता हूं। अत्यधिक जरूरत के समय अपनी जेब से भी खर्च करता हूं।

-डॉ। केके टम्टा, एमएस, दून हॉस्पिटल।

उत्तराखंड में मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल्स में एमएस को पावर दिये जाने की व्यवस्था नहीं है। हल्द्वानी और श्रीनगर मेडिकल कॉलेज में भी सभी पावर प्रिंसिपल के पास हैं।

-डॉ। आशुतोष सयाना, डायरेक्टर, मेडिकल एजुकेशन।