मरता क्या न करता
कैंडिडेट्स जब एग्जाम देकर सेटर से बाहर निकले तो लंच का वक्त हो चुका था। लेकिन उन्हें खाने-पीने की चीजें खोजने में बहुत प्रॉब्लम हुई। जो दुकानें और ठेले-खोमचे दिखे भी वहां खाने लायक कुछ था नहीं। लेकिन मजबूरी ऐसी कि कुछ भी मिल जाए। पेट तो भरना ही था। किसी ने पूड़ी-कचौड़ी से काम चलाया तो किसी ने समोसा और बाटी चोखा से। बाहर से आए कैंडिडेट्स सबसे ज्यादा परेशान हुए। एसएससी का एग्जाम देने आजमगढ़, कौशांबी, बनारस, गया, रीवा, रायबरेली, सुलतानपुर सहित कई अन्य जगहों से कैंडिडेट्स आए थे. 

जो मिला उसी से संतोष कर लिया
बीएचएस सेंटर से एसएससी का एग्जाम देकर बाहर आए सुरेंद्र एक खोमचे से समोसे लेकर खा रहे थे। उन्होंने बताया कि हमारे पास कोई च्वाइस नहीं है इसीलिए जो मिल गया वही खा लिया। एग्जाम के दौरान दो घंटे सिर खपाने के बाद अच्छा खाना खाने बहुत मन था। लेकिन खाना तो दूर पीने के लिए साफ ठंडा पानी तक अवेलेबल नहीं है। शुक्र है  कि धूप नहीं निकली वर्ना न जाने क्या हाल होता। यही बातें एग्जाम देकर निकले लगभग हर कैंडिडेट्स की जुबान पर थे। सब परेशान थे। किसी ने चने खाकर भूख मिटाई तो किसी ने समोसा या बाटी चोखा। प्यास बुझाने के लिए लोगों ने गन्ने का जूस, आम का पना और बेल का शर्बत पीना बेहतर समझा। लेकिन यह भी अनहाईजीनिक ही था। साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं था.

Shopkeepers encashed the situation
मौके का फायदा उठाना भला किसे नहीं आता। फिर ऐसे मौके बार-बार आते भी नहीं जब एक ही दिन तीन-तीन शिफ्ट में एग्जाम हो। संडे को नॉर्मली मार्केट में भीड़भाड़ काफी कम रहती है। क्योंकि ऑफिस, स्कूल और कॉलेज बंद रहते हैं। लेकिन एग्जाम की वजह से यह संडे शॉपकीपर्स, रिक्शा पुलर्स और रोड साइड वेंडर्स के लिए काफी अच्छा रहा। इन्होंने इसका फायदा भी खूब उठाया। नार्मली तीन रुपए में बिकने वाला समोसा संडे को पांच रुपए में बेचा। कचौड़ी की 20 रुपए वाली प्लेट 30 रुपए में और गन्ने के जूस का 10 वाला गिलास 15 रुपए में बेचा। कैंडिडेट्स की मजबूरी का फायदा उठाने में कोई पीछे नहीं रहा। कैंडिडेट्स भी जैसे इस सबके के लिए तैयार होकर ही आए थे। कुछ कैंडिडेट्स ने इसका विरोध भी किया लेकिन उनकी एक न चली.

टेम्पो, रिक्शा वालों ने भी मुंहमांगा किराया वसूला
मिसेज सिन्हा को कटरा से रेलवे स्टेशन जाना था। हमेशा की तरह वह रिक्शे पर बैठ गई, यह मानकर कि 25 रुपए ही किराया पड़ेगा। लेकिन वह हैरान रह गईं जब रिक्शेवाले ने उनसे कहा कि मैडम 50 रुपए किराया पड़ेगा। कारण पूछने पर रिक्शा पुलर ने कहा हमें बिना मोलभाव किए 50 रुपए मिल रहे हैं तो भला क्यों आधे किराए में सवारी बैठाऊं। उसे तुरंत दूसरी सवारी मिल गई और वह भी मुंहमांगे किराए पर। क्योंकि इस स्टूडेंट को ट्रेन पकडऩी है और वह जानता है कि मोलभाव करने का आज कोई फायदा नहीं है। टेम्पो वाले भी कहां पीछे रहते। म्योहाल चौराहे से रेलवे स्टेशन तक 10 रुपए किराया है। लेकिन बीएचस में एग्जामिनेशन सेंटर होने के कारण यहां सैकड़ों स्टूडेंट्स टेम्पो के लिए इंतजार करते देखे गए। उनकी इसी मजबूरी का फायदा उठाकर टेम्पो चालकों ने उनसे 20-25 रुपए तक किराया वसूल किया.

अलग-अलग shift का फायदा मिला
शुक्र रहा कि एग्जाम की शिफ्ट अलग-अलग थी। सुबह सात से 10.30 बजे तक यूपीएसईई का एग्जाम था। ये कैंडिडेट्स एग्जाम देकर सेंटर से बाहर निकलते उससे पहले ही एसएससी के स्टूडेंट्स सेंटर्स में पहुंच गए। यानि 10.30 बजे सड़क पर सिर्फ यूपीएसईई कैंडिडेट्स की भीड़ रही। 12 बजे एसएससी का एग्जाम छूटने से पहले यूपीएसईई कैंडिडेट्स बस अड्डे और रेलवे स्टेशन पहुंच चुके थे। ठीक इसी तरह एसएससी की दो बजे से चार बजे की शिफ्ट के स्टूडेंट्स के निकलने से पहले पहली शिफ्ट के स्टूडेंट्स अपने डेस्टिनेशन के लिए निकल चुके थे। लेकिन दोपहर 12 बजे से दो बजे तक रोड पर ज्यादा भीड़ दिखी क्योंकि इस दौरान एसएससी के पहली और दूसरी दोनों शिफ्ट के कैंडिडेट्स बाहर ही थे। अगर एग्जाम की शिफ्ट को इस तरह से मैनेज न किया गया होता तो हालात और कठिन होते.

English easy थी, mathsने रुलाया
सुबह 10 बजे से 12 बजे की शिफ्ट में एसएससी की एग्जाम देकर निकले स्टूडेंट्स ने बताया कि इंग्लिश के क्वेश्चन ठीक-ठाक थे। ये एसएससी सीजीएल लेवल के हिसाब से स्टैंडर्ड थे लेकिन मैथ्स का पेपर टफ था। स्टूडेंट्स का कहना था कि कॉम्पिटीटिव एग्जाम में इतने डिफिकल्ट क्वेश्चन आना कोई बड़ा इश्यू नहीं है। रिजनिंग और जीएस के क्वेश्चंस बैलेंस्ड थे। वहीं एसएससी सीजीएल की सेकंड शिफ्ट में एग्जाम देकर निकले स्टूडेंट्स ने बताया कि रिजनिंग के क्वेश्चंस में कोई प्रॉब्लम नहीं हुई। लेकिन मैथ्स ने खूब परेशान किया। वहीं यूपीएसईई का एग्जाम देकर निकले स्टूडेंट्स ने बताया कि पेपर अच्छा था। पेपर अपने स्टैंडर्ड के एकॉर्डिंग था. 

मरता क्या न करता

कैंडिडेट्स जब एग्जाम देकर सेटर से बाहर निकले तो लंच का वक्त हो चुका था। लेकिन उन्हें खाने-पीने की चीजें खोजने में बहुत प्रॉब्लम हुई। जो दुकानें और ठेले-खोमचे दिखे भी वहां खाने लायक कुछ था नहीं। लेकिन मजबूरी ऐसी कि कुछ भी मिल जाए। पेट तो भरना ही था। किसी ने पूड़ी-कचौड़ी से काम चलाया तो किसी ने समोसा और बाटी चोखा से। बाहर से आए कैंडिडेट्स सबसे ज्यादा परेशान हुए। एसएससी का एग्जाम देने आजमगढ़, कौशांबी, बनारस, गया, रीवा, रायबरेली, सुलतानपुर सहित कई अन्य जगहों से कैंडिडेट्स आए थे. 

जो मिला उसी से संतोष कर लिया

बीएचएस सेंटर से एसएससी का एग्जाम देकर बाहर आए सुरेंद्र एक खोमचे से समोसे लेकर खा रहे थे। उन्होंने बताया कि हमारे पास कोई च्वाइस नहीं है इसीलिए जो मिल गया वही खा लिया। एग्जाम के दौरान दो घंटे सिर खपाने के बाद अच्छा खाना खाने बहुत मन था। लेकिन खाना तो दूर पीने के लिए साफ ठंडा पानी तक अवेलेबल नहीं है। शुक्र है  कि धूप नहीं निकली वर्ना न जाने क्या हाल होता। यही बातें एग्जाम देकर निकले लगभग हर कैंडिडेट्स की जुबान पर थे। सब परेशान थे। किसी ने चने खाकर भूख मिटाई तो किसी ने समोसा या बाटी चोखा। प्यास बुझाने के लिए लोगों ने गन्ने का जूस, आम का पना और बेल का शर्बत पीना बेहतर समझा। लेकिन यह भी अनहाईजीनिक ही था। साफ-सफाई का कोई इंतजाम नहीं था।

Shopkeepers encashed the situation

मौके का फायदा उठाना भला किसे नहीं आता। फिर ऐसे मौके बार-बार आते भी नहीं जब एक ही दिन तीन-तीन शिफ्ट में एग्जाम हो। संडे को नॉर्मली मार्केट में भीड़भाड़ काफी कम रहती है। क्योंकि ऑफिस, स्कूल और कॉलेज बंद रहते हैं। लेकिन एग्जाम की वजह से यह संडे शॉपकीपर्स, रिक्शा पुलर्स और रोड साइड वेंडर्स के लिए काफी अच्छा रहा। इन्होंने इसका फायदा भी खूब उठाया। नार्मली तीन रुपए में बिकने वाला समोसा संडे को पांच रुपए में बेचा। कचौड़ी की 20 रुपए वाली प्लेट 30 रुपए में और गन्ने के जूस का 10 वाला गिलास 15 रुपए में बेचा। कैंडिडेट्स की मजबूरी का फायदा उठाने में कोई पीछे नहीं रहा। कैंडिडेट्स भी जैसे इस सबके के लिए तैयार होकर ही आए थे। कुछ कैंडिडेट्स ने इसका विरोध भी किया लेकिन उनकी एक न चली।

टेम्पो, रिक्शा वालों ने भी मुंहमांगा किराया वसूला

मिसेज सिन्हा को कटरा से रेलवे स्टेशन जाना था। हमेशा की तरह वह रिक्शे पर बैठ गई, यह मानकर कि 25 रुपए ही किराया पड़ेगा। लेकिन वह हैरान रह गईं जब रिक्शेवाले ने उनसे कहा कि मैडम 50 रुपए किराया पड़ेगा। कारण पूछने पर रिक्शा पुलर ने कहा हमें बिना मोलभाव किए 50 रुपए मिल रहे हैं तो भला क्यों आधे किराए में सवारी बैठाऊं। उसे तुरंत दूसरी सवारी मिल गई और वह भी मुंहमांगे किराए पर। क्योंकि इस स्टूडेंट को ट्रेन पकडऩी है और वह जानता है कि मोलभाव करने का आज कोई फायदा नहीं है। टेम्पो वाले भी कहां पीछे रहते। म्योहाल चौराहे से रेलवे स्टेशन तक 10 रुपए किराया है। लेकिन बीएचस में एग्जामिनेशन सेंटर होने के कारण यहां सैकड़ों स्टूडेंट्स टेम्पो के लिए इंतजार करते देखे गए। उनकी इसी मजबूरी का फायदा उठाकर टेम्पो चालकों ने उनसे 20-25 रुपए तक किराया वसूल किया।

अलग-अलग shift का फायदा मिला

शुक्र रहा कि एग्जाम की शिफ्ट अलग-अलग थी। सुबह सात से 10.30 बजे तक यूपीएसईई का एग्जाम था। ये कैंडिडेट्स एग्जाम देकर सेंटर से बाहर निकलते उससे पहले ही एसएससी के स्टूडेंट्स सेंटर्स में पहुंच गए। यानि 10.30 बजे सड़क पर सिर्फ यूपीएसईई कैंडिडेट्स की भीड़ रही। 12 बजे एसएससी का एग्जाम छूटने से पहले यूपीएसईई कैंडिडेट्स बस अड्डे और रेलवे स्टेशन पहुंच चुके थे। ठीक इसी तरह एसएससी की दो बजे से चार बजे की शिफ्ट के स्टूडेंट्स के निकलने से पहले पहली शिफ्ट के स्टूडेंट्स अपने डेस्टिनेशन के लिए निकल चुके थे। लेकिन दोपहर 12 बजे से दो बजे तक रोड पर ज्यादा भीड़ दिखी क्योंकि इस दौरान एसएससी के पहली और दूसरी दोनों शिफ्ट के कैंडिडेट्स बाहर ही थे। अगर एग्जाम की शिफ्ट को इस तरह से मैनेज न किया गया होता तो हालात और कठिन होते।

English easy थी, mathsने रुलाया

सुबह 10 बजे से 12 बजे की शिफ्ट में एसएससी की एग्जाम देकर निकले स्टूडेंट्स ने बताया कि इंग्लिश के क्वेश्चन ठीक-ठाक थे। ये एसएससी सीजीएल लेवल के हिसाब से स्टैंडर्ड थे लेकिन मैथ्स का पेपर टफ था। स्टूडेंट्स का कहना था कि कॉम्पिटीटिव एग्जाम में इतने डिफिकल्ट क्वेश्चन आना कोई बड़ा इश्यू नहीं है। रिजनिंग और जीएस के क्वेश्चंस बैलेंस्ड थे। वहीं एसएससी सीजीएल की सेकंड शिफ्ट में एग्जाम देकर निकले स्टूडेंट्स ने बताया कि रिजनिंग के क्वेश्चंस में कोई प्रॉब्लम नहीं हुई। लेकिन मैथ्स ने खूब परेशान किया। वहीं यूपीएसईई का एग्जाम देकर निकले स्टूडेंट्स ने बताया कि पेपर अच्छा था। पेपर अपने स्टैंडर्ड के एकॉर्डिंग था.