Lucknow: रियल सिनेमा के दो जाने-माने दिग्गज और उनके साथ एक बिन्दास अदाकारा जिसे पैर में दर्द हुआ तो उसने अपनी हाई हील सैण्डल हाथ में ले ली और पैर में निकले छाले के दर्द को भूलकर अपनी फिल्म की बात की। वहीं फिल्म के डायरेक्टर ने कान के दर्द को पेन किलर खाकर भुला दिया। यह हैं एक्टे्रस ऋचा चड्ढा और अनुराग कश्यप, जिनके साथ मौजूद थे अपने जाने-माने अंदाज में मनोज बाजपेई। तीनों ने ही अपने दिल की बात को कुछ इस तरह से बयां की
देव डी, ब्लैक फ्राइडे, शैतान जैसी ऑफ बीट फिल्मों के डायरेक्टर अनुराग कश्यप कहते हैं कि मैं इस बात को नहीं मानता कि फिल्म वही है जो परिवार के साथ बैठ कर देखी जाए। अरे जो चाहे देखे जो चाहे न देखे। सच तो यह है कि यहां की ऑडीयंस को हल्की फुल्की फिल्में देखने की आदत हो गई है। रियल सिनेमा को डार्क फिल्मों का नाम दे दिया जाता है.
रियल सिनेमा से सोसाइटी पर गलत असर नहीं पड़ता बल्कि जब किसी फिल्म में एक हीरो दस लोगों को मारता है उसे बच्चे देखकर वैसा करने की सोचते हैं। वायलेंस को लेकर मेरी थ्योरी कुछ अलग है। रियल सिनेमा में वायलेंस नहीं होता वहां तो सच्चाई होती है। वायलेंस तो उन फिल्मों में होता है जिसमें एक हीरो उछल-उछल कर लोगों को मारता है.
दुर्भाग्य की बात यह है कि हम पूरी सच्चाई के साथ फिल्में बना भी नहीं सकते। उन्हें मॉडीफाइड करना पड़ता है। कहानियों का फिल्मी करण करना पड़ता है वरना लोगों को जवाब देना पड़ेगा जबकि हॉलीवुड में उन्हें सच्ची घटनाओं पर काम करने की पूरी आजादी है।
बहुत बदल गई है इंडस्ट्री
तीन दशकों से इंडस्ट्री में अपने हर किरदार को बखूबी जीने वाले मनोज बाजपेई कहते हैं कि मैं तो आज आने वाले कलाकारों को बहुत लकी मानता हूं कि उनके लिए यहां अवसरों की कोई कमी ही नहीं है। इंडस्ट्री पूरी तरह से बदल चुकी है और यहां अच्छे बदलाव हुए हैं। अब ऐसे फिल्म मेकर काम कर रहे हें जो स्टारडम से अलग जाकर पहचान बना रहे हैं.
या यूं कह सकते हैं एक पैरेलल इंडस्ट्री सी बन गई है जहां ऑफबीट रियल सिनेमा पर जबरदस्त काम हो रहा है। ऑडीशन के रास्ते खुले हैं उसके जरिये टैलेंटेड लोगों को काम करने का मौका मिल रहा है। वरना दौर कोई भी हो टैलेंट की कमी नहीं थी, पर किसी को मौका ही नहीं मिला और कई तो कब आए और कहां गये पता ही नहीं चला।
मजेदार रहा एक्सपीरियंस
ओए लकी लकी से बॉलीवुड में इंट्री करने वाली ऋचा चड्ढा जो अपनी सैण्डल से परेशान थीं और  चेंज करने में ही भलाई समझी अपनी दिलकश मुस्कान के साथ सवालों के जवाब दे रही थीं। ऋचा ने बताया कि उनकी अनुराग से पहली मुलाकात गोवा फिल्म फेस्टिवल में हुई थी जहां उन्होंने ऋचा के काम की तारीफ की थी.
देव डी के लिए भी मैंने ऑडीशन दिया और शॉर्ट लिस्ट भी हुई, लेकिन किसी वजह से फिल्म में काम करने का मौका नहीं मिला। इस बार अनुराग की फिल्म में एक अहम किरदार निभा कर मैं काफी खुश हूं। मनोज बाजपेई के साथ काम करना काफी मजेदार और सीखने वाला समय रहा।
काश कल्कि हम जैसी होती
एक इंटरव्यू में कल्कि ने कहा कि मैं अनुराग की नई फिल्म में इसलिए नहीं हूं क्योंकि मैं गांव की नहीं लगती। देव डी, शैतान फिल्में कल्कि के साथ बनाने वाले अनुराग कश्यप कहते हैं कि कल्कि हम जैसी नहीं है। वो कहीं से बिहारी लगती ही नहीं तो वो फिल्म में कैसे होगी और इस फिल्म में ही नहीं वो मेरी अगली फिल्म में भी नहीं है। उसका लुक हमसे अलग है। जिन फिल्मों में मैंने उसको लिया वो बिल्कुल फिट किरदार थे उसके लिए, लेकिन वो मेरी हर फिल्म में हो यह जरुरी तो नहीं है।