BAREILLY : 'मृत्यु गर विश्राम है तो दोबारा मैं आऊंगी' ये पंक्तियां लिखने वाली साहित्य भूषण से सम्मानित साहित्यकार डॉ। महाश्वेता चतुर्वेदी का मंगलवार को निधन हो गया।

दो फरवरी से था स्वास्थ्य खराब

श्यामगंज स्थित आंचल कॉलोनी में रहने वाली साहित्यकार डॉ। महाश्वेता चतुर्वेदी का स्वास्थ्य दो फरवरी से खराब चल रहा था। फेफड़ों में तकलीफ पर उन्हें एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया, फिर हार्ट की प्रॉब्लम होने पर उन्हें डीडीपुरम स्थित एक निजी अस्पताल ले जाया गया। इलाज से लाभ नहीं होने पर चौकी चौराहा स्थित अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। उनका अंतिम संस्कार दोपहर सिटी श्मशान भूमि पर हुआ।

कई साहित्यकार अंतिम दर्शन को पहुंचे

परिवार में वह अपने पीछे पति यूके चतुर्वेदी, दो पुत्र दिव्यकांत चतुर्वेदी, डॉ। अक्षयकांत चतुर्वेदी, पुत्री डॉ। स्मृति शर्मा, पुत्रवधु डॉ। तनुजा चतुर्वेदी, डॉ। दीपाली चतुर्वेदी को छोड़ गई हैं। शहर के साहित्यकारों ने उनके निवास पर पहुंचकर अंतिम दर्शन कर उन्हें श्रद्धांजलि दी। डॉ। श्वेतकेतु शर्मा, महेश मधुकर, महेश चंद्र शर्मा, हरिशंकर सक्सेना, डॉ। ममता गोयल, अफरोज, डॉ। राजेश श्रीवास्तव, रोहित राकेश, डॉ। इंद्रदेव त्रिवेदी, डॉ। मुरारीलाल सारस्वत, कमल सक्सेना, राजेश गौड़, सुरेंद्र बीनू सिन्हा अादि रहे।

100-100 मंत्रों का किया अनुवाद

डॉ। महाश्वेता चतुर्वेदी का सबसे अविस्मरणीय कार्य चारों वेदों के 100-100 मंत्रों का वेदायन के लिए अनुवाद करना रहा। यजुर्वेद के 40 अध्याय का हिंदी में काव्यानुवाद भी किया। वर्तमान में द्विभाषीय पत्रिका मंदाकिनी की संपादिका थी। यह पत्रिका भी उन्होंने ही शुरू की थीए जिसका रजत जयंती विशेषांक भी पिछले दिनों प्रकाशित हुआ।

73 से ज्यादा किताबें लिखीं

साहित्य भूषण सम्मान के अलावा उन्हें देश.विदेश में लगभग 111 पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है। उन्होंने अपने जीवन काल में लगभग 73 से अधिक पुस्तकें लिखीं, जिसमें महाकाव्यए खंडकाव्यए कविताए निबंध संग्रह आदि शामिल रहे। इसके अतिरिक्त अंग्रेजी कविताओं के दस संग्रह, दो संस्कृत की कृति भी शामिल रही। वह आरपी डिग्री कॉलेज, मीरगंज में हिंदी की विभागाध्यक्ष और विशाल कन्या डिग्री कॉलेज में प्राचार्या भी रही। वर्तमान में इंदिरा गांधी ओपन यूनिवर्सिटी की को-आर्डिनेटर के पद पर थी।