सपने ने मचाई खलबली

शोभन सरकार के एक सपने ने पूरे देश में खलबली मचा दी है। दावे और हकीकत चाहे जो भी हों लेकिन उन्नाव के डौंडिया खेड़ा गांव में चल रही एएसआई की खुदाई ने नींद में आने वाले सपनों को बहस का मुद्दा बना दिया है। इस प्रकरण के बाद सपनों की मार्केट वैल्यू बढ़ गई है। कोई अपनी गर्लफ्रेंड के साथ डेट पर जाना चाहता है तो कोई इन सपनों में गड़े हुए खजाने का पता लगाना चाहता है। आपको पता है कि सपने क्यों आते हैं? इनका हमारे रुटीन लाइफ से क्या रिलेशन है? ये हकीकत के कितने करीब होते हैं? जानते हैं एक्सपट्र्स से।

देखा, सोचा, सुना, बस आ गया सपना

सपने एक्चुअल में हमारी रुटीन लाइफ का आइना होते हैं। दिनभर में हमारे आसपास जो घटनाए घटती हैं, जो हम सोचते, देखते और सुनते हैं। और तो और, जो इच्छाएं अधूरी रह जाती हैं, बस यही सपने के रूप में हमारे सामने आ जाती हैं। कभी-कभी हम जिस मैटर को लेकर सबसे ज्यादा टेंशन लेते हैं वह भी हमें सपने में दिखने लगता है। सायकियाटिस्ट के पास ऐसे कई मामले पहुंचते हैं जिनमें मरीज नींद में भयानक सपने बार-बार आने की शिकायत करते हैं। केस स्टडी में पता चलता है कि उन्होंने किसी एक्सीडेंट या त्रासदी को इतने करीब से देखा है कि उससे जुड़े सीन सपने में दिखने लगे।

Activity समझ में नहीं आती

ब्रेन के दो पार्ट होते हैं। एक कांशस और दूसरा अनकांशस माइंड। दूसरा पार्ट आज भी मेडिकल साइंस के लिए अनसुलझे रहस्य की तरह है। अनकांशस माइंड की एक्टिविटी समझ में नहीं आती लेकिन यह लगातार वर्क करता रहता है। असलियत में सपने इसी पार्ट की देन होते हैं। पता नहीं आपकी रुटीन लाइफ की कौन सी घटना आपके अनकांशस माइंड में अंकित हो जाए और वह सपना बनकर सामने आ जाए। डॉक्टर्स कहते हैं कि जनरेशन टु जनरेशन यह पार्ट ट्रेवल और डेवलप करता है और यही रीजन है कि हमें कुछ चीजों का एक्सपीरियंस होने का आभास अपने आप होने लगता है।

कौन से सपने हमें याद रहते हैं

हम अपनी नींद दो पार्ट में पूरी करते हैं। फस्र्ट हॉफ में जो सपने आते हैं वह हम अक्सर भूल जाते हैं। जबकि सेकंड हॉफ के सपने हमें याद रहते हैं। इन्हें सो कॉल्ड सुबह का सपना कहा जाता है। सोसायटी में यह भी मिथ है कि सुबह का सपना सच हो जाता है, जबकि ऐसा कुछ नहीं होता है। मेडिकल साइंस इस मिथ को सिरे से नकारती है। कई बार तो लेट नाइट देखी गई मूवी या सीरियल्स के सीन भी हमें सपने में दिखाई पडऩे लगते हैं।

Hormonal imbalance भी है reason  

हमारी स्लीपिंग साइकिल को रेगुलेट करने वाला हार्मोन 'मेलेटोनेनÓ भी सपने दिखने का रीजन बन सकता है। अक्सर यह हार्मोन शाम के समय बॉडी में बनता है और जब इसकी मात्रा घटती या बढ़ती है तो स्लीपिंग डिसऑर्डर की प्रॉब्लम क्रिएट होने लगती है। अधिक या कम नींद आने की वजह से भी लोगों को सपने दिखने लगते हैं। पोस्ट मैट्रिक स्ट्रेस डिसआर्डर भी ऐसी बीमारी है जिसमें मरीज बुरे और भयानक सपने आने की कम्प्लेन करता है। लाइफ में घटने वाले किसी बुरे हादसे या भयानक घटना को बार-बार याद करने से यह बीमारी पैदा होती है। इसके मरीज कभी-कभी काफी सीरियस भी हो जाते हैं।

हकीकत के कितने करीब होते हैं सपने

हालांकि सपनों के हकीकत से कनेक्शन को लेकर अभी भी वल्र्ड में रिसर्च जारी है। मेडिकल साइंस आज भी सपनों को पूरी तरह से इग्नोर नहीं करती है। एग्जाम्पल के तौर पर महान साइंटिस्ट आइंस्टीन और रामानुजम के इन्वेंशन के पीछे सपनों का अहम रोल माना जाता है। इन साइंटिस्ट्स ने खुद स्वीकार किया उनके सपने उनकी रिसर्च के काफी करीब होते थे। इतना ही नहीं बेंजीन एलीमेंट का स्ट्रक्चर भी साइंटिस्ट ने सपना देखकर ही तैयार किया था। बावजूद इसके मेडिकल साइंस कहती है कि सपने तो सपने होते हैं।

परेशान हैं मरीज

लोगों की बदलती लाइफ स्टाइल भी अच्छे-बुरे सपनों का रीजन बन जाती हैं। डॉक्टर्स बताते हैं कि ओपीडी में ऐसे बहुत से मरीज पहुंचते हैं जिनको नींद में सपने देखने और स्लीप वॉकिंग की हैबिट पड़ चुकी है। लाख कोशिश करने के बाद भी उन्हें इस बीमारी से छुटकारा नहीं मिल रहा है। कुछ लोग सपने देखकर चिल्लाते, चीखते या बकबक करते हैं। ऐसे मरीजों को टाइमली और प्रॉपर नींद लेने की सलाह दी जाती है। इतना ही नहीं बेड पर जाने के बाद टेंशन ना लेने की हिदायत भी दी जाती है। इसके अलावा कई ऐसी दवाएं भी हैं जिनको खाने के बाद घबराहट और सपने देखने की शिकायत मिलती है।

नींद में सपने देखना एक नॉर्मल सिचुएशन है। बट, जब इनसे आपकी लाइफ डिस्टर्ब होने लगे तो होशियार हो जाना चाहिए। कई बार पेशेंट की क्वेरीज होती है कि भयानक सपना देखने से उनकी नींद खुल जाती है। ऐसे में मेरी सलाह है कि सपनों को सपने की नजर से ही देखें। उन्हें सीरियसली न लें।

डॉ। क्षितिज श्रीवास्तव,

सायकियाटिस्ट

गवर्नमेंट केवल एक सपने के बेस पर अगर किले की खुदाई कर रही है तो यह अजीब है। साइंटिस्ट्स चाहें तो जमीन में गड़े सोने की ट्रैकिंग मशीनों के जरिए कर सकते हैं। इसके लिए उन्हें इतना प्रोपेगंडा करने की जरूरत नहीं है। वैसे इस घटना के बाद लोगों की सपने से जुड़ी क्वेरीज बढ़ गई हैं।

डॉ। सौरभ टंडन, सायकियाट्रिस्ट

Reported by vineet tiwari