RANCHI : बिहार में शराबबंदी का साइड इफेक्ट रांची की विश्वप्रसिद्ध मानसिक आरोग्यशालाओं में दिख रहा है। रिनपास और सीआईपी में पिछले दो महीनों में बिहार से आनेवाले मानसिक रोगियों की तादाद 50 फीसदी से भी ज्यादा बढ़ गई है। इन दोनों हॉस्पिटल्स में बिहार के विभिन्न इलाकों से औसतन 50-60 मरीज प्रतिदिन पहुंच रहे हैं। साइकियाट्रिस्ट्स की मानें तो इनमें से ज्यादातर मनोरोगी ऐसे हैं जिन्होंने शराब न मिलने पर नशे के लिए दूसरे तरीके अपनाए।

काउंसेलिंग में हुआ खुलासा

रिनपास और सीआईपी में इलाज के पहले प्रत्येक मरीज की काउंसेलिंग की जाती है और उनके जीवन की हिस्ट्रीशीट तैयार की जाती है। बिहार से आनेवाले मरीजों की काउंसेलिंग के दौरान यह तथ्य सामने आ रहा है कि इनमें से ज्यादातर ऐसे हैं, जो शराब के आदी थी और शराब न मिलने पर व्हाइटनर, कफ सीरप, क्विक फिक्स, डेंड्राइट, सनफिक्स, बोनाफिक्स और डेटोफिक्स के अलावा भारी मात्रा में भांग-गांजा और चरस का सेवन कर लिया। रोज पीने वालों के लिए नशे के इन विकल्पों का इस्तेमाल बेहद खतरनाक साबित हो रहा है। इससे उनका मानसिक संतुलन बिगड़ रहा है।

दो महीने में 2900 मरीज

आंकड़ों के अनुसार रिनपास में हर दिन लगभग 25 और सीआईपी में 35-40 मरीज बिहार से इलाज के लिए आ रहे हैं। इस तरह महज दो महीने में ही रिनपास में 1200 और सीआईपी में 1700 मनोरोगी इलाज के लिए आ चुके हैं।

नशे के ये तरीके बना रहे मेंटल

1- ड्रेंडाइट और व्हाइटनर

डेंड्राइट और व्हाइटर का ज्यादा सेवन सीधे दिमाग पर अटैक करता है। दिमाग की नसें सूखने लगती है। सोचने की कैपासिटी कम हो जाती है। ऊटपटांग हरकतें शुरू हो जाती है। कई बार लोग सेंसलेस हो जाते हैं।

2- इंजेक्शन व कफ सीरप

इंजेक्शन और कैडिन युक्त कफ सिरप के लगातार इस्तेमाल से कन्फ्यूजन होना, याददाश्त का कमजोर होना, लिवर डैमेज, पेट व सीने में दर्द जैसी समस्या पैदा होती है।

3 - गांजा, भांग व चरस

गांजा, भांग व चरस अधिक मात्रा लेने से सांस लेने में दिक्कत आती है। मानसिक संतुलन बिगड़ने लगता है। अगर यह नहीं मिले तो निराशा उत्पन्न होने लगती है औ स्वप्नशील जीवन व्यतीत करने की आदत पड़ जाती है।

4 फेविकोल, सुलेशन और आयोडेक्स

फेविकोल, सुलेशन, लिक्विड इरेजर और आयोडेक्सखए सूंघने की लत होने पर निराशा व एनिमिया का खतरा बढ़ जाता है। इसके प्रयोग से पौरूष क्षमता भी कम हो जाती है।