इंटरनेट बन रहा बीमारियों की वजह
एमजीएम के फिजिशियन डॉ निर्मल कुमार ने बताया कि हर आदमी में एज के आर्कडिंग बाडी क्लॉक होता है और बाडी के सिस्टम को मेंटेन रखने और ब्रेन को टेंशन से बचाने के लिए एक फिक्स आवर की नींद लेना जरूरी है। पर स्लीपिंग डिसआर्डर अब कॉमन प्रॉब्लम बनता जा रहा है।
उन्होंने बताया कि डेली उनके पाास स्लीपिंग डिसऑर्डर के ढेरों केसेज सामने आ रहे हैं। इसकी वजह से सीवर पेन, हेडेक, टायर्डनेस, भूख न लगाना, लेजीनेस  नॉर्मल प्रॉब्लमस हैं, जिनसे आगे चलकर लो बीपी, हाईपरटेंशन, डायबिटीज सहित कई तरह की बीमारियों के होने का खतरा बना रहता है।

बच्चे भी कुछ कम नहीं
इंटरनेट बूम के इस जमाने में लेट नाइट तक बच्चे भी इंटरनेट से चिपके रहते हैं। ऐसे में उनकी स्टडी प्रभावित हो ही रही है। साथ ही कम सोने की वजह से उन्हें नींद न आने समेत कई तरह की बीमारियां हो रही हैं। टेल्को के रहने वाली आकांक्षा ने बताया कि उनका बेटा बेटा चोरी-छुपे लेट नाइट तक इंटरनेट सर्फिंग करता था। इसका पता चलने पर उन्होंने अपने बच्चे को समझाया और देर रात नहीं जागने की सलाह दी। लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। नींद नहीं आने की वजह से वह काफी चिड़चिड़ा और एन्सोमिनिया से पीडि़त हो गया था। बाद में डॉक्टर्स के ट्रीटमेंट के बाद वह ठीक हुआ।

Insomnia का बढ़ रहा खतरा
डॉक्टर्स बताते हैं कि इंटरनेट के ज्यादा यूज से लोग इसके एडिक्ट होते जा रहे हैं। मेंटल इलनेस और डिपरेशन, स्लीपिंग डिसआर्डर के शुरुआती लक्षण हैं और ये बढक़र उन्हें इन्सोमिनिया की ओर लेकर जा रहा है। एन्सोमिनिया की वजह से लोग काफी चिड़चिडे हो जाते हैं और उनकी लर्निंग कैपेसिटी काफी कम हो जाती है। इतना ही नहीं मैमोरी लॉस होने तक का खतरा रहता है। डेली स्लीपिंग डिसऑर्डर के केसेज बढ़ते जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि करीब 30 से 40 परसेंट यूथ इस स्लीपिंग डिसआर्डर के शिकार हैं।

स्लीपिंग पील्स का ओवरडोज पड़ा भारी
स्लीपिंग डिसआर्डर से परेशान यूथ अब स्लीपिंग पील्स पर डिपेंडेंट होते जा रहे हैं, लेकिन ये स्लीपिंग पील्स हेल्थ पर कई बुरे असर डाल रही हैं। साइकियाट्रिस्ट डॉ दीपक गिरि ने बताया कि स्लीपिंग पील्स थोड़े टाइम के लिए तो ठीक हैं, लेकिन इन्हें लंबे टाइम तक यूज करना काफी डेंजरस हो सकता है। स्लीपिंग पील्स से एम्निशिया (यादाश्त कम होने की बीमारी), लीवर फंक्शन में प्रॉब्लम जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं। वहीं डॉ निर्मल कुमार बताते हैं कि कई बार पेशेंट्स बिना प्रिसक्रिप्शन के स्लीपिंग पील्स परचेस कर लेते हैं। इससे ड्रग रिएक्शन, इंटरजेक्शन, ब्लड कनर्वशन और फीट जैसी बीमारियां हो सकती हैं।

'लेट नाइट चैटिंग और सर्फिंग की वजह से नींद पूरी नहीं हो पाती है। इस वजह से एग्जाम के वक्त काफी प्रॉब्लम होती है.'
-अभिषेक गुप्ता, कदमा

'स्लीपिंग डिसआर्डर की प्रॉब्लम तेजी से बढ़ रही है। 30 से 40 परसेंट यूथ इसका शिकार हो रहे हैं.'
 -डॉ दीपक गिरि, साइकियाट्रिस्ट, एमजीएम

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