- साहबगंज मंडी समेत अन्य एरियाज में फैला है मिलावटी अगरबत्ती का कारोबार

- डेली 90 लाख का कारोबार लेकिन नहीं होती कोई कार्रवाई

GORAKHPUR: त्योहारों की खुशियों में मिलावटखोरी का जहर घोलने वाले शातिरों ने अगरबत्ती तक को नहीं छोड़ा है। नवरात्रि शुरू होत ही नकली कपूर के साथ ही शहर में मिलावटी अगरबत्ती का धंधा भी जोरों से फल-फूल रहा है। जिसमें सस्ते इत्र डाल सुगंधित बना बाकायदा ब्रांडेड जैसी पैकिंग में खुलेआम मार्केट में बेचा जा रहा है। यह अगरबत्ती सेहत के लिए बहुत नुकसानदायक साबित हो सकती है। आलम ये कि साहबगंज मंडी, सूरजकुंड एरिया समेत कई इलाकों में मिलावटी अगरबत्ती बनाने का काम किसी फैक्ट्री में नहीं बल्कि घरों में चल रहा है। वहीं, हैरानी है कि इन मिलावटखोरों के ठिकानों पर जिला प्रशासन की तरफ से कार्रवाई होना तो दूर आज तक चेकिंग तक नहीं हुई है।

घर-घर पनप रहा धंधा

शारदीय नवरात्रि शुरू होते ही अगरबत्ती की खपत भी बढ़ गई है। इस बढ़ी डिमांड को मिलावटखोरों ने कम लागत में मोटी कमाई का जरिया बना लिया है। ऐसे लोगों ने शहर के कई एरियाज में कम पूंजी में अच्छा व्यापार माने जाने वाले इस उद्योग को अपने घर में ही लगाना शुरू कर दिया है। 35-40 हजार रुपए की लागत से लगाए जाने वाले इस उद्योग से कारोबारी लाखों का कारोबार शुरू कर चुके हैं। सबसे ज्यादा इसके कारोबारी साहबगंज मंडी, सूरजकुंड, राजेंद्र नगर समेत शहर के अन्य एरिया में पनप रहे हैं।

थर्ड ग्रेड इत्र, खुशबू महंगे वाली

दैनिक जागरण आई नेक्स्ट रिपोर्टर साहबगंज मंडी में अगरबत्ती बनाने वाले एक व्यापारी के पास पहुंचा तो उसने बताया कि अगरबत्ती बनाने के लिए सबसे पहले तो लकड़ी का कोयला पाउडर, मैदा लकड़ी पाउडर, लकड़ी का बुरादा, बांस की सींक, हीना पाउडर या कोयला पाउडर (रोलिंग के लिए) व रोलिंग पेपर का होना बेहद जरूरी है। इसके बाद इसमें सेंट मिलाया जाता है। जिसमें डीईपी ऑयल, सेंट, फैंसी बकेट सेंट, प्लेन अगरबत्ती सूखी व जिलेटिन पेपर (पैकिंग के लिए) इस्तेमाल किया जाता है। इतनी सामग्री लेकर अगरबत्ती बनाने के लिए मसाला (मिश्रण पाउडर) लेकर ठंडे पानी से रोटी के आटे की तरह गूंथा जाता है। गूंथने के बाद गोला मसाला को उसी बर्तन में डीईपी ऑयल, सेंट और फेंसी बकेट सेंट को 20-25 बार मिलाकर डिब्बे में भरकर रखा जाता है। मसाला तैयार होने के बाद अगरबत्ती बनाने के लिए पटरे के बीच में थोड़ा रोलिंग पाउडर रख देते हैं। इसमें सेंट की क्वालिटी पर अगरबत्ती की क्वालिटी डिपेंड करती है। इसी में ये लोग खेल करते हैं। अपने यहां बनने वाली अगरबत्ती में ये लोग बेहद सस्ती क्वालिटी का इत्र इस्तेमाल करते हैं जिसके चलते लागत तो कम पड़ी है लेकिन अगरबत्ती की सुगंध कई गुना बढ़ जाती है। जलने के बाद इसका धुआं भी सेहत के लिए खराब होता है।

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इसका धुआं बिगाड़ देगा सेहत

डीडीयूजीयू केमेस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रो। उमेश नाथ त्रिपाठी बताते हैं कि सामान्य परफ्यूम के मुकाबले इत्र में सुगंध ज्यादा होती है। लेकिन ज्यादा सुगंधित वाले इत्र दिमाग को काफी चोट पहुंचाते हैं। मीठी सुगंध से दिमाग पर किसी प्रकार का कोई असर नहीं होता है। अगरबत्ती को सुगंधित बनाने में सस्ते इत्र का इस्तेमाल सेहत के लिए हानिकारक होता है। इससे लोगों को सिरदर्द, हाई ब्लड प्रेशर आदि समस्याएं घेर सकती हैं।

फैक्ट फिगर

शहर में अगरबत्ती की थोक दुकानें - 123

फुटकर व्यापारी - 4,000

यहां सप्लाई होती है अगरबत्ती

गोरखपुर समेत देवरिया, कुशीनगर, महाराजगंज, सिद्धार्थनगर, संतकबीर नगर व बिहार

शहर में इन एरियाज में होता है अगरबत्ती का कारोबार

साहबगंज, इस्माइलपुर, राजेंद्रनगर, दीवान बाजार, छोटेकाजीपुर, बड़े काजीपुर, पादरी बाजार, पीपीगंज, मानीराम

वर्जन

मिलावटखोरों के खिलाफ अभियान चलाकर कार्रवाई की जाती है। अवैध कारोबारियों को अलग से चिन्हित कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।

- अजीत सिंह, सिटी मजिस्ट्रेट