- पिछले दिनों आ चुका है भूकम्प का खतरा

- हाईराइज बिल्डिंग्स में नहीं हो रहा मानकों का पालन

- डिजास्टर से निपटने के लिए नहीं है कोई तैयारी

- एक्यूप्मेंट्स की है भारी कमी

ritesh.dwivedi@inext.co.in

LUCKNOW: तबाही भरे उस खौफनाक मंजर की यादें अब भी जेहन में घूमती हैं। ख्म् जनवरी ख्00क् को भुज में भूकम्प आया तो उसकी तबाही का कंपन वहां से क्7भ् किलोमीटर दूर अहमदाबाद ने भी महसूस किया। रिएक्टर स्केल पर तीव्रता थी 7.7. भारी जान-माल का नुकसान हुआ। आप सोच रहे होंगे कि भला अहमदाबाद का यहां जिक्र क्यों हो रहा है। दरअसल अहमदाबाद भी लखनऊ की तरह सेस्मिक जोन फ् में ही शामिल था। जानकारों का मानना है कि बर्बादी की सबसे बड़ी वजह बनी थी वहां की हाईराइज बिल्डिंग। पिछले बुधवार को लखनऊ ने भी भूकम्प के झटकों को महसूस किया। लखनऊ में भी यह खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है। धड़ल्ले से मॉल कच्लर बढ़ता जा रहा है। धरती की छाती खोखली करके बेसमेन्ट तैयार किए जा रहे हैं। पार्किंग स्पेस का भी ख्याल नहीं रखा जा रहा है। डेवलपमेन्ट की अंधाधुंध दौड़ में भूकम्परोधी तकनीकी का भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।

केवल क्0 प्रतिशत बढ़ती है कॉस्ट

टाउन प्लानर जेएन रेड्डी ने बताया कि घर के बाथरूम में फिटिंग करवाते वक्त भी दिमाग में यह रहता है कि महंगी से महंगी फिटिंग ही लगनी चाहिए। बिल्डिंग मैटीरियल भी हाई क्वालिटी को होना चाहिए, लेकिन क्या आपने कभी यह सोचा है कि जिस आशियाने में आप जिंदगी गुजार रहे हैं वह भूकम्परोधी है या नहीं? उस मल्टीस्टोरी अपार्टमेन्ट या मकान में भूकम्परोधी तकनीकि का इस्तेमाल किया गया है या नहीं? शायद इसका जवाब होगा, नहीं। दरअसल फ्लैट बनवाते वक्त कंस्ट्रक्शनल डिजाइन से ज्यादा आर्किटेक्चर पर ध्यान ज्यादा दिया जाता है। जबकि हकीकत यह है कि भूकम्परोधी टेक्नीक का इस्तेमाल करने के बाद भी कॉस्ट में केवल क्0 प्रतिशत का इजाफा ही होता है। शहर में करीब ब्भ्00 से ज्यादा हाईराइज अपार्टमेंट हैं। लेकिन इनमें से शायद ही किसी में भूकम्परोधी तकनीकी का इस्तेमाल किया गया हो।

बढ़ेगी धरती के नीचे उथल-पुथल

प्रो.उपाध्याय कहते हैं कि ऑस्ट्रेलियन प्लेट्स का मूवमेन्ट यूरेशियन प्लेट्स की ओर बढ़ रहा है। इससे धरती के नीचे उथल-पुथल तेज हो रही है और आगे आने वाले समय में भूकम्प की घटनाएं बढ़ने की आशंका है। फैजाबाद फाल्ट लाइन की वजह से लखनऊ में बड़ा खतरा है। इससे बचाव का सिर्फ यही तरीका है कि बिल्डिंग या मकान बनाते समय प्लेन्थ लेवल और लिंटल लेवल पर आरसीसी बैंड बनाए जाएं।

मल्टीस्टोरी के नीचे खुली पार्किंग ठीक नहीं

मल्टीस्टोरी अपार्टमेन्ट में पार्किंग स्पेस नीचे छोड़ा जाता है और इस पर ही फ्लैट बना लिए जाते हैं यह भूकम्प की दृष्टि से बेहद खतरनाक है। अहमदाबाद में भूकम्प के दौरान कई ऐसी बिल्डिंग धराशाई हो गई थीं।

गिरता वाटर लेवल भी एक कारण

भूकम्प के पीछे गिरता भू-जल स्तर बहुत बड़े कारण के रूप में देखा जा रहा है। शहर में प्रतिवर्ष एक से डेढ़ मीटर पानी का लेवल गिरता जा रहा है। यह समस्या तब और गंभीर हो जाती है जब शहर में लगातार बहुमंजिली इमारतों का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा हो। लखनऊ सेस्मिक जोन तीन में आता है। ऐसे में बहुत आवश्यक हो जाता है कि भविष्य की सम्भावनाओं को ध्यान में रखते हुए निर्माण कार्य किया जाए। हाईराइज बिल्डिंगों में यहां शीशे ही शीशे लगे हैं। शीशा भूकम्प का झटका सह पाएगा, इसे लेकर पहले ही जानकार आगाह कर चुके हैं। इसीलिए हाईराइ¨जग बिल्डिगों के लिए खास किस्म (भूकम्परोधी या झटके में कम टूटने वाला) शीशा प्रयोग करने की सलाह दे चुके हैं। अगर यहां भूकम्प के तेज झटके लगे तो तबाही मचना तय है। वजह साफ है कि यह इलाका भूकम्प की दृष्टि से संवेनदनशील जोन में है। इसके बाद भी इमारतों के निर्माण में भूकम्प निरोधक संबंधी नियमों की अनदेखी की जा रही है।

धरती की छाती की जा रही है खोखली

जमीन की बढ़ती कीमतों ने यहां के लोगों पर इस कदर सनक सवार हो गई है कि भवन निर्माण कराते समय दो-दो खंड का अंडरग्राउंड निर्माण धड़ल्ले से करवा रहे हैं। बेसमेंट और अंडरग्राउंड निर्माण कार्य के मद्देनजर जमीन एक तरह से खोखली साबित हो रही है।

निपटने के उपाय नाकाफी

आपदा की स्थिति में निपटने और तैयारियों को लेकर कोई खास योजना प्रशासन ने नहीं बनाई है। आपदा आने पर और बचाव को लेकर विभिन्न विभागों की भूमिका क्या होगी? इसे लेकर भी तैयारियां पूरी नहीं हैं।

घातक होंगे परिणाम

वैसे तो भवन निर्माण सेस्मिक जोनिंग के हिसाब से किया जाना चाहिए। लखनऊ के सेस्मिक जोन तीन में होने के बाद भी बिल्डिंगों में भूकम्प निरोधक संबंधी नियमों की अनदेखी नहीं की जानी चाहिए। अगर ऐसा किया जा रहा है तो भूकम्प आने पर घातक परिणाम सामने होंगे।

जोन वार भूकम्प का क्षेत्र

जोन ख्- बुंदेलखंड रीजन

जोन फ्- लखनऊ, कानपुर, बनारस, बरेली, आगरा

जोन ब्- दिल्ली, गुड़गांव, गाजियाबाद, ग्रेटर नोएडा, बुलंदशहर, मेरठ, अबंाला, चंडीगढ़,

यूपी में आए खतरनाक भूकम्प

क्9भ्म्- बुलंदशहर- म्.7

क्भ् अगस्त क्9म्म्- मुरादाबाद- भ्.फ्

दिल्ली- क्9म्0- म्

भूकम्प आने पर क्या करें

भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है जिसे हम रोक नहीं सकते, लेकिन हम इससे होने वाले जान-माल के नुकसान को कम जरूर कर सकते हैं। भूकम्प संभावित क्षेत्रों में हल्की सामग्री से मकान बनाये जाने चाहिए क्योंकि भूकम्प के दौरान इसमें नुकसान कम होता है।

मारते हैं मकान

भूकम्प संभावित क्षेत्रों में हम कुछ आधारभूत सावधानियां अपना कर आने वाले संकट को कुछ सीमा तक कम कर सकते हैं । कुछ आवश्यक वस्तुएं जैसे टार्च, मोमबत्तियां, माचिस और प्राथमिक उपचार किट हमेशा तैयार रखने चाहिए। खाद्य सामग्री तथा पेयजल का भण्डार भी रखे। कांच की खिड़कियों और गिरने योग्य सभी वस्तुओं से हमेशा दूर रहे ।

खुले स्थानों की ओर भागें

भूकम्प आने की स्थिति में तुरन्त खुले स्थान की ओर भागना चाहिए । यदि घर के भीतर फंस गए हों तो दरवाजे की चौखट तले खड़े हो जाएं या मेज, बेंच, डेस्क अथवा पलंग के नीचे छिप जाएं ताकि ऊपर से गिरने वाली कोई भी वस्तु प्रत्यक्ष चोट न पहुंचा सकें। यदि उस समय आप किसी चलते- फिरते वाहन पर हैं तो वाहन को तुरंत सड़क के किनारे रोक कर उससे दूर तब तक खड़े रहे जब तक आप पूरी तरह सुरक्षित न हो जाएं भूकम्प वाले क्षेत्र को देखने न जाएं क्योंकि ध्वस्त ढांचा बिना पूर्व चेतावनी के कभी भी गिर सकता है। इससे गंभीर चोट लग सकती है ।

भूकम्प के बाद

भूकम्प अपने प्रभाव से काफी कुछ विध्वंस कर देता है। भूकम्प के बाद के झटके सामान्य होते हैं। वे समय के साथ- साथ समाप्त भी हो जाते हैं। भूकम्प के बाद अतिसार, कन्जक्टिवाइटिस और मलेरिया जैसी बीमारियां फैल सकती हैं । पानी उबाल कर पियें या पानी में क्लोरीन की गोलियों का उपयोग करें।

शहर में जितनी भी संरक्षित इमारतें है, वह मजबूत तो बहुत हैं, लेकिन इनमें भूकम्परोधी तकनीकी का इस्तेमाल नहीं किया गया है। यदि तीव्र भूकम्प आएगा तो इनमें खतरा हो सकता है।

योगेश प्रवीन

इतिहासविद्