- विधानसभा में मुआवजे का सवाल उठने पर शासन ने दिए जांच के आदेश

- तात्कालिक अधिकारियों की होगी जिम्मदारी तय

- एमडीए से शासन ने मांगी शताब्दी नगर की पूरी जानकारी

sharma.saurabh@inext.co.in

Meerut : शताब्दी नगर योजना में किसानों का लगातार मुआवजा बढ़ाना प्राधिकरण के अधिकारियों को भारी पड़ गया है। शासन ने प्राधिकरण के अधिकारियों से जवाब मांगा है कि इस योजना के अंदर आने वाले किसानों का अंतिम बार जो मुआवजा बढ़ाया गया वह क्यों और किस आधार पर बढ़ाया गया है? शासन की जवाब-तलबी से पूरे प्राधिकरण में हड़कंप मच गया है। पूरे दिन इस मसले पर मीटिंग होती रही। परेशानी की बात तो ये है कि इस मामले में शासन ने जांच की संस्तुति भी की है। जांच अधिकारी शासन स्तर से तय किया जाएगा।

आखिर जांच की आंच क्यों?

शताब्दी नगर में किसानों का मुआवजा म्90 रुपए स्क्वायर मीटर करने के बाद कई योजनाओं के किसानों की लगातार आवाज उठने लगी थी। पिछले दिनों विधानसभा में भी सवाल उठा कि आखिर शताब्दी नगर में इतना मुआवजा क्यों दिया गया? अब बाकी किसानों की मांग भी शताब्दी नगर की तरह ही मुआवजा देने की हो रही है। ऐसे में प्राधिकरण और शासन कैसे उन्हें रुपया देगा? जिसके बाद शासन ने इस पर संज्ञान लेते हुए जांच के आदेश कर दिए हैं। प्राधिकरण के अधिकारियों की मानें तो जांच कौन करेगा और किस स्तर पर की जाएगी वो शासन स्तर पर ही तय होगा?

शासन ने किए सवाल

वहीं बढ़े हुए मुआवजे को लेकर शासन की ओर से कई तरह के सवाल भी किए गए हैं। प्राधिकरण के आलाधिकारियों की मानें तो शासन शासन स्तर पूछा गया है कि मुआवजा बढ़ाने का काम कैसे किया? कौन-कौन लोग इसमें शामिल थे? किन नियमों के तहत मुआवजे की राशि को बढ़ाया गया है? इन सवालों का जवाब देने को शासन ने एमडीए को काफी कम समय दिया है। इसलिए प्राधिकरण के अधिकारी इन सवालों का जवाब ढ़ूंढ़ने में जुट हैं।

फंस सकते हैं कई बड़े अधिकारी

अगर इस मामले की गहनता से जांच होती है और सवालों के जवाब ठीक तरीके से दिए जाते हैं तो कई बड़े तत्कालिक अधिकारी जांच के घेरे में आ सकते हैं। प्राधिकरण के अधिकारियों की मानें तो इस मामले में कई अधिकारियों पर गाज गिरना तय है। क्योंकि जो मुआवजा बढ़ाया गया उसके बारे में किसी को ज्यादा जानकारी न देना और नियमों की अनदेखी करना उनके लिए भारी पड़ सकता है।

लैंड भी नहीं कब्जे में

जब ख्0क्क् में मुआवजा बढ़ाया गया और समझौता हुआ तो उसमें एक क्लॉज ये भी था कि क्रमवार लैंड का कब्जा भी लिया जाएगा, लेकिन अधिकारियों ने ऐसा नहीं किया और समझौते की शर्तो को दरकिनार करते हुए किसानों को मुआवजे आंखें बंद करते हुए बांट दिया। इस बात को लेकर भी शासन प्राधिकरण काफी खफा है। लैंड का कब्जा न लेने की बात भी शासन की ओर से आए सवालों में है। साथ ही जांच का प्रमुख बिंदु भी है।

तो मुआवजा बढ़ाना बड़ी गलती

जानकारों की मानें तो जब वर्ष ख्0क्क् में शताब्दी नगर के किसानों को मुआवजा बांटा गया वो प्राधिकरण की सबसे बड़ी गलती थी। नियमों के अनुसार डीएम के अवार्ड करने के बाद समझौते के तहत किसान मुआवजे की मांग नहीं कर सकते हैं। न ही प्राधिकरण ऐसा कोई समझौता अपने आप कर सकता है। किसानों को कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का इंतजार करना चाहिए था। क्योंकि कोर्ट के आदेश के बाद ही कुछ संभव हो सकता था।

लोन लेकर बांटा था मुआवजा

किसानों को जो मुआवजा दिया था उसके लिए प्राधिकरण के पास रुपए नहीं थे। इसके लिए बैंकों से लोन लेकर किसानों को दिया गया था। अधिकारियों की मानें तो ये उस समय तत्कालिक अधिकारियों द्वारा लिया गया सबसे बड़ा रिस्क था। अब जांच के बाद स्थिति पूरी तरह से साफ हो जाएगी।

विधानसभा में सवाल उठा था जिसके बाद शासन की ओर जवाब मांगा गया है। जवाब जल्दी भेजना है। मुआवजे को लेकर जांच की भी संस्तुति की गई है। जांच के बाद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

- राजेश कुमार यादव, वीसी, मेरठ विकास प्राधिकरण

फैक्ट एंड फिगर

- क्987 में लाई गई शताब्दी नगर योजना।

- क्8फ्0.म्भ् एकड़ में फैली है योजना।

- क्000 से अधिक किसानों की गई लैंड।

- करीब फ्00 करोड़ रुपए बांट चुके हैं मुआवजा।

- क्990 में डीएम द्वारा अवार्ड हुआ था भ्0 रुपए प्रति मीटर मुआवजा।

- उसके बाद क्म्भ् रुपए किया गया मुआवजा।

- फिर मुआवजे की राशि को ख्म्क् रुपए कर दिया।

- वर्ष ख्0क्क् में मुआवजे को लेकर उठे विवाद में म्90 रुपए मुआवजे की राशि की गई।