तेजी से बदले हालात

हाल ही में हुए इंप्लायमेंट सर्वे में सामने आया है कि हमारी इकोनोमी नई जॉब जेनरेट नहीं कर पा रही है। जॉब जेनरेशन निगेटिव रेट में बढ़ रही है।

- 2009-10 में जॉब जेनरेशन में भारी गिरावट दर्ज की गई। इस दौरान इंप्लायमेंट ग्रोथ रेट 9.3 परसेंट रही।

- 2011-12 में स्पेशल अनइंप्लायमेंट सर्वे किया गया, जिसमें सामने आया कि इंप्लायमेंट ग्रोथ रेट में कमी आई है। इस दौरान इंप्लॉयमेंट ग्रोथ रेट 6.2 परसेंट हो गई।

- इन दोनों सर्वे के दौरान दो साल में देश में बेरोजगारों की संख्या में 10.2 परसेंट बढ़ोत्तरी हुई। इससे हाल के साल में जॉबलेस ग्रोथ के दावों में सच्चाई नजर आती है।

98 लाख से 1.8 करोड़

सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस के डाटा के अनुसार, 2009-10 में इंप्लायमेंट रेट 39.2 परसेंट था, जो 2011-12 में ये 38.6 परसेंट रह गया। जब मनमोहन सिंह प्रधान मंत्री बने थे तब 2004-2005 में इंप्लायमेंट रेट 42 परसेंट था। जनवरी 2010 में बेरोजगारों की संख्या 98 लाख थी, वहीं जनवरी 2012 में ये एक करोड़ आठ लाख हो गई।

ये है पॉजिटिव बात

2009-10 से 2011-12 के दौरान करीबन 1.4 करोड़ जॉब बढ़े हैं। जो पिछले पांच साल में मिले जॉब का पांच गुना है। साथ ही पहली बार कुल वर्कर्स में खेती से जुड़े मजदूरों की संख्या पचास परसेंट से कम हो गई। सर्वे के मुताबिक, कुल वर्कर्स में फॉर्म सेक्टर की हिस्सेदारी 49 परसेंट है। जबकि मैन्युफैक्चरिंग में 24 परसेंट और सर्विस सेक्टरों 27 परसेंट वर्कर्स काम करते हैं।

कम हैं अवसर

लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट में लगातार गिरावट भी चिंता का विषय है। यह वर्किंग ऐज ग्रुप में रोजगार ढूंढ रहे लोगों की संख्या बताता है। एलएफपीआर 2009-10 में चालीस परसेंट था। वहीं 2011-12 में ये घटकर 39.5 परसेंट तक पहुंच गया। इससे साफ है कि रोजगार के अवसरों में कमी के चलते लोग या तो लंबे समय तक पढ़ाई कर रहे हैं या जॉब मार्केट से निकल जाते हैं।

"समय अच्छा नहीं चल रहा है। मार्केट को लेकर लगातार चिंता बनी हुई है। स्लोडाउन ने इंप्लॉयमेंट ग्रोथ रेट पर असर डाला है। इन आंकड़ों में ये साफ जाहिर हो रहा है."

- स्नेहवीर पुंडीर, एएओ, सर छोटूराम इंजीनियरिंग कॉलेज

"इतना पढऩे के बाद भी हमारा सिस्टम हमें जॉब नहीं दिला पा रहा है। क्या फायदा ऐसे सिस्टम का। फिर ऐसी पढ़ाई कराई ही क्यों जा रही है."

- मोहित गुप्ता, जॉब की तलाश में

"कितना भी पढ़ लें लेकिन गांव देहात या शहरी मीडिल क्लास के बच्चों के पास पुलिस ये आर्मी में जाने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचता है। से सिस्टम के गाल पर तमाचा है."

अंबुज त्यागी, प्रोफेशनल

"बीबीए, बीसीए, एमबीए, एमसीए, एमटेक जैसी डिग्री करने के बाद भी लोगों को पांच दस हजार रुपए की जॉब नहीं मिल रही है। इसमें सीधे सीधे सरकार का दोष है। सरकारी नीतियां इसके लिए जिम्मेदार हैं."

- सचिन कुमार, बिजनेस मेन