- आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने जांची स्कूल वैन्स की हकीकत

- आपके बच्चे रोजाना सफर कर रहे हैं दर्दभरा सफर

- कई स्कूल वैन्स के पास नहीं है फिटनेस सर्टिफिकेट

LUCKNOW: मम्मी आप एक बार खुद मेरी स्कूल वैन में बैठकर देखो, तब पता चलेगा आपको। सीट्स में इतने स्पि्रंग निकले हैं कि पूछो नहीं। लेकिन मम्मी, मुझे डर लगता है। पीछे ही गैस सिलेंडर लगा है और कभी अगर हम ही जानते हैं कि हम घर कैसे पहुंचते हैं। सिक्स्थ क्लास में पढ़ने वाली नन्ही प्रियंका की इन बातों को जब आई नेक्स्ट रिपोर्टर ने जांचने की कोशिश की, तो स्कूली वैन की जो सूरत नजर आई, वह दर्दनाक और भयावह दिखी।

हम ढंग से बैठ तक नहीं सकते

सिर्फ एक स्कूल की बात नहीं है, बल्कि अधिकतर स्कूल वैन्स की सीट्स इतनी अंदर धंस चुकी हैं कि उनमें से स्प्रिंग और कीलें साफ दिखाई पड़ती हैं। यदि आपकेच्बच्चे ऐसी सीटों पर बैठकर रोजाना सफर करते हैं तो निश्चित मानिए कि इन सीटों पर किसी न किसी दिनच्बच्चे चोट खा जाएंगे। मगर गौर करने वाली बात यह है कि हजारोंच्बच्चे रोजाना इस दर्दभरे सफर के गवाह बनते हैं और जानने-बूझने के बाद भी इस पर कोई एक्शन नहीं लिया जाता।

इनके पास सर्टिफिकेट तक नहीं हैं

शहर में चलने वाली स्कूल वैन्स और बसों के पास सर्टिफिकेट तक नहीं है। फिर भी ये सड़कों पर खुलेआम फर्राटा भर रही हैं। हजाराच् बच्चे रोजाना इन बसों और वैन में सफर करने को मजबूर हैं। ना तो कभी आरटीओ ऑफिस इनकी चेकिंग करता है ना तो कभी ट्रैफिक पुलिस। आरटीओ ऑफिस के अधिकारियों के अनुसार ही लखनऊ में इस समय क्7भ् स्कूल बस हैं और भ्ख्8 स्कूली वैन। जबकि आरटीओ ऑफिस में आधिकारिक तौर पर मात्र क्08 बसें और फ्ख्ख् स्कूली वैन रजिस्टर्ड हैं। ख्89 गाडि़यों के ही फिटनेस सर्टिफिकेट जारी किए हैं। चेकिंग ना होने से इनकी चांदी है।

डर आग लगने का भी है

हालांकि स्कूली वैन में शार्ट सर्किट से आग लगने की घटना शहर में दो से तीन बार ही हुई है, लेकिन मुद्दा यह है कि इस तरह की घटना हो चुकी हैं। विभागीय अधिकारियों ने भी इसे स्वीकारा है। बावजूद इसके विभाग की ओर से स्कूल वैन्स और बसेस के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया। अगर कभी चेकिंग अभियान चलाया भी गया तो वो सिर्फ खानापूर्ति ही निकल कर सामने आया।

चेकिंग होगी कैसे, एक अधिकारी है

विभाग में इनकी जांच करने के लिए सिर्फ एक ही एआरटीओ प्रवर्तन मौजूद है। अन्य दो पद खाली पड़े हैं। ऐसे में इन स्कूल वैन्स की जांच करना आसान नहीं है। जब तक नये अधिकारी नहीं आएंगे, तब तक चेकिंग अभियान भी अटका रहेगा।

सुनिए, वैन संचालक के बोल

वैन संचालक गोपाल मिश्रा ने बताया कि गाडि़यों की खराब हालत कच्च् लिए च्च्चे ही जिम्मेदार हैं। वे गाड़ी में बैठने पर उसके अंदर लगी सीटें, पाइप, वायरिंग नोच देते हैं। इसके चलते नई गाडि़यां भी चंद महीनों में ही खचाड़ा नजर आने लगती हैं। रही बात फिटनेस सर्टिफिकेट की तो वहां पर उसे हासिल करना आसान नहीं होता है। एक से दो दिन लग जाते हैं। ऐसे में स्कूल छोड़ नहीं सकते।

स्कूल वैन और बसों की जांच के लिए आदेश दिए गए हैं। इसके लिए अभियान भी चलाया जाना है, लेकिन विभागीय अधिकारियों की कमी के चलते इनकी जांच नहीं हो पा रही है।

- सगीर अहमद

आरटीओ