-बोले, पंडित जी ने कहा था काला टीका लगाने को

-कहीं किसी पत्रकार की नजर न लग जाए-हरदा

-जब निरंजनपुर में वोट डालने पहुंचे तो मीडिया से घिरे

-घर से पूजा-पाठ करके निकले वोट डालने

DEHRADUN: वक्त सुबह साढे़ ग्यारह बजे। स्थान-आईटीआई निरंजनपुर। मीडिया की भीड़ सीएम हरीश रावत के इंतजार में है। हरदा इस वक्त न तो किच्छा में हैं और न ही हरिद्वार ग्रामीण क्षेत्र में, जहां से वे चुनाव लड़ रहे हैं। धर्मपुर से कांग्रेस प्रत्याशी दिनेश अग्रवाल के लिए वोट करने के लिए उनका आईटीआई के पोलिंग स्टेशन में आने का कार्यक्रम तय है। हरदा पहुंचते हैं माथे पर काला टीका लगाए। फिर शुरू हो जाता है मीडिया के सवालों का सिलसिला। अपनी आदत के मुताबिक, किसी को हरदा मायूस नहीं कर रहे हैं। एक-एक पत्रकार से अलग-अलग बात कर रहे हैं। हरदा हर सवाल के जवाब में एक बात सामान्य तौर पर कह रहे हैं-कांग्रेस सरकार में वापसी करेगी। हमें पूर्ण बहुमत मिलेगा। माथे पर लगे काले टीके पर सवाल होता है। हरदा जवाब देते हैं-पंडित जी ने आज के लिए खास तौर पर काला टीका लगाने को कहा था। फिर मुस्कुराकर कहते हैं-आप जैसे कई पत्रकार मिल जाते हैं जिनकी नजर लग जाती है। उनका इशारा स्टिंग को लेकर था।

निशाने पर रहे हैं हरदा

इन सारी स्थितियों के बीच, भले ही हरदा के दावे जीत के हैं, लेकिन चेहरे पर शिकन एक पल के लिए भी जुदा नहीं थी। इसे कहने वाले चुनाव प्रचार में लंबे समय तक जुटे रहने से उपजी थकान मान सकते हैं, लेकिन जिनकी निगाहें सियासी चीजों को तलाशती हैं, वह कह सकते हैं कि बीजेपी के साथ कठिन मुकाबले में फंसे हरदा अंदर से उलझन महसूस कर रहे हैं। ये अस्वाभाविक स्थिति भी नहीं है, क्योंकि बीजेपी के बडे़ नेताओं, यहां तक की पीएम नरेंद्र मोदी के निशाने पर भी उत्तराखंड में राहुल गांधी से ज्यादा हरीश रावत रहे हैं।

पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा हरीश

हरदा अपनी पार्टी के सबसे बडे़ चेहरा हैं। क्क् विधायकों का पार्टी छोड़ जाना छोटी मोटी बात नहीं है। हरदा इसे झेलते हुए चुनावी समर में हैं। पिछले साल की ही बात को आगे बढ़ाएं, तो सरकार की बर्खास्तगी, राष्ट्रपति शासन, फिर कानूनी लड़ाई और आखिर में सरकार की बहाली, जैसी तमाम सारी बातों को यदि सबसे ज्यादा किसी ने झेला है, तो वह हरीश रावत ही हैं। उत्तराखंड की सियासी उलझन, यहां का सियासी संघर्ष क्या है और क्या फार्मूला कांगे्रस को मुश्किल से निकाल सकता है, ये सबसे बेहतर हरदा ही जानते हैं। ये ही सोचकर कांग्रेस ने चुनाव से जुड़ी तमाम सारी बातें उन्हीं पर छोड़ी है। निश्चित तौर पर हरदा इन दबावों से जूझ रहे हैं। इन स्थितियों में कामयाबी मिलती है तो कद कितना बढ़ जाएगा। चूक गए तो फिर से उबरने के लिए संघर्ष की किस राह पर आगे बढ़ना पडे़गा। सियासी संग्रामों के वक्त माथे पर पीला और आज लगा काला टीका भी काफी कुछ बयां करता है। सियासी दांव-पेंच के अलावा कठिन घड़ी में धर्म-आध्यात्म हमेशा हरदा का संबल बना है।