- सोशल मीडिया प्लेटफर्म के जरिए प्रचार, व्हाट्सएप से वीडियो कॉल

- इलेक्शन कमीशन की निगरानी से बचने को कार्यकर्ताओं का नया पैंतरा

<- सोशल मीडिया प्लेटफर्म के जरिए प्रचार, व्हाट्सएप से वीडियो कॉल

- इलेक्शन कमीशन की निगरानी से बचने को कार्यकर्ताओं का नया पैंतरा

GORAKHPUR: GORAKHPUR: लोकसभा सामान्य निर्वाचन में नेताओं संग प्रचार कार्य में जुटे तमाम कार्यकर्ता सोशल मीडिया का सहारा लेने लगे हैं. इलेक्शन कमीशन की निगाहों से बचने के लिए कार्यकर्ता व्हाट्सएप कॉलिंग कर रहे हैं. वीडियो कॉल के जरिए जहां कार्यकर्ता अपने प्रत्याशी के पक्ष में वोट मांग रहे. वहीं गोपनीय बातचीत करने में लोग नहीं हिचक रहे. इलेक्शन का माहौल गर्म होने के साथ ही नेता, कार्यकर्ता और पदाधिकारी व्हाट्सएप कॉलिंग का इस्तेमाल करने लगे हैं. पुलिस अधिकारियों का कहना है कि चुनाव आचार संहिता के अनुपालन के लिए हर तरह की गतिविधि पर नजर रखी जा रही है.

एक जगह बैठकर कई जगहों पर जनसंपर्क

इलेक्शन में प्रचार के लिए सीमित समय होने से हर नेता-कार्यकर्ता के लिए हर जगह पहुंच पाना संभव नहीं दिख रहा. ज्यादा से ज्यादा लोगों से जुड़ने के लिए नेता और कार्यकर्ता वीडियो कॉलिंग का सहारा ले रहे हैं. इसमें सबसे ज्यादा लोकप्रिय व्हाट्सएप हो रहा है. राजनीतिक दलों से जुड़े लोगों का कहना है कि चुनाव आचार संहिता की सख्ती की वजह से वीडियो कॉल करके काम चलाया जा रहा है. व्हाट्सएप कॉलिंग के जरिए नेता अपनी बात लोगों तक पहुंचा दे रहे हैं. अगर किसी चौराहे पर कई वोटर जमा हैं. वह चाहते हैं कि प्रत्याशी से तत्काल बात हो जाए. सबके साथ सलाम दुआ के लिए तत्काल व्हाट्सएप कॉल करके बात करा दी जा रही है. इसका बड़ा फायदा मिल रहा है. अपने समर्थकों से संपर्क साधने में आसानी हो रही. एक साथ कई लोगों से लाइव बातचीत हो जा रही है.

व्हाट्सएप कॉल की निगरानी मुश्किल

नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं को ठीक से पता है कि सभी का मोबाइल सर्विलांस पर लेकर सुना जा सकता है. गोपनीय बातों के लिए कार्यकर्ता या तो मिलकर बात कर रहे हैं या फिर व्हाट्सएप कॉलिंग का सहारा लेकर एक दूसरे को जानकारी दी जा रही है. वर्चुअल जनसंपर्क के जरिए नेता और उनके कार्यकर्ता अपनी अहम बात पहुंचाने में कामयाब हो जा रहे हैं. एक पार्टी के कार्यकर्ता ने बताया कि जब टेक्नोलॉजी हावी हो गई है तो इसका इस्तेमाल करने में क्यों चूका जाए. पुलिस से जुड़े लोगों का कहना है कि व्हाट्सएप कॉलिंग को ट्रेस कर पाना मुश्किल होता है. इसलिए अपराधी भी एप के जरिए एक दूसरे से जुड़े रहते हैं.

सोशल मीडिया असरदार, चुनावी खर्च में होगा शामिल

बैनर, पोस्टर और अन्य माध्यमों के जरिए प्रचार करने वाले प्रत्याशियों को सोशल मीडिया के जरिए प्रचार का खर्च भी चुकाना होगा. नामांकन के दौरान ही सभी प्रत्याशियों से उनके व्हाट्सएप, फेसबुक, ट्विटर हैंडल की डिटेल मांगी गई है. मोबाइल फोन नंबर की डिटेल भी ली गई है. सोशल मीडिया पर निगरानी के लिए मॉडल कोड कमेटी बनी है. सोशल मीडिया के लिए जिला प्रशासन जहां मोबाइल कंपनियों से मदद ले रहा है. वहीं बल्क मैसेजिंग और वाइस कॉल मैसेज की पूरी जानकारी मोबाइल कंपनियों से मांगी गई है. मतदान के ब्8 घंटे पूर्व सोशल मीडिया से प्रचार पर पूरी तरह से रोक लगाने की बात भी कही गई है.

यह बनाए गए हैं नियम-कानून

सोशल मीडिया पर विज्ञापन पोस्ट करने के पहले निर्धारित प्रारूप पर आवेदन करना होगा.

मीडिया सर्टिफिकेशन ऑफ मॉनीटरिंग कमेटी से अनुमति मिलने पर ही विज्ञापन कर सकेंगे.

सोशल मीडिया पर दी जाने वाली हर प्रचार सामग्री पर आचार संहिता लागू रहेगी.

वेबसाइट और एकांउट संचालित करने वाली टीम का वेतन और भत्ते का खर्च भी जोड़ा जाएगा.