कहीं कारोबार न बंद हो जाए

आचार संहिता के लागू हो जाने के बाद से कैंडीडेट्स को इलेक्शन में किए गए व्यय की राशि का ब्यौरा रखना अनिवार्य हो गया है। इसके आलावा उनकी बिना अनुमति झंडे-पोस्टर लगाने पर भी प्रतिबंध है। इस प्रतिबंध की वजह से पोस्टर, बैनर की मांग बिल्कुल कम हो गई है। बड़ा बाजार के वेद प्रकाश बताते हैं कि अभी हाल में ही हुए विधानसभा इलेक्शन में झंडे, पोस्टर और बैनरों की डिमांड बिल्कुल ही कम हो गई थी। आयोग की सख्ती के बाद कैंडीडेट्स अपने हर तरह के खर्चे पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। अब तो केवल टोपी, प्लास्टिक की झंडी और स्टिकर की ही मांग आ रही है। हालात ऐसे हो गए हैं कि बड़े दुकानदारों को अपने दुकान का खर्चा निकालना भी मुश्किल हो गया है।

Visiting card का सहारा

कैंडीडेट्स अपने प्रचार के लिए तरह-तरह के उपाय कर रहे हैं। ज्यादातर ऐसे चुनाव प्रचार का सामान खरीद रहे हैं जिनका खर्च आसानी से पकड़ में न आ सके। मसलन कैंडीडेट्स के नाम की टोपी, स्टिकर, विजिटिंग कार्ड जैसी छोटी सामग्री। अब कितनी टोपी और कार्ड खरीदे गए, इसका आंकलन कैसे होगा। प्रचार सामग्री कारोबारी भी मानते हैं कि कैंडीडेट्स अब ऐसी ही सामाग्री की फरमाइश ज्यादा कर रहे हैं।

प्रचार सामाग्री शॉप्स पर 75 परसेंट तक मंदी आ गई है। कैंडीडेट्स ने पहले 40-50 पोस्टर बनाने के ऑर्डर दिए थे, वहीं अब इसकी संख्या 10-15 करवा दी गई है।

-वेदप्रकाश, कारोबारी

समस्याएं बढ़ गई हैं। आखिर चुनाव का प्रचार कोई कैसे करे? इस लिए बैनर, पोस्टर न बनवाकर छोटे-छोटे स्टिकर और फ्लैग बनवा रहे हैं।

-मुकेश, कस्टमर