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LUCKNOW : योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर को मंत्रिमंडल से बाहर का रास्ता दिखा दिया है. रविवार को सातवें चरण का मतदान खत्म होने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओपी राजभर को मंत्री पद से बर्खास्त करने का प्रस्ताव राजभवन भेजा जिसे राज्यपाल राम नाईक ने अपनी अनुमति प्रदान करते हुए उनको बर्खास्त करने का आदेश जारी कर दिया. सूत्रों की मानें तो फिलहाल ओपी राजभर के विभाग होमगार्ड मंत्री अनिल राजभर को दिए जाने हैं. वहीं दूसरी ओर अलग-अलग आयोगों और निगमों में तैनात उनके सात रिश्तेदारों और करीबियों को भी हटाने का आदेश जारी हो गया है.

भाजपा नेताओं को दी थी गाली
दरअसल पिछड़ा वर्ग कल्याण एवं दिव्यांग जन विकास विभाग के मंत्री ओपी राजभर बीते कई दिनों से भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बने हुए थे. पहले सरकार में अपनी बात न सुने जाने का मामला वे भाजपा अध्यक्ष अमित शाह तक लेकर गये थे जिसके बाद एक समन्वय समिति का गठन किया गया था. वहीं चुनाव आते ही उन्होंने अति पिछड़ा वर्ग के लिए सामाजिक न्याय कमेटी की सिफारिशों को लागू कराने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया. चुनाव से पहले सीटों के बंटवारे को लेकर भी उनकी भाजपा नेताओं से बात नहीं बन सकी जिसके बाद उन्होंने पूरी तरह बगावती तेवर अपना लिए और लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर अपनी पार्टी के प्रत्याशी उतार दिए. इतना ही नहीं, सातवें चरण के प्रचार के दौरान उन्होंने एक जनसभा में भाजपा नेताओं को गाली देने के साथ जूतों से मारने की बात कह डाली जिसके बाद भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने उनकी इस हरकत पर गहरी नाराजगी जताने के साथ पूरा मामला पार्टी हाईकमान को बताया. इसके बाद यह तय हो गया कि चुनाव खत्म होते ही ओपी राजभर को मंत्रिमंडल से विदा कर दिया जाएगा.

इनकी भी गयी कुर्सी
योगी सरकार ने ओपी राजभर के अलावा उनके करीबियों पर भी इसकी गाज गिराई है. ओपी राजभर के पुत्र अरविंद राजभर को उप्र सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम विभाग के अध्यक्ष पद से हटा दिया गया है. इसके अलावा पिछड़ा वर्ग आयोग के सदस्य बनाए गये गंगाराम राजभर और वीरेंद्र राजभर को भी हटा दिया गया है. इसी तरह राणा अजीत प्रताप सिंह को उप्र बीज विकास निगम के अध्यक्ष पद से, सुदामा राजभर को उप्र पशुधन विकास परिषद के सदस्य पद से, सुनील अर्कवंशी व राधिका पटेल को राष्ट्रीय एकीकरण परिषद के सदस्य पद से हटा दिया गया है. इन सबकी चुनाव की अधिसूचना लागू होने से चंद घंटे पहले ही इन पदों पर ताजपोशी हुई थी और चुनाव खत्म होने की अधिसूचना जारी होने से इन पर गाज गिर गयी.

पाला बदल सकते हैं विधायक
ओपी राजभर की मंत्रिमंडल से विदाई के बाद उनकी पार्टी में असंतोष पनपने लगा है. सूत्रों की मानें तो उनके दल के विधायक ही उनसे संतुष्ट नहीं हैं और वे पाला बदलने की तैयारी में है. ध्यान रहे कि विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था जिसके बाद सुभासपा के चार विधायक जीत गये थे. इनमें जहूराबाद से ओपी राजभर, रामाकोला से रामानंद बौद्ध, जखनियां से त्रिवेणी राम और अजगरा से कैलाश नाथ सोनकर शामिल हैं.

योगी सरकार में पहली बर्खास्तगी
ओपी राजभर एकमात्र ऐसे मंत्री हैं जिनको योगी सरकार ने अपने दो साल के कार्यकाल में बर्खास्त किया है. मंत्रियों की बर्खास्तगी के मामले में बसपा और सपा का खासा रिकॉर्ड है. मायावती ने वर्ष 2012 में अपनी सरकार जाने से पहले 21 मंत्रियों को बर्खास्त करने के साथ उनके खिलाफ लोकायुक्त जांच के आदेश भी दिए थे. वहीं अखिलेश ने भी अपने आधा दर्जन मंत्रियों को बर्खास्त किया था. सपा में रार शुरू होने के बाद अखिलेश ने पहले शिवपाल के कई अहम विभाग छीने तो सुलह न होने पर उनको मंत्रिमंडल से ही बर्खास्त कर दिया था.

भाजपा को नागवार गुजरी मांगें : राजभर
मंत्रिमंडल से बर्खास्त होने के बाद ओपी राजभर ने कहा कि प्रदेश में एससी-एसटी बच्चों को आईएएस, पीसीएस की मुफ्त कोचिंग की सुविधा दी जाती है तो शेष पिछड़े व सामान्य वर्ग के बच्चों को भी यह सुविधा मिलनी चाहिए. साथ ही प्रदेश में शराब बंदी की भी मांग की थी. यह भाजपा को नागवार गुजरा है. मैंने अति पिछड़े, अति दलित वर्ग के विकास के लिए सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट लागू करने को कहा तो उसे रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया. मैं गुनहगार हो गया. समाज के हर वर्ग की रक्षा के लिए हमारा संघर्ष सड़क से सदन तक जारी रहेगा.

बर्खास्तगी को होना पड़ा विवश : महेंद्र पांडेय
वहीं भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा कि ओपी राजभर ने गठबंधन धर्म की मर्यादा का उल्लंघन किया इसलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को सख्त निर्णय लेना पड़ा. उन्होंने गठबंधन में रहते हुए लगातार आपत्तिजनक बयान दिए. सरकार की नीतियों का विरोध किया और सिर्फ अपने हितों को प्राथमिकता दी. हमारी मर्यादा और सहनशीलता को वे कमजोरी समझ बैठे. उन्होंने चुनाव में अपने उम्मीदवार खड़े किए, कुछ सीटों पर उन्होंने खुलकर विपक्ष का समर्थन भी किया. उन्होंने पार्टी व कार्यकर्ताओं के खिलाफ अमर्यादित भाषा व गाली-गलौच का प्रयोग किया इसलिए भाजपा को सख्त फैसला लेना पड़ा.